Friday, 25 July 2014

अब शहर गॉव कती भागत हे

बोले ले अडबड  नीक  लागत हे
अब शहर गॉव कती भागत हे ।

शहर  म  अब्बड  भीड  बाढ गे
सोंचे  म  अलकर  लागत  हे ।

मनखे गोरस के स्वाद भुला गे
गॉव म अलमलहा  पावत  हे ।

लइका मन गॉव म बड खुश हें
मुर्रा मुराई मन भर खावत हें ।

अगहन  के  गुरबार  म ओ  दे
अँगना  भर  चौंक  पुरावत हे ।

मोर  परोसी  गॉव  म  बस  गे
मोरो  मन अब ललचावत  हे ।

1 comment:

  1. प्रभावशाली रचना है।
    निजभाषा में इस स्तरीय रचना का स्वागत है।

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