जतके कथौं भुलाहौं तोला तोर ओतके सुरता आथे ।
मानय नहीं बात मोर मन ह तोर अब्बड सुरता आथे ।
प्रेम से तैं हर गोठिया लेते मैं ओतके म जी जातेंव ।
का जानवँ तोर मन म का हे तोर अब्बड सुरता आथे ।
बिना भरोसा प्रेम नइ होवय हमला काकर डर हावय ।
तोला मैं कइसे समझावौं तोर अब्बड सुरता आथे ।
तहूँ मया करथस मोला ए बात ल मैं हर जानत हौं ।
तोर ऑखी तोर कस लबरा नइए तोर अब्बड सुरता आथे।
'शकुन' मया हर कहॉ लुकाथे भींजे माटी कस मम्हाथे ।
कभु कोनो मेर झन कहिबे तैं तोर अब्बड सुरता आथे ॥
मानय नहीं बात मोर मन ह तोर अब्बड सुरता आथे ।
प्रेम से तैं हर गोठिया लेते मैं ओतके म जी जातेंव ।
का जानवँ तोर मन म का हे तोर अब्बड सुरता आथे ।
बिना भरोसा प्रेम नइ होवय हमला काकर डर हावय ।
तोला मैं कइसे समझावौं तोर अब्बड सुरता आथे ।
तहूँ मया करथस मोला ए बात ल मैं हर जानत हौं ।
तोर ऑखी तोर कस लबरा नइए तोर अब्बड सुरता आथे।
'शकुन' मया हर कहॉ लुकाथे भींजे माटी कस मम्हाथे ।
कभु कोनो मेर झन कहिबे तैं तोर अब्बड सुरता आथे ॥
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