Wednesday 5 November 2014

मन ले तैं बाहिर नइ जावस

इहॉ - ऊहॉ  ले  किंदर  के आथौं  फेर  तोला मन म मैं पाथौं
मन  म  तैं  कब  के बइठे हस मन ले तै बाहिर नइ जावस ।

सँगी  मन  मसखरी  करत हें फेर मोर मन लइका कस रोथे
रोज के मैं हर मन्दिर जाथौं मन ले  तै  बाहिर नइ जावस ।

भभर के तोर सँग कई घौं बोलेंव फेर तैं हर काबर इतराथस
मोर मन म तैं राज करत हस मन ले तैं बाहिर नइ जावस ।

एक - एक दिन कर - कर के अब जिनगी के संझा हर आ गे
का जानवँ तोर मन म का हे मन ले तैं  बाहिर  नइ जावस ।

कइसे जियत हवँ मैं का जानवँ मोला मन भर कोन खोजथे
मैं हर काकर हितवा हो गैं फेर मन ले तैं बाहिर नइ जावस ।

वोकर भरोसा छोंड  'शकुन'  तैं अपन अकल ले  ले  तैं काम
समय ह सरपट भागत हावय मन ले तैं बाहिर नइ जावस ।

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