Monday, 7 April 2014

शकुन अगोरत हे मनखे सावन भादो ल

पानी  गिरथे  तव  मन  हर  मँजूर  हो  जाथे  काबर
बादर  के  घन-घन  गर्जन  तोला  डेरवाथे  काबर ?

बौराथे  बादर  पानी  गिरथे माटी  ह काबर मम्हाथे
रिमझिम  पानी  म  मनखे- मन  हरियाथे काबर ?

तीजा-पोरा  म  नोनी आही अगोरत  हावै  महतारी
नोनी  के  तरपौंरी  हर  घेरी-बेरी  खजुवाथे काबर ?

रिम-झिम  पानी  म   फेर  किसान  हर  जी  जाथे
तरिया हे  मतलाय  तभो मन हर  उजराथे काबर ?

'शकुन'  अगोरत  हन  सब  झन  सावन - भादो  ल
सावन आगे धक-धक धक मन ल धडकाथे काबर ?

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