Thursday 16 March 2017

आल्हा




फागुन आइस नाच नचाइस, बपरा - मनखे के का दोष
सुग्हर रसदा राम दिखाइस, कमती मा कर ले संतोष ।

टेसू - मटमट ले-- फूले हे, झर - गे वोकर सब्बो - पान
आमा - लटलट ले मौरे - हे, मम्हावत हे मारय - बान ।

कुहू कुहू कहिके कुलकत हे,कोयल घोरय मधुर मिठास
देस राग मा मन मटकत हे, मन के बोली हावय खास ।

महर - महर मम्हावत- हावय, गोंदा के देखव - सिंगार
देशी खुशबू बहुत मिठावय, एकर महिमा अपरम्पार ।

फागुन- महिमा सब ला भाथे, हर मनखे ला आथे रास
मनखे हर मन भर सुसुवाथे, हर- पीरा हर होथे खास ।

अमलतास के आधा माला, परमात्मा के कथा सुनाय
अपन पीर ला कहिबे काला हाँसव गावव पीर लुकाय ।

फागुन वेद वाक्य जनवाथे, छोड - लबारी बोलव साँच
मन के सब्बो तमस मिटाथे, आवय नहीं साँच ला आँच।

मन भावन फागुन मा आते, मन मोहन तँय मोरो गाँव
मनहर- मुरली तान सुनाते, परम्परा - पीपर के छाँव ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो. 9302830030 



किरीट सवैया – 8 – भगण

        किरीट सवैया – 8 – भगण

आवत हे अब साल नवा नव, आस भरे मन – मंदिर मानव
देव कहौ तन ला मन माधव, आज सबो सच ला पहिचानव।

सोच बने गति पा मति पा अब, सोच जगा अउ सोच सुधारव
जीवन के सुर ताल बजै शुभ, राग धरौ सुर मा अब गावव ।

आइस हे नवरात बने सब, नौ - दिन के महिमा – सँहरावव
मातु बिना अदियावन हे शुभ – भाव धरौ तव तो परघावव ।

सार बने धर ले मन मा तव, मान मृदंग मया मन जानव
चैत गहूँ उरदा मसरी - धर, नाचत – लानत ढोल बजावव ।
    
शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो.- 93028 30030