Tuesday 17 December 2013

पंथी-गीत

कइसे तोर मया के बखान करौं ग पंथी गावत हावौं जोडी मोर तोरेच खातिर ।
मुस्कियावत हावौं संगी मोर तोरेच खातिर अकबकाए हावौं संगी मोर तोरेच खातिर।

तोरेच खातिर मैं हर जोडी टिकुली चटकाए हौं टिकुली चटकाए हौं ।
टिकुली चटकाए हौं टिकुली चटकाए हौं
हाथ म तोरेच नाव के गोदना गोदाए हौं गोदना गोदाए हौं।
गोदना गोदाए हौं गोदना गोदाए हौं ।
डबडबाए हावौं संगी मोर तोरेच खातिर थथमराए हावौं जोडी मोर तोरेच खातिर।
कइसे तोर मया के बखान करौं ग पंथी गावत हावौं जोडी मोर तोरेच खातिर ।

तोरे खातिर महादेव म जल मैं चढाए हौं जल मैं चढाए हौं ।
जल मैं चढाए हौं जल मैं चढाए हौं
सीतला माई मेर जाके जस-गीत गाए हौं जस-गीत गाए हौं।
जस-गीत गाए हौं जस-गीत गाए हौं ।
दिया बारे हावौं संगी मोर तोरेच खातिर निरजला हावौं जोडी मोर तोरेच खातिर।
कइसे तोर मया के बखान करौं ग पंथी गावत हावौं जोडी मोर तोरेच खातिर ।

Saturday 30 November 2013

घी गँवा गे पिसान म


ए दे काल शिव के बेटा के बिहाव होइस हे । आज डोला आही । मोरो घर नेवता आए हावय । महूँ हर बहू देखे बर जाहौं । लइका मन बर चॉउर-पिसान के अँगाकर रोटी केरा-पान म डार के बनाए रहेंव तेला  वो मन ल खवा-पिया देहेंव तेकर पाछू सँगवारी मन सँग महूँ पहुँच गयेंव बहू देखे बर ।

" कइसन सुघ्घर बहू लाने हस ओ माया !"  मैं हर शिव के महतारी ल कहेंव । फेर जब बहू हर पॉंव - परिस, तव मोर मन म भुसभुस गईस कि बहू हर अतेक दुरिहा ले कैसे पॉंव-परत हे , मोर गोड ल कैसे नइ छुवत ए ? अतका म का देखथौं कि पाछू म, सरला अऊ सुधा खुसुर-फुसुर करत हें। काय गोठियाथें कइके महूँ थोरिक कान दे के सुनेवँ तव सुधा कहिस -" बहू ल बने ढँग के नइ दिखय , तइसे लागत हे शकुन !"  गोठ आइस अउ चल दिस । "ओकर बहू ओ निपटय रे, हमन का करना हे छोंडव ।"  कइके बहू धरा के हमन अपन-अपन घर आ गएन।

एक दिन अचानक मैं हर 'आस्था' चैनल म देखेंव सीधा--प्रसारण आवत रहिस हे -" भैरवी के भजन।"  वो  छोकरी हर मीराबाई के भजन " मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई..." गावत रहिस हे । मोला अइसे लागिस जाना-माना ए छोकरी ल कहूँ तीर-तखार म देखे हावौं । थोरिक चेत करके देखेंव तव चीन्ह डारेंव - " अरे एहर तो माया के बहुरिया भैरवी ए। कइसन सुघ्घर राग म गावत हे ओ ! भजन ल सुन के माया मेर गयेंव, बधाई देहे बर। मैं माया ल कहेंव-" नवा बहू हर र्गजब सुघ्घर गाथे ओ माया ! मैं अभीच्चे देख-सुन के आवत हौं " माया कहिस "वोकर एही गुन ल देख-सुन के तो तोर बेटा हर भैरवी सँग बिहाव करे हे दीदी! तैं जानत हस के नहीं,नवा-बहू हर देखे नइ सकय । वोहर अँधरी हे।"

मोला अइसे लागिस जाना -माना मोला मूर्छा आवत हे आउ मैं गिरत हावौं फेर माया हर दूनों हाथ म पोटार के  मोला सँभालिस अऊ कहिस--" तैं हर ए सोंच दीदी ! कि तोर बेटा इंजीनियर हे तव तोर बहू घलाव हर बहुत बड गायिका हे । तोर बेटा ल तो भइगे एही गॉंव के मन जानथें फेर तोर बहू हर तो सरी दुनियॉं म नाव कमावत हावय । हमन कोनो घाटा म नइ अन दीदी ! - घी गँवागे पिसान म ।"                   
      

Saturday 23 November 2013

अगहन

धरम-करम म मन ल लगाबो करबो उच्च-विचार मनन।
एही  संदेशा  ले  के  आए हे गरिमा-गरू-गहन- अगहन ॥ 

अगहन  आगे  पवित्र  महीना  पावन-पथ के करव-परन ।
भगवान  कहे  हे  गीता म कि "महीना  म मैं औं अगहन॥"

काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह-मत्सर  के  होही  सतत  दमन।
पावन-पानी झलक के आइस निपुन-प्रवीन-गहन-अगहन॥

अगहन  के  गुरुवार  म  होथे  लक्ष्मी - महारानी  के पूजा ।
चौंक  पुराए  हे हर अँगना म लक्ष्मी-दाई कस नइए दूजा ॥

कमल के फूल चढाथें सब  झन करथें अपन मन के मंथन।
कर्म के फल ल सब झन पाथें सोंच-विचार लौ करौ-मनन॥

गीता- जयन्ती  के  पुण्य-पर्व  हर एहिच महीना म आथे ।
"योगः  कर्मसु   कौशलम्"  के   अर्थ  सबो  ल  समझाथे ॥ 

कर्म के मर्म ल जौन समझिस भव-पार हो गे अपने-अपन।
कृष्ण-कृपा बिन जिनगी बिरथा कतको कर ले चाहे जतन॥    

Saturday 16 November 2013

कहॉं पाबो बीरापान

बोरे  खायेंव  बासी  खायेंव  मुनगा - भाजी  संग  म ।
आ जा पहुना तहूँ  ह खा ले  मोर मया अउ  उमंग म ॥

फरा  बनायेंव पातर - पातर  तिल्ली  म  बघारत हौं ।
लाली मिरचा के फोरन दे हँव रस्ता तोर निहारत हौं ॥

जिमीकॉंदा  के  साग  चुरे  हे  वोमा  डारे  हौं  मुनगा ।
गरम -  मसाला  डारे  हावौं  आउ  डारे  हावौं  झुरगा ॥

आलू -  केरा  साग  चुरे  हे  सँग  म  हावय  चँउंसेला । 
तैं  नइ  आए  बैरी  अब  मैं  बॉंहटत  हौं  एला - वोला ॥

बोहार के भाजी रॉंधे हावौं  तेमा दही ल डारे  हावँव  रे ।
तसमई रॉंधे हावँव अब  मैं तोर बिन  कइसे  खावँव रे ?

कतको  हॉंसथौं  बोलथौं फेर मैं तोरेच सुरता करथौं  रे।
जी अटके हे तोर-बर मोर मैं छिन-छिन जीथौं मरथौं रे॥

खेडहा - भाजी  दार- डार  के  रॉंधे  हौं  तैं  आ जा  घर ।
ज्वालामुखी परे हे मन म तहूँ तो थोरकन अनुभव कर॥

खेत म करगा  बाढे  हावय पातर हो गए  हावय  धान ।
अपने घर म चेत लगा तैं आन के गोठ म झन दे कान॥

बोरे- बासी  खा लेथौं  मैं  चिख  लेथौं आमा के अथान ।
फेर खा लेथौं बिही-पान कोन लानही मोर बर बीरापान?

Thursday 31 October 2013

देवारी


 

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Sunday 20 October 2013

कार्तिक

राम बनवास के  दिन ह बीत गे अब तो  देवारी आवत हे।
भभरत  हावैं सब्बो मनखे सब ढोल - मंजीरा बाजत हे ॥

कार्तिक  बहुत पवित्र महीना सब झन  जागरूक रहिथें ।
सबो  नहाथें भिनसरहा  ले  पूजा अउ  पाठ  सबो  करथें ॥ 

रावण-राज के अँत हे निश्चित सत्य विजय हर शाश्वत हे।
मन म भरे हे भय फेर वोहर सच नियाव बर आश्वस्त हे ॥

कोन  छेंके  सकही  सुरुज  ल  ओ  तो  सब दिन ऊही न ।
भले  थोर  कन  बादर आही  सुरुज  तहॉ ले चमकही न ॥

मन म हावै भरोसा एक दिन होही  सज्जन के कल्याण ।
वेद शास्त्र  सब एही  कहत हें भले - मनुज के होही त्राण ॥

भिनसरहा ले कतकिहिन दाई नहा के पूजा कर डारिस ।
भोग - भात खाए बर जाबो मोछिन दाई नेवता दे डारिस ॥

मूँग- दार  म अमली  डरे हे कोचइ संग खिचरी चुरे हे न ।
अभी  घला  वो  स्वाद  ह मोर तो मन म मुँह म भरे हे न ॥

धन - तेरस   हर   पहिली आही  तेरह  दिया  बारबो  जी ।
लछमी - दाई  के पूजा  करबो असीस ल वोकर पाबो जी ॥

जम भगवान के चौदस आही तौन दिन चौदह दिया बारबो ।
वो दिन दिया पिसान के बनही जम देवता ल वोला चढाबो॥

रात- अमावस  के  आ  गए  हे  आकस  लक्ष्मी  बिराजे  हे ।
देश  दिया  कस  चमकत  हावय  सरग  तरी म आ गए हे ॥

घर- घर म एदे दिया बरत हे चाहे महल होय चाहे कुटीर ।
लछमीदाई सबल धन दय खावैं सब अपन-अपन घर खीर॥ 

अँजोरी-पाख के नौमी आ गे औंरा-तरी दार-भात खाबो ।
कुटुम-सहित जमो झन बैठ के औंरा के छॉव म गोठियाबो॥

औंरा  नेवता देवत हे हमला मिल -जुर के  बइठव  छॉव म ।
एक  दिन  बर  सहराती- लइका - मन  आ जावव  गॉव म ॥

देव- उठनी  के  दिन चौंरा म कुसियार के मँडवा बनही न ।
तुलसी - दाई के बिहाव होही  घर-घर फेर दिया ह बरही न ॥

तुलसी - बिहाव  के  पाछू  म  मनखे  मन  के होथे बिहाव ।
बनावन-चुरोवन चुरथे घर घर सब झन खाजा पपची खाव॥  




 

Friday 4 October 2013

छत्तीसगढ महतारी

चंदन    कस    तोर    माटी    हे     मोर    छत्तीसगढ    -    महतारी 
छत्तीसगढ    -    महतारी    ओ     माई     छत्तीसगढ    -    महतारी ।

तोर       कोरा      हे     आरुग     माई       तैं     सबके       महतारी
तैं      सबके    महतारी     ओ     माई       तैं      सबके      महतारी ।

धान   -    बौटका     कहिथें     तोला      धान      उपजथे       भारी 
धान     उपजथे     भारी     ओ      मैया     धान     उपजथे     भारी ।

रुख    -   राई     मन    ओखद    ए     सञ्जीवनी     डारी  -   डारी 
सञ्जीवनी    डारी   -    डारी     ओ     मैया   सञ्जीवनी   ए   डारी ।

असीस    असन     हे    नरवा  -   नदिया    पलथे    खेती  -   बारी
पलथे     खेती   -     बारी    ओ    मैया    पलथे     खेती   -    बारी ।

शीतला   -   माई    रोग   -   शोक     ले     करथे    तोर    रखवारी 
करथे      तोर     रखवारी    ओ    माई      करथे    तोर    रखवारी ।

लाली   -   ऑंखी    तोला    देखा   के    पूजत   हे   धर   के   आरी 
पूजत  हे   धर   के   आरी   ओ   मैया   पूजत   हे   धर   के  आरी ।

असुर    -   विदाई     कर     दे     माई     पावन    रहय     दुवारी
पावन     रहय     दुवारी    ओ    मैया     पावन     रहय     दुवारी ।

चंदन    कस    तोर    माटी    हे    मोर   छत्तीसगढ   -   महतारी
छत्तीसगढ   -    महतारी   ओ   मैया   छत्तीसगढ   -     महतारी ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई [ छ. ग. ]           

Wednesday 2 October 2013

कुँवार

मानुष जोनि के मरम ल समझव कर लव अपन-अपन उध्दार
एही गहन - गरिमा  मनखे  के  समझावत  हे  मनहर  कुँवार ।

पितर -  समर्पित  कुँवार -  महीना   कृतज्ञता   के  ज्ञापन  ए
पितर  ल  सब  देवता  कस  मानव  सरल- सहज संभाषण ए ।

घेरी -  बेरी   भारत  म  जनमँव  नर -  तन   पावौं   बारम्बार
शरद  के  कुनकुन  घाम  ल  ले के आ गए हावै हितवा कुँवार ।

जीवन   बहुत   अमोल   हे  भाई  बडभागी   मन  ल  मिलथे
लख - चौरासी  जनम  भटक  के  नर- तन के कँवल खिलथे ।

एही  जनम  हो  जावय  आखरी  हे  करुणा  के  सिंधु- अपार
तोर  शरण  म  हम  आए  हन  कर  दे  प्रभु  जी  बेडा -  पार ।

घेरी - बेरी  गिरेन - हपटेन  फेर  कहॉं  थिराए  हन  भगवान
आजे-आज एदे अभी-अभी म जम-कुरिया म पहुँचिस प्रान ।

तहीं  बचा  ले   प्रभु  अब  मोला  यक्ष -  प्रश्न  ले  तहीं  उबार
कर्म   कहॉं   मोर   बस  म  हावै  तहीं  खेवैया  हौं  मँझधार ।

कभु   जान   के   कभु  अनजाने  दुख  देहेंव  प्रानी  मन  ल
मान - अपमान  एक  नइ समझेंव दुखी करेंव संगी मन ल ।

पर- उपकार  के  महिमा  समझव  एही ए जिनगी के सार
सोनहा- घाम  ल  धरे  कुँवार  ह करथे सब झन के उपकार ।

शारदीय- नेवरात  ह  आ गे  गावत  हें  सब  जस  के गीत
मॉं  के  महिमा  सब  ले बढ के तहूँ मान मोर मन के मीत ।

सब  झन  मॉं  के  शरन  परे  हें मॉ मोर जिनगी होगे भार
सबके   बिगडी   ओही   बनाथे   मोरो   डोंगा   करही  पार ।

निसर्ग -  नहाए  हे  गोरस  म  चंदा  के   हे  शीतल - छॉंव
सरग  के  सुख  ल  इहें  भोग  ले चाहे  बस्ती हो चाहे गॉंव ।

पुन्नी - रात  कमलिनी  संग  म मन के खुला हावय दुवार
तहूँ ह जी अउ सब ल जियन दे समझावत हे उज्जर कुँवार।

चंदा   सबके   मन - मोहे   हे   डोलत   नइए  मनखे - मन
जइसे  कहत हे पुन्नी परी ह वोइसने नाचत हें सब्बो झन ।

कुँवार  महीना  सुखद  हे  सुघ्घर  समझाथे  पोथी  के सार
दुनों  डहर  दुनियॉं  दुधिया  हे मनखे मन के दिया ल बार । 

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]

   

Friday 27 September 2013

छत्तीसगढ

देश की आजादी हेतु प्राणों की आहुति दे दी वीर नारायण की तरुणाई को नमन है
जाति पाति ऊँच नीच भेद भाव को मिटाया छत्तीसगढ़ के गाँधी सुंदर भाई को नमन है .

रामजी को जूठे बेर प्रेम से खिलाया जिसने छत्तीसगढ़ की बेटी शबरी माई को नमन है
छत्तीसगढ़ की संस्कृति को दुनियाँ में बगराने वाले देवदास नेल्सन तीजन बाई को नमन है।

शकुन्तला शर्मा
भिलाई[[ छ ग ]


शबरी

बोइर चाखत है   शबरी आए राम -जी आजहु   आंगन   में
खट्टे फेंकत मीठे खवावत है भई बावरी आनन फ़ानन में।
जूठे बेर न भाए हैं लक्ष्मण को छोड़े प्रेम पगे बेर कानन में
शक्तिबाण के बेरहि बेर वही बन संजीवनी गयो आनन में।

Monday 2 September 2013

भादो

डोंगा म बैठ के भादो आगे झर झर झर गिरथे  पानी 
हरियर -  रंग  के लुगरा  पहिरे आवत हे जल के रानी।  

रद रद रद रद चूहैय  छान्ही  ओरवांती छर छर  बाजै
किसम किसम के फूलपान ले भादो घर अँगना साजै।

गोडा मन म पुटु जाम गे भुइयाँ हर  हो  गए  हे  धानी
हरियर - रंग  के लुगरा  पहिरे आवत हे जल  के रानी।

खेत दिखत हे हरियर हरियर मन माते हे पोरिस भर
बहुरा - गाय  के होथे पूजा कहूँ  झन तरसै गोरस बर।

हाँसत हावै नाना जी अउ मुस्कावत हावय मोर नानी
हरियर - हरियर लुगरा पहिरे आवत हे जल के रानी।

खमरछठ के पूजा होत हे सगरी खनाय हे अँगना  म
महतारी  मन कथा सुनत हें लइका झूलय पलना म।

तप  हर  बहुत  जरूरी  होथे कहिथें धीर - वीर  ज्ञानी
हरियर - हरियर लुगरा पहिरे आवत हे जल के रानी।

आठे - कन्हैया बगरावत हे कहत  कहानी जोगी  के
वोही जगद - गुरु प्रभु ल बंदौं जपौं नाव वो जोगी के।

वोही महानायक द्वापर के धीर - वीर  विभु- वरदानी
हरियर- हरियर लुगरा पहिरे आवत हे जल के रानी।

नोनी- मन आहीं तीजा म अगोरत हें महतारी- मन
नोनी के सुरता आथे तव मन होथे भारी - भारी तन।

नोनी के गोड़ ह खजुवावत हे दाई के आँखी म पानी
हरियर - हरियर लुगरा पहिरे आवत हे जल के रानी।

गणेश चौथ हर आ गे अब तो गजहिन होही गाँव हर
दस दिन ह हिरना हो जाही फेर सुन्ना होही गाँव हर।

रेङ्गव रेङ्गव जिनगी भर अतके समझ लेतिस प्रानी
हरियर - हरियर लुगरा  पहिरे आवत हे जल के रानी।

शकुन्तला शर्मा ,  भिलाई  [ छ  ग  ]

                                           
                                          

 

Wednesday 21 August 2013

भोजली


देवी गँगा देवी गँगा लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा हमरो देवी भोजली के भींजै आठो अँगा अहो देवी गँगा ।
गौरी गणपति के प्रथम होही पूजा प्रथम होही पूजा गौरी गणपति सही कहूँ नइए दूजा अहो देवी गँगा ।

हाथी के मुँहरन हे मुसुआ सवारी हो मुसुआ सवारी बलबुध दिही प्रभु जी महिमा हे भारी अहो देवी गँगा
देवी गँगा देवी गँगा लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा हमरो देवी भोजली के भींजै आठो अँगा अहो देवी गँगा ।

दाई ददा के सेवा करिन पाईन मेवा हो पाईन हें मेवा सबो झन करव अपन पितर के सेवा अहो देवी गँगा ।
देवी गँगा देवी गँगा लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा हमरो देवी भोजली के भींजै आठो अँगा अहो देवी गँगा
अहो देवी गँगा ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई [छ ग ]

Tuesday 13 August 2013

सोन चिरैया


सोन - चिरैया  बनाबो  भारत  ल  सोन - चिरैया  बनाबो । 
परदेशी - हाट ल भगाबो  भारत ल सोन- चिरैया  बनाबो

खेती - किसानी ल पहिली बचाबो 
नई   डारन  जहरीला  -  खातू  गोबर -  खातू   ल  डारबो। 
सोन - चिरैया  बनाबो  भारत  ल  सोन - चिरैया बनाबो । 

गौ -  माता के बने सेवा ल करबो
गोरस  के  तस्मै  खाबो  भारत  ल सोन- चिरैया बनाबो । 
सोन - चिरैया  बनाबो  भारत  ल  सोन - चिरैया  बनाबो

देशी  ल  खाबो  देशी   पहिरबो
पूँजी  ल  अपन  बढाबो  भारत ल सोन - चिरैया  बनाबो ।
सोन - चिरैया  बनाबो  भारत  ल  सोन - चिरैया  बनाबो

आसन  ल करबो  प्राणायाम  करबो 
तन मन ल स्वस्थ बनाबो भारत ल सोन चिरैया बनाबो
सोन - चिरैया बनाबो  भारत  ल  सोन -  चिरैया  बनाबो । 

स्विस बैंक के पैसा ल लहुटा के लानबो
जूना  प्रतिष्ठा  ल  पाबो  भारत  ल  सोन - चिरैया  बनाबो । 
सोन - चिरैया  बनाबो  भारत  ल  सोन -  चिरैया  बनाबो । 

शकुन्तला शर्मा ,  भिलाई [ छ  ग  ]

Wednesday 7 August 2013

गज़ल

आगे   बादर  पानी  के   दिन  अब   तो  पानी -  पूरा  आही 
बीत  गे  बोरे -  बासी  के  दिन  दार -  भात  ह  अब   भाही।

फरा  अंगाकर  रोटी  चीला - चटनी  संग  सब  खावत   हें
खेत - खार  म  कजरी - करमा  भोजली  गॉंव-गॉंव  गाही ।

अंगना  गली  खोर  म चिखला नोनी खेलय  कोन मेरन
सम्हर  पखर  के बादर राजा  सबो  झन ल  नाच  नचाही ।

संग  म  पानी  के  झिपार  के  गेंगरुआ  परछी   म  आगे
भौजी  निच्चट  छिनमिनही  हे  ननंद वोला अब  डेरवाही ।

चिक्कन होगे सबके  एडी  'शकुन' सबो झन भभरत  हावैं
चौमास ह कोठी ल भर दीही जुर मिल सबो ददरिया गाहीं ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
shaakuntalam.blogspot.com

गज़ल

रिमझिम  पानी  म   मन   मंजूर  हो  जाथे  काबर
बादर   के   गरजन  मोला  अब्बड  डेरवाथे  काबर ?

पानी  गिरथे तव  ए  माटी बिकट   मम्हाथे काबर
रिमझिम  पानी  ह  मोर  मन ल  हरियाथे  काबर? 

नोनी  आही तीजा पोरा म अगोरत हावय महतारी
रहि  रहि  के  नोनी  के गोड  हर  खजुआथे  काबर?

बादर  आथे  तव  मस्त  मगन  होथे  किसान  हर
तरिया हे  मतलाय  तभो मोर मन उजराथे काबर ?

'शकुन'  अगोरत  हे  मनखे  सावन  अउ  भादो  ल
धक धक धक सावन आगे मन ल धडकाथे काबर ?
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
shaakuntalam.blogspot.com

गज़ल

बाबा  हर  सरकार  ल रामलीला  ले चुपे-चुप चेताइस  हे
जनतंत्र  के महत्व ल  गॉंधी  के  भाखा  म समझाइस हे।

बाबा तैं  अकेला  नइ  अस  देश  तोर  संग  ठाढे  हावय
देश  ह  सत्याग्रह  ल  आज  तोरेच  कंठ   ले गाइस  हे  ।

बाबा  तैं  फिकर  झन   कर   जनता  जाग  गए  हावय
जयप्रकाश   के  ऑंदोलन  हर   आज  रंग   लानिस   हे ।

राज  करत -  करत  आज  शासन  हर  दुस्शासन  होगे
मिश्र  सरिख  माहौल आज  हमर  भारत  म  आइस  हे ।

' शकुन '  जा  तहूँ  हर  गेरुआ  टोपी ल पहिर  के आ जा
करिया अंग्रेज ल बिदारे ब गॉंधी गेरुआ पहिरे आइस  हे ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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गज़ल

रंग  म  बूड  के  फागुन  आ  गे  बइठ  पतंग  सवारी  म
टेसू   फूल   धरे   हे   हाथ   म  ठाढे   हावय  दुवारी   म  ।

भौंरा  कस  ऑंखी   हे  वोकर  आमा  मौर   हे  पागा  म 
मुच - मुच  हॉंसत कामदेव  कस ठाढे  हावय  दुवारी म ।

मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध ह  बांदी  हो  गे आज
लाज  लुकागे  कहॉं  कोजनी  फागुन  खडे   दुवारी   म ।

पिंवरा लुगरा पोलका पहिरे मंदिर जावत रहेंव मैं आज
दार - भात  म  करा  ह  पर  गे  फागुन  खडे  दुवारी  म ।

रस्ता  देखत  रहेंव  बरिस  भर  कैसे  वोला  बिदारौं  मैं 
'शकुन'  तैं पहुना  ल  परघा  ले  ठाढे  हावय  दुवारी  म ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
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गज़ल

आम - लीम- बर- पीपर - पहिरे  छत्तीसगढ  के  सबो  गॉंव
नदिया  नरवा  पार   म   बइठे  छत्तीसगढ  के  सबो  गॉंव ।

धान-बौटका कहिथें  सब झन किसम  किसम के होथे धान
हरियर - हरियर  लुगरा  पहिरे  छत्तीसगढ  के  सबो  गॉंव ।

हर   पारा  म  सुवा   ददरिया   राग   सुनावत  रहिथे   ओ
संझा  कन  जस  गीत  ल  गाथे  छत्तीसगढ  के सबो ग़ॉंव ।

भिनसरहा  ले  गॉंव  के  फेरी  भजन- मण्डली करथे  रोज
देश   के  पोटा  म   लुकाय   हे  छत्तीसगढ  के  सबो  गॉंव ।

'शकुन ' जगावव  जमो गॉंव ल गॉंव  म बसथे भारत मोर
खनखन खनखन धान उगलत हे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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Sunday 4 August 2013

सावन


सावन के का बात हे भाई सावन तो मन भावन ए
सबो  महीना आथे- जाथे फेर सावन तो सावन ए ।

हरेली के तिहार हर  आथे सावन अमावस के दिन
गाँव म सब झन गेड़ी चढथें हरेली  तिहार के दिन ।

नांगर बैला के होथे पूजा सब  के मन होथे हरियर
हरेली ल कहिथें हरियाली शहरिहा होगे हरेली हर  ।

राखी  के तिहार लानथे  एही सावन के  पुन्नी  हर
मया ल भाई अउ बहिनी के सुरता देवाथे राखी हर ।

पुन्नी के दिन ह शुभ  होथे सबो सुख मन सकलाथें
 संस्कृत के सुरता करथें फेर संस्कृत दिवस मनाथें ।

संस्कृत परम ध्येय मनखे के मोक्ष द्वार म अमराथे
संस्कृत के साहित्य घला के सबो गोठ ल समझाथे ।

बाबा  अमरनाथ के दर्शन राखी के दिन करथें सब
बिकट भीड़ उमड़े रहिथे सबो सुगम हो गए हे अब  । 

सावन सोमवार ए शिव के शिव  ए सबके रखवाला
शिवजी  हर तो अवढर दानी ए बिन माँगे देने वाला । 

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग  ]

  

Sunday 28 July 2013

नोनी कौडी कानी हो गे

                                                

मनु के देश म देख ले तैं हर नोनी कौड़ी-कानी हो गे

काकर मेर गोहरावय कइसे नोनी कौड़ी कानी हो गे ।

डाक्टर इंजीनियर सब्बो के एकेच हाल हे कुंदरा म

भर-पेट दार-भात नई पावय नोनी कौड़ी कानी होगे ।

नेवरात म होवत हावय कइना-पूजा जगहा-जगहा

तभो ले नीयत नई सुधरे हे नोनी कौड़ी कानी हो गे ।

महतारी भौजी बहिनी बेटी सबके बिकट दुर्दशा हावै

कम्प्यूटर कस बौरावत हावै नोनी कौड़ी कानी होगे ।

' शकुन ' बचा नोनी के थरहा बंश-बढ़ाथे बेटी -माई

नोनी बिन अँगना सुन्ना हे नोनी कौड़ी कानी हो गे ।


शकुन्तला शर्मा, भिलाई  [ छ. ग. ] 

Thursday 25 July 2013

ठुमरी


बैरी  तैं  नई  आए  भिनसरहा  हो  गईस

सुकुवा ह मोला निनासिस अऊ चल दिस।

 

पलक के  बहिरी म रस्ता बहारेंव

रस्ता म आँखी के पुतरी दसाएंव

दार अऊ भात  म करा  एदे  पर  गईस

बैरी तैं  नई आए  भिनसरहा हो गईस ।

 

सब्बो संगवारी मन झूलना झूलत हें 

सावन म जिन्दगी के मज़ा लेवत हें

तोर बिना जिनगी ह अदियावन हो गईस

बैरी  तैं  नई  आए  भिनसरहा  हो  गईस ।

 

शकुन्तला शर्मा, भिलाई [ छ. ग.  ]

Wednesday 24 July 2013

ददरिया



                   


मुँहरन हर गजब सुघ्घर  हावय तोर

तोरे डहर लगे रहिथे मन हरहा मोर ।

चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर

फुडहर डहर फुनगी फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर ।

आनी- बानी के सिंगार करय न

घेरी- बेरी बेनी गाँथय गोंदा फूल खोंचय

पिचकाट अब्बड़ करय तेला का बतावौं

चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर

फुडहर डहर भईया फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर ।

मेला-मडई म ओदे किन्दरत हे न

रेंहचुल म झूलत हे मुर्रा-लाडू खावत हे

मोला ठेंगा देखावत हे मोर मन मोह लिस न

चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर

फुडहर डहर फुनगी फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई [ छ. ग, ]

Thursday 18 July 2013

ठुमरी



सावन  ह आ गे तैं आ जा  संगवारी 
झटकन नइ आए तव खाबे तैं गारी ।

नरवा अऊ नदिया म पूरा ह आए हे 
मोर मन के झुलना बादर म टँगाए हे
हरियर- हरियर हावै भुइयॉं महतारी 
झटकन नइ लहुटे तव खाबे तैं गारी ।

बड सूना लागत हे सावन म अँगना
रोवत हे रहि-रहि के चूरी अउ कंगना ।
सुरता  ह  धर  के  ठाढे  हावय  आरी
झटकन नइ आए तव खाबे  तैं गारी ।

सावन  ह आगे  तैं आ जा  सँगवारी 
झटकन नइ आए तव खाबे तैं गारी ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई { छ. ग. }
                        

Wednesday 22 May 2013

भरथरी

                                 

ए दे नोनी पिला के जनम ल  धरे तोर धन भाग हे ओ मोर नोनी
तैं ह बेटी अस मोर    तैं ह बहिनी अस मोर    संगवारी अस मोर
महतारी अस  महतारी अस   मोर नोनी...........।.

पारस पथरा ए जस ल बढाथे मइके के ससुरे के मोर नोनी
सब ल मया दिही     भले पीरा सइही         भले रोही गाही
ओही  डेहरी म  ओही  डेहरी  म  मोर नोनी.........।


लइका  ल  कोख  म  ओही  धरथे  भले  ही  पर धन  ए मोर नोनी
ओला झन हीनव ग   ओला झन मारव ग   थोरिक सुन लेवव ग
गोहरावत हे  गोहरावत हे  मोर नोनी ...............।

                                शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]

Wednesday 8 May 2013

महतारी

                            

महतारी    हर   महतारी   ए   देवी -  देवता   मन    ले   बड़े
माँ  के  जनम  ह  पर बर  होथे ओकर  त्याग हे सब  ले बड़े |

माँ  पहिली  गुरु  ए  मनखे  के  ओही   सिखोथे  सत  आचार
व्यक्तित्व  मनुज  के  वोही  बनाथे  माँ  ए  डोंगा  के  पतवार |

महतारी   के  पेट  म   पलथे   नव   महीना   ले   सब   संतान
सफल  नागरिक  वोही  बनाथे  वो  हर  ए  सब  गुन  के  खान |

महतारी   बिन   राष्ट्र   प्रगति   हर   धोखा   ए   मृगतृष्णा   ए
जियत   तिरिथ   ए   माँ  भुइयाँ  के  माँ  के  भाखा   देशना ए |

लइका   के  पालन  -  पोषण   बर  तप   करथे   महतारी   हर
लइका  ल  सुक्खा म  सुताथे   ओद्दा   म  सुतथे  लइका   बऱ |

अपन   तन   के   रस  ल    पियाथे   संजीवन   ए  लइका   बर
अपन    लहू  ले   ओला   पोंसथे  सब   ले  आघू   अतका   बर |

वोहर  घुटकथे  हमर  अशुभ  ल  माँ  ए शिव  भगवान   सरिख
सब जानत हे तभो ले चुप-चुप रहिथे बिल्कुल अनजान सरिख |

अधिकार  शब्द   ल  माँ  नइ जानय  त्याग  तपस्या जीवन  ए
अपन - अपन  मुँहरन  ल  देखव   माँ   लइका   बर   दरपन  ए |

माँ   के  गोड़  म   तिरिथ  बरत   हे   मंत्र   सरिख  ओकर   बानी
माँ  महिमा  मानव  मनखे   मन  जनम   गँवा   झन   रे   प्रानी |

                              शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]  

Tuesday 23 April 2013

गारी गीत

                        


केरा - आलू  साग ल समधी  कइसन  खावत  हावव  जी

समधिन  कभु  खवाए  नइये  तइसन खावत  हावव जी l

हंड़िया  भर - भर  खावत  हावय कइसन  ररहा हावय जी

गारी सुनत - सुनत  खावत हे कइसन निर्लज हावय जी l

लाई - बरी  ल देखे  नइ  अव  तइसन  खावत  हावव  जी

भागत  नइ  ए  लाई - बरी  ह धीर  लगा  के  खावव  जी l

गुर के पपची  बहुत मिठावत  हावय  तुंहला समधी  जी

झउहा - झउहा खा  के  हांसत  भागत हावय  समधी जी l

लडुआ अबड़ मिठावत हावय कोटना भर झन खावव जी

चपर- चपर मुँह बाजत हावय अंचो लेवव अब जावव जी l         

      

                                      शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]

Wednesday 3 April 2013

लोरी




ऑंखी म आ के समा ओ निंदिया आ जा ओ आ जा
नोनी ल लोरी सुना ओ निंदिया आ जा ओ आ जा।
नोनी हर दिन भर खेलिस कूदिस हे
अँगना अउ परछी ल एक करिस हे ।


नवा बल बुध देहे आ ओ निंदिया आ जा ओ आ जा
नोनी ल लोरी सुना ओ निंदिया आ जा ओ आ जा ।
गोड झन बजाबे चुपे - चुप आबे
सुरुज ऊए के पहिली तैं हर जाबे ।


किस्सा कहानी सुना रे निंदिया आ जा रे आ जा
अंचरा ओढा के सुता रे निंदिया आ जा रे आ जा ।
नोनी ल लोरी सुना रे निंदिया आ जा रे आ जा
झटकुन अब तैं हर आ रे निंदिया आ जा रे आ जा ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]

अमृत-संदेश से साभार

छत्तीसगढ़ी लघुकथा संग्रह - करगा

फागुन

रंग म बूड. के फागुन आ गे बैठ पतंग सवारी म
टेसू फूल     धरे  हे वो हर ठाढे. हावय दुवारी म।

भौंरा  कस   ऑंखी  हे  वोकर आमा- मौर हे पागा म
मुच-मुच हॉंसत कामदेव-कस ठाढे. हावय दुवारी म।

मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध बॉंदी हो गए हे आज
लाज   लुका  गे  कहॉं को जनी फागुन खडे. दुवारी म ।

पिवॅंरा लुगरा पोलका पहिरे मंदिर जावत रहेंव मैं आज
दार  -  भात  म  करा  ह  पर गे फागुन खडे. दुवारी म।

 रस्ता देखत रहेंव बरिस भर कइसे वोला बिदारौं मैं
’शकुन‘ तैं पहुना ल परघा ले ठाढे. हावय दुवारी म ।

शकुन्तला शर्मा
288/7 मैत्रीकुंज
भिलाई 490006 दुर्ग छ. ग.
अचल 0788 2227477 सचल 09302830030