ममा - दाई के हाथ के रॉधे
मुनगा भाजी कतेक मिठावय ।
कतका व्याकुल हो जावै जब
मोर ऑखी म ऑसू आवय ।
अॅगठी धरा के मोला वोहर
रोज मदरसा म अमरावय ।
पञ्चतंत्र कस रोज कहानी
वोहर मोला रोज सुनावय ।
गीत के बीजा वोही बोइस
गा-गा के मोर मेर गोठियावय ।
शकुन ह खाथे कइके वोहर
ठेठरी - खुर्मी अबड बनावै ।
'शकुन' रोवत हे सुरता करके
ममा-दाई अब कहॉ ले आवय ?
मुनगा भाजी कतेक मिठावय ।
कतका व्याकुल हो जावै जब
मोर ऑखी म ऑसू आवय ।
अॅगठी धरा के मोला वोहर
रोज मदरसा म अमरावय ।
पञ्चतंत्र कस रोज कहानी
वोहर मोला रोज सुनावय ।
गीत के बीजा वोही बोइस
गा-गा के मोर मेर गोठियावय ।
शकुन ह खाथे कइके वोहर
ठेठरी - खुर्मी अबड बनावै ।
'शकुन' रोवत हे सुरता करके
ममा-दाई अब कहॉ ले आवय ?
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteबेहद उम्दा और बेहतरीन ...आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मुकेश के जन्मदिन पर.