फागुन
आइस नाच नचाइस, बपरा - मनखे के का दोष
सुग्हर
रसदा राम दिखाइस, कमती मा कर ले संतोष ।
टेसू
- मटमट ले-- फूले हे, झर - गे वोकर सब्बो - पान
आमा
- लटलट ले मौरे - हे, मम्हावत हे मारय - बान ।
कुहू
कुहू कहिके कुलकत हे,कोयल घोरय मधुर मिठास
देस
राग मा मन मटकत हे, मन के बोली हावय खास ।
महर
- महर मम्हावत- हावय, गोंदा के देखव - सिंगार
देशी
खुशबू बहुत मिठावय, एकर महिमा अपरम्पार ।
फागुन-
महिमा सब ला भाथे, हर मनखे ला आथे रास
मनखे
हर मन भर सुसुवाथे, हर- पीरा हर होथे खास ।
अमलतास
के आधा माला, परमात्मा के कथा सुनाय
अपन
पीर ला कहिबे काला हाँसव गावव पीर लुकाय ।
फागुन
वेद वाक्य जनवाथे, छोड - लबारी बोलव साँच
मन
के सब्बो तमस मिटाथे, आवय नहीं साँच ला आँच।
मन
भावन फागुन मा आते, मन मोहन तँय मोरो गाँव
मनहर- मुरली तान सुनाते, परम्परा - पीपर के छाँव ।
शकुन्तला
शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो.
9302830030