Tuesday 9 December 2014

तोर नैन के बलिहारी हे

कोनों  मेर  रहौं  दौंड  के आथे  तोर  नैन के बलिहारी हे
छोंडय  नहीं अकेल्ला  मोला तोर नैन  के बलिहारी हे ।

मोर जिनगी ल वोही चलाथे मैं ह ओकर मन के चलथौं
का  पहिरौं  वो  ही समझाथे  तोर नैन के  बलिहारी हे ।

जाना  कहॉ  हे का करना हे तोर नैना हर निरनय लेथे
का  बोलवँ  मैं  वोही  बताथे  तोर नैन के  बलिहारी हे ।

कहूँ अकेल्ला नइ जाना हे सम्हर-पखर के तैं झन जा
घेरी - बेरी  मोला खिसियाथे तोर नैन के बलिहारी हे ।

वोकर बरजना मोला सुहाथे बिकट नीक लागथे मोला
तैं  हस  संग म अइसे लागथे तोर नैन के बलिहारी हे ।

Tuesday 11 November 2014

रंग म बूड के फागुन आ गे

रंग  म  बूड  के  फागुन आ  गे बैठ - पतंग - सवारी म
टेसू  -  फूल   धरे   हे   वो  हर  ठाढे  हावय  दुवारी  म ।

भौरा -  कस ऑखी  हे  वोकर आमा - मौर  हे पागा म
मुच - मुच  हॉसत कामदेव कस ठाढे हावय दुवारी म ।

मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध बॉदी हो गए हे आज 
लाज  लुका  गे  कहॉ  कोंजनी  फागुन  खडे  दुवारी म ।

पिंवरा लुगरा पोलका पहिरे मंदिर जावत रहेंव मैं आज
दार - भात  म  करा  ह  पर  गे फागुन  खडे  दुवारी म ।

रस्ता  देखत  रहेंव  बरिस  भर  कइसे  वोला  बिदारौं मैं
'शकुन'  तैं  पहुना  ल  परघा  ले  ठाढे  हावै  दुवारी  म ।

Sunday 9 November 2014

मया मान के का बरोबरी

मया - डगर  पलपला  भरे  हे  मया - मान के का  बरोबरी
ऑसू - सँगवारी  बन  जाथे  मया -  मान  के  का  बरोबरी ?

मनखे मान के भुखहा होथे मया के पय - डगरी नइ जानय
मन के भाव चॉउर - कस उज्जर मया-मान के का बरोबरी ?

रेंगत - रेंगत गोड पिरा गे तभो मया के थाह  नइ  मिलिस
नित - नित नवा- नवा हो जाथे मया - मान के का बरोबरी ?

बड - भागी  ए  वो  मनखे  हर मया के सुख ल जे बौरत हे
जल - बिन मछरी कइसे जीही मया - मान के का बरोबरी ?

'शकुन' मया ए जी के धक - धक दिखै नहीं फेर जी ले लेथे
जेन  जियत  हे  वो  ही  बूडथे  मया - मान के का बरोबरी ?

Thursday 6 November 2014

मन के गोठ ल झन गोठियाबे

चुप्पे - चुप ऑसू  पी  लेबे  मन  के  गोठ  ल  झन  गोठियाबे
कहूँ ल  कभ्भु  तैं  झन बताबे मन के गोठ ल  झन गोठियाबे ।

वोहर  तोला  नइ  भावय  तव  एमा  तोर  का  गलती  हावय
तैं  हर  वोकर भाव समझ ले  मन के गोठ ल  झन गोठियाबे ।

रहि  -  रहि  के  वो  हर  दुख  देथे  मैं  काकर  मेर  गोहरावँव
मुँह  सिलाय  हे  तैं  का करबे मन के गोठ ल  झन गोठियाबे ।

कतका  कहेंव  भुलाहौं  तोला  फेर तैं लहुट - लहुट के आथस
कइसे  वोला  बिसराबे  तैं  मन  के  गोठ  ल  झन  गोठियाबे ।

सॉझ  हो  गे  अब  चल  घर  जाबो डेहरी मोला अगोरत होही
काबर बिलमे 'शकुन' कही तौ मन के गोठ ल झन गोठियाबे ।

Wednesday 5 November 2014

मन ले तैं बाहिर नइ जावस

इहॉ - ऊहॉ  ले  किंदर  के आथौं  फेर  तोला मन म मैं पाथौं
मन  म  तैं  कब  के बइठे हस मन ले तै बाहिर नइ जावस ।

सँगी  मन  मसखरी  करत हें फेर मोर मन लइका कस रोथे
रोज के मैं हर मन्दिर जाथौं मन ले  तै  बाहिर नइ जावस ।

भभर के तोर सँग कई घौं बोलेंव फेर तैं हर काबर इतराथस
मोर मन म तैं राज करत हस मन ले तैं बाहिर नइ जावस ।

एक - एक दिन कर - कर के अब जिनगी के संझा हर आ गे
का जानवँ तोर मन म का हे मन ले तैं  बाहिर  नइ जावस ।

कइसे जियत हवँ मैं का जानवँ मोला मन भर कोन खोजथे
मैं हर काकर हितवा हो गैं फेर मन ले तैं बाहिर नइ जावस ।

वोकर भरोसा छोंड  'शकुन'  तैं अपन अकल ले  ले  तैं काम
समय ह सरपट भागत हावय मन ले तैं बाहिर नइ जावस ।

Sunday 2 November 2014

बने बने ल कहूँ नइ पूछय

बने - बने  ल  कहूँ  नइ  पूछय
मोर  खोरी बर सोंचही  कोन ?

कोन  मोला  स्कूल  अमराही
बासी   मोला  खवाही  कोन ?

दाई - ददा  बर  गरू  परे  हौं
दूसर  अब  सुध  लेही  कोन ?

काला कहौं कोन सुनही मोर
खोरी सँग अब खेलही  कोन ?

भगवान बर  चिट्ठी लिखे हौं
फेर चिट्ठी ल अमराही कोन ?

Saturday 1 November 2014

गरू झन मरव नोनी ल

नोनी  बिन  परिवार हे सुन्ना
गरू   झन   मरव   नोनी  ल ।

पहिली  घर  म  नोनी  आइस
हॉस  के   ले  लव  बोहनी  ल ।

दाई  -  ददा   के  सेवा  करथे
कमती झन समझौ नोनी ल ।

दुन्नो -  कुल  म  दिया बारथे
मॉग  के  ले  लव  छौनी  ल ।

सुख  के  परछो  पाना  हे तव
झन   तिरियावव  नोनी  ल ।  

पबरित लागय हिन्दुस्तान

जइसे  तोर  घर  हर  सफ्फा  हे
वोइसने हो जाए  हिन्दुस्तान ।

गली -  खोर  ल  सबो  बहारव
गोहरावत     हे    हिन्दुस्तान ।

हर   नदिया  ल   गंगा  मानव
इंकर  सफाई  म  दव  ध्यान ।

जल - देवता के पॉव ल पर लव
झन डारव थोरको फूल - पान ।

पन्ना कस चमकय मोर भारत
पबरित   लागय   हिन्दुस्तान ।

Saturday 25 October 2014

प्रश्न घला उत्तर बन जाथे

घेरी - बेरी  प्रश्न  करे  ले अकस्मात  उत्तर  मिल  जाथे
खोजबे  तव आघू  म आथे मनखे के मन हरिया जाथे ।

भीतरी  म  कोनो  बइठे  हे  उत्तर  धरे  अगोरत  हावय
कुछु  पूछ ले ओही बताथे हॉस - हॉस के वो गोठियाथे ।

मैं हर वोला नटवर कहिथौं वोहर मोर सँगे - सँगे रहिथे
सबो बात ल मन से सुनथे घाव म मरहम वोही लगाथे ।

रोथौं  तव ऑसूँ  ल  पोंछथे  मोला पोटार के वो समझाथे
हॉसबे न तव सुन्दर दिखबे अइसे कहिके बिकट हँसाथे ।

'शकुन' वोही ए तोर सँगवारी जे हर तोला मन भर भाथे
वो  हर  निच्चट  सग ए सब के वोही सब ल पार लगाथे ।

Thursday 23 October 2014

शकुन रोवत हे गंगा मैया

गंगा  कहॉ  ले  निर्मल  होही  सरी  गँदगी  ऊँहे  जात  हे
कहूँ  झन  करव  पूजा  वोकर एही एक ठन सार बात ए ।

गंगा - तीर मुरदा बारे ले मनखे ह सद्- गति नइ पावय
मनखे करम ले पुण्य कमाथे एही एक ठन सार बात ए ।

अस्थि -विसर्जन ले अब कइसे बॉहचय महतारी गंगा हर
खुद  मैलागे  वोही  बिचारी  एही  एक  ठन  सार  बात ए ।

गंगा  ल  जे  मनखे उजराही गंगा  हर  वोला उजरा  दीही
फूल पान झन वोमा बोहावव एही एक ठन सार बात ए ।

'शकुन' रोवत  हे  गंगा  माई  कइसे  वोकर  थमही ऑसू
उज्जर करौ वोकर अ‍ॅचरा ल एही एक ठन  सार  बात ए ।

Sunday 5 October 2014

बादर पानी के दिन आ गे

बादर -  पानी  के  दिन आ  गे  अब  तो पानी  पूरा  आही
बोरे - बासी  के  दिन  बीतिस  दार - भात हर अब भाही ।

फरा अँगाकर - रोटी  चीला  चटनी  सँग  सब  खावत  हें
खेत -  खार हर कजरी  ठुमरी सुवा - ददरिया अब गाही ।

अँगना  गली  खोर  म  चिखला  नोनी खेलय कोन मेरन
सम्हर- पखर  के  बादर  राजा  सब्बो झन नाच नचाही ।

पानी  के  झिपार के  सँग  म  गेंगरुआ आ  गे  परछी  म
भौजी  निच्चट छिनमिनही हे ननंद वोला अब  डेरवाही ।

चिक्कन  होगे  सबके  एडी  'शकुन'  सबो  भभरत हावयँ
चौमास म सबके कोठी भरही सबो गॉव ह खुशी मनाही ।

चलव चलव अब गॉव डहर

गॉव  बलावत हे हमला अब चलव - चलव  सब  गॉव -  डहर
बर पीपर लीम बलावत हावय चलव - चलव अब गॉव डहर ।

खेत  के  धान  मेढ  के  राहेर  ठुनक -  ठुनक  गोहरावत  हे
नॉगर - बैला गोठियावत हे  चलव - चलव अब  गॉव  डहर ।

उदुप  ले  भादो  परिवॉ आ  गे अब भोजली सेराय बर जाबो
देवी  गंगा  गावत - गावत  चलव - चलव अब  गॉव  डहर ।

मुनगा - बरी  के   साग चुरे   हे मोर  भौजी  पापर भूँजत हे
मुनगा - भाजी बड मिठात हे चलव - चलव अब गॉव डहर ।

हिन्दुस्तान  गॉव  म  बसथे  माटी  के  होथे  घर -  सुघ्घर
'शकुन' बनै सिरमौर देश मोर चलव- चलव अब गॉव डहर । 

Thursday 18 September 2014

छोटे झन बन

नाव  कमाए  के  चक्कर  म छोटे झन बन
आत्मा ल दुख झन दे तोला महँगा परही ।

पढ - लिख के दाई-ददा के आघू झन इतरा
देखबे तोरेच लइका हर तोला अडहा कइही ।

ईर्खा - दोख  बर  समय  कहॉ  हे  बाबू मोर
प्रेम  म  बूड के देख जिन्दगी तोर सँवरही ।

दाई -  ददा  बर  कभु  दुश्मनी  झन  करबे
मया  बॉट  के देख जिन्दगी तोर भभरही ।

नाच  ले  गा  ले आज  काल  फेर  का होही
दिन बादर म काल काल ह तोला अमरही ।
 

Wednesday 17 September 2014

आऊ कहॉ अतका सुख पाबे

आऊ  कहॉ अतका  सुख  पाबे
फेर  पाछू  तैं  झन  पछताबे ।

मनखे - चोला  मिले  हे तोला
थोरको  तैं  झन  रोबे -  गाबे ।

सत  के  गली  म  रेंगबे  तैं हर
सबके सुख दुख म गोठियाबे ।

देहे  के  मनसा  मन  म धरबे
पर  के  गुन  ल  तैं  सँहराबे ।

पर - हित  के  रस्ता  म  रेंगबे
नीक मनखे कस नाव कमाबे ।

Thursday 11 September 2014

बावन आखर ल परघाबो

बावन आखर ल परघाबो
हिन्दी भाखा के गुन गाबो ।

अँगरेज़ी तो परदेशी ए
हिन्दी भाखा म गोठियाबो ।

हिन्दी म जमो पढाई होही
काबर पर के जूठा खाबो  ?

दुनियॉ के अँगना म भैया
हिन्दी भाखा ल बगराबो ।

'शकुन' सबो के भाखा हावय
पर के घाट म काबर जाबो ?

Sunday 7 September 2014

बेटी बिदा आज होवत हे

बेटी - बिदा आज  होवत  हे
सब झन के ऑसू ढरकत हे ।

बाप  ह  कइसे  परगट रोवय
करेजा भीतर ह कसकत हे ।

महतारी  के  तो  मन पोनी  ए
जुन्ना लुगरा कस दरकत हे ।

बहिनी अभी नानकन  हावय
ओढर कर - करके  रोवत  हे ।

बडे - भाई ल बिकट - बुता  हे
मने - मन वो  ह सुसकत हे ।

बेटी  ह  मर - मर  के  जीही
अनहोनी ल ओदे अगोरत हे ।

देश धर्म बर जिनगी अर्पित

देश - धर्म बर जिनगी ल अर्पित करना  हे
दाई  के अँचरा ल  आउ उज्जर करना हे ।

कतका सुघ्घर मोर भारत के भुइयॉ हावय
सबो  घर  म जगमग अँजोर ल  भरना हे ।

बेटी  के  रक्षा बर  सब  झन बैठ के सोचव 
मिल जुर के हमला ओकर पीरा  हरना हे ।

गॉव - गॉव  के  होही  साफ - सफाई  भैया
शहर - गॉव  के  नक्शा  सबो बदलना  हे ।

अमर - बेल ल सहन नहीं अब उटकठ होगे
अपन गोड म हर मनखे ल अब  चलना हे ।

Saturday 16 August 2014

महतारी के मान बढाबो

महतारी  के  मान  बढाबो  दुनियॉ  भर म नाव कमाबो
दाई  के अँचरा  मम्हाही  तभे  चतुर  सुजान  कहाबो ॥

ताना - नाना कर डारे हन अब सपूत हमला बनना हे ।
मेहनत  ले आगे बढना हे तभे  चतुर सुजान कहाबो ॥

चूल्हा बरय रोज सब घर म दार - भात सब झन खावैं
सब्बो लइका स्कूल जाहीं तभे  चतुर सुजान कहाबो॥

भाई-बहिनी सब जुर मिल के देश-धर्म बर बुता करव
दाई के अँचरा झन मैलावै तभे चतुर सुजान कहाबो॥

'शकुन' चलौ सब्बो सँगे- सँग भारत मॉ के मान बढाबो
महतारी जब भोजली गाही तभे चतुर सुजान कहाबो ॥
 

Tuesday 5 August 2014

छत्तीसगढ के सब्बो गॉव

आम  लीम  बर  पीपर  पहिरे  छत्तीसगढ  के  सब्बो  गॉव ।
नरवा -  नदिया  तीर  म  बैठे  छत्तीसगढ  के  सब्बो  गॉव ।

धान - सैकमी  कहिथें एला किसम-किसम  के  होथे धान ।
हरियर - हरियर  लुगरा  पहिरे  छत्तीसगढ के  सब्बो गॉव ।

हर  पारा  म  सुवा -  ददरिया  राग   सुनावत   रहिथे  ओ ।
संझा - कन जस गीत ल गाथे  छत्तीसगढ  के  सब्बो गॉव ।

भिनसरहा  ले  गॉव के फेरी भजन - मण्डली  करथे  रोज ।
देश   के  पोटा  म  लुकाय  हे  छत्तीसगढ   के  सब्बो  गॉव ।

'शकुन' जगावव सबो गॉव ल गॉव म  बसथे  भारत  मोर ।
खनखनखनखन धान उगलत हे छत्तीसगढ के सब्बो गॉव ।

Friday 25 July 2014

अब शहर गॉव कती भागत हे

बोले ले अडबड  नीक  लागत हे
अब शहर गॉव कती भागत हे ।

शहर  म  अब्बड  भीड  बाढ गे
सोंचे  म  अलकर  लागत  हे ।

मनखे गोरस के स्वाद भुला गे
गॉव म अलमलहा  पावत  हे ।

लइका मन गॉव म बड खुश हें
मुर्रा मुराई मन भर खावत हें ।

अगहन  के  गुरबार  म ओ  दे
अँगना  भर  चौंक  पुरावत हे ।

मोर  परोसी  गॉव  म  बस  गे
मोरो  मन अब ललचावत  हे ।

Sunday 1 June 2014

मुनगा भाजी कतेक मिठावय

ममा -  दाई   के  हाथ   के रॉधे 
मुनगा भाजी कतेक मिठावय ।

कतका व्याकुल हो जावै जब 
मोर ऑखी  म ऑसू आवय ।

अ‍ॅगठी धरा के मोला वोहर 
रोज मदरसा म अमरावय ।

पञ्चतंत्र कस रोज कहानी 
वोहर  मोला रोज सुनावय ।

गीत  के  बीजा  वोही  बोइस 
गा-गा के मोर मेर गोठियावय ।

शकुन  ह  खाथे  कइके  वोहर 
ठेठरी -  खुर्मी  अबड  बनावै ।

'शकुन' रोवत  हे  सुरता  करके 
ममा-दाई अब कहॉ ले आवय ?

Saturday 31 May 2014

बचपन

कतको  सुरता  कर  ले  तैं  हर
बचपन  कहॉ  लहुट  के  आथे ?

कच्चा अमली कतेक मिठावय 
आज कहॉ अब  थोरको  भाथे ? 

छोट- कन बात म कतका हॉसन 
आज   कहॉ   कोनो   मुस्काथे ?

दही -  डार   के   बासी   खावन
आज  कहॉ  कोनो बासी खाथे ?

पढ-लिख डारे गज़ब आज हम 
कहॉ  गॉव   के  सुरता  आथे ?

भुँइयॉ म हमर गोड नइ माढय
गॉव  के  पीरा  कहॉ  जनाथे ?

Thursday 29 May 2014

मोर गॉव के माटी मम्हावत हे

गॉव  के  माटी  मम्हावत हे 
गॉव  तोला  गोहरावत  हे ।

काय  धरे  हे  तुँहर  शहर  म
बेंदरा कस तोला नचावत हे।

जेला तैं हर अपन समझथस
वोही  हर तोला बखानत हे ।

अइसे  हावय  तुँहर  परोसी 
पीठ  -  पीछू   गुर्रावत  हे ।

आ  जावौ  रस्ता  देखत  हौं
तरपौंरी  हर खजुवावत  हे ।

औने - पौने  दाम  म  ओदे 
सब्बो - धान  बेचावत  हे ।

Thursday 17 April 2014

वेद- पुराण उचारत हावय

सरग   ल   टमरत   ठाढे   हावय  देवदारु  कोटवार   हर 
बादर सँग हॉसत-गोठियावत हे   देवदारु कोटवार  हर ।

महर-महर मम्हावत हावै चिक्कन-चिक्कन पान वोकर 
राग  -  भैरवी   गावत   हावय   देवदारु   कोटवार   हर ।

रूप अऊ गुन म निच्चट वोहर देवता मन कस लागत हे 
सबके  सुख - दुख  पूछत  हावै  देवदारु  कोटवार   हर ।

भरे  हे ओखद के  जम्मो  गुन  देवदारु के  रुख  म  सुन
प्रान  ल  सञ्जीवनी   देवत  हे  देवदारु  कोटवार   हर ।

'शकुन' गरीयस  कस  लागत  हे  चँवर डोलावत ठाढे हे
वेद  -  पुरान  उचारत   हावय    देवदारु कोटवार  हर ।

Monday 7 April 2014

शकुन अगोरत हे मनखे सावन भादो ल

पानी  गिरथे  तव  मन  हर  मँजूर  हो  जाथे  काबर
बादर  के  घन-घन  गर्जन  तोला  डेरवाथे  काबर ?

बौराथे  बादर  पानी  गिरथे माटी  ह काबर मम्हाथे
रिमझिम  पानी  म  मनखे- मन  हरियाथे काबर ?

तीजा-पोरा  म  नोनी आही अगोरत  हावै  महतारी
नोनी  के  तरपौंरी  हर  घेरी-बेरी  खजुवाथे काबर ?

रिम-झिम  पानी  म   फेर  किसान  हर  जी  जाथे
तरिया हे  मतलाय  तभो मन हर  उजराथे काबर ?

'शकुन'  अगोरत  हन  सब  झन  सावन - भादो  ल
सावन आगे धक-धक धक मन ल धडकाथे काबर ?

Sunday 6 April 2014

नेरुआ इहे गडे हावय

अरुणाचल झन जाव कोनो चीन गुरेरत हे हमला 
महतारी  के  अ‍ॅचरा  बिन  हम  चैन  कहॉ पाबो ?

नोनी कौडी कानी हो गे कोख म हत्या  होवत  हे
एही  हाल  रइही  तव  भइया  बहू  कहॉ  पाबो ?

नक्सल  के  नासूर ले  अब कइसे  बॉहचय  गढ
छत्तीसगढ ल  छोंड  के  हम आऊ  कहॉ  जाबो ?

नेरुआ इहें गडे हावय एकरे माटी म मिल जाबो
छत्तीसगढ ल  छोंड  के  फेर आऊ  कहॉ जाबो ? 

भाई  मन  के  पोगरी  ए  सफ्फा  सब अधिकार 
बहिनी  मन अदियावन  हन  मान  कहॉ पाबो ?


Saturday 5 April 2014

तोर अब्बड सुरता आथे

जतके  कथौं  भुलाहौं  तोला  तोर  ओतके  सुरता आथे ।
मानय नहीं  बात  मोर  मन ह तोर अब्बड सुरता आथे ।

प्रेम  से  तैं  हर  गोठिया लेते मैं ओतके  म  जी  जातेंव ।
का  जानवँ  तोर  मन  म का हे तोर अब्बड सुरता आथे ।

बिना  भरोसा  प्रेम  नइ  होवय हमला काकर डर हावय ।
तोला   मैं  कइसे  समझावौं  तोर  अब्बड   सुरता  आथे ।

तहूँ  मया  करथस  मोला  ए  बात ल  मैं  हर  जानत हौं ।
तोर ऑखी तोर कस लबरा नइए तोर अब्बड सुरता आथे।

'शकुन' मया  हर  कहॉ लुकाथे भींजे माटी कस मम्हाथे ।
कभु कोनो मेर  झन कहिबे तैं तोर अब्बड  सुरता आथे ॥

Monday 24 March 2014

भैया लेहे आवत होही

तीजा - पोरा के  दिन आ  गे  भैया  लेहे  आवत  होही ।
भादो महिना अब्बड सुघ्घर  भैया  लेहे  आवत  होही ।

राखी  बर  नइ आए पाइस  काम-बुता  के  मारे  देख ।
आज  गोड  खजुवावत  हावै  भैया  लेहे  आवत  होही ।

सब सँगवारी आगिन होहीं 'शकुन' सिरिफ बॉहचे हावै। 
दायी  मोला  अगोरत  होही  भैया  लेहे  आवत   होही ।

भॉठा म  सब  नून  खेलबो तला म तौंरबो मन भर के ।
मइके  के  सुख  ल  महूँ बौरिहौं भैया लेहे आवत होही ।

'शकुन' अगोरत होही भौजी  मया  पलपलावत  होही ।
ठेठरी - खुर्मी  बन  गए  होही  भैया  लेहे आवत  होही ।

बूड मरय नहकौनी दय

खेत  बेंच के बिहाव कर दिस बपरा किसान अब  का खावय ।
ससुरार  म  बेटी  भूख  मरत  हे  बूड   मरय  नहकौनी  दय ॥

बेटी के थरहा ल कुक्कुर  मन  लूस-लूस  के  खावत  हावय ।
ऊपर  ले अमर- बेल  चुहकत  हे  बूड  मरय  नहकौनी  दय ॥

देश-भक्ति के खातिर जे ह जिनगी अपन समर्पित कर दिस ।
वोकरे  पागी  ल  तीरत  हावय  बूड   मरय   नहकौनी   दय ॥

अन्ना के  भारी  मरना  हे  अब  ममता  ल  का  जवाब  दय ।
तृण- मूल  ले  कइसे  कन्नी काटय बूड मरय नहकौनी दय ॥

लइकई ले बस बुता करत हे मन  भर  भरे  हे  डर अऊ  भय ।
अपनेच घर के  बनिहारिन बपरी  बूड  मरय  नहकौनी  दय ॥

'शकुन' करे हस भारी गलती दस ठन तोरेच  निकलही  पय ।
चुप्पे - चुप सहि जा कुछु  झन कह बूड मरय नहकौनी दय ॥