Saturday 19 September 2015

बेटी बचावव


                        एकांकी
पात्र - परिचय
1- रामलाल - घर के मुखिया । उमर - 50 बरिस ।
2- कमला  - रामलाल के गोसाइन । उमर - 45 बरिस ।
3- पवन - रामलाल के बेटा । उमर - 26 बरिस ।
4 - पूजा - कमला के बहू । उमर - 22 बरिस ।
5 - शोभा- कमला के बेटी । उमर - 21 बरिस ।
6 - श्याम - पूजा के भाई । उमर - 24 बरिस ।

                      पहिली - दृश्य 


[ गॉव के घर । अंगना हर गोबर म लिपाय - बहराय - औंठियाय - चौंक पुराय । रामलाल हर अपन सुआरी कमला ल कुछु समझावत हे , कपार म सलवट पर गए हे , तेन हर दुरिहा ले दिखत हे ।]

रामलाल - अपन बहू ल समझा दे , अब ओहर नौकरी नइ कर सकय । हमर घर के बहू - बेटी मन नौकरी नइ करैं । ए बात ल वोहर जतके जल्दी समझ जावय ओतके अच्छा ।
  कमला- बहू नौकरी करत हे तेमा का नकसान हे ? अब जमाना बदल गए हे , हमुँ मन ल जमाना के संगे -संग रेंगे बर परही, नइतो हम पछुआ जाबो । जौन दुख ल मैं भोगे हँव तेला मोर बहू ल नइ भोगन दवँ ।
रामलाल - तोर संग तो गोठियाना अबिरथा हे ! हर बात के उल्टा मतलब निकालथस । तोर भेजा म तो गोबर भरे हावय ।
कमला - महूँ हर तुँहर बारे म अइसने कह सकत हँव ! मोर अच्छाई ल मोर कमजोरी झन समझव ।
रामलाल - हे भगवान ! मोर गोसैंनिन ल थोरिक अक्कल दे दे ।
कमला - अक्कल के जादा जरूरत तुँहला हावय ।
          [ बहू आइस हे ]
पूजा - दायी ! मैं हर ऊँकर मन बर चाय बनावत हौं तव तुहूँ मन बर बना लवँ का ?
कमला - हॉ बेटा ! बना ले, चाय के बेरा तो हो गए हे ।
रामलाल - हमर बहू कतेक अक्कल वाली हे ! देख हमर कतका ध्यान रखथे ? कोजनी शोभा मेर कइसे व्यवहार करही ? एही बात के भारी चिन्ता हे ।

कमला -मैं हर तुँहला कतका समझायेंव कि सच बात ल बता दव फेर तुँमन नइ मानेवँ ! अब मैं का करौं ?
पूजा- दायी ! एदे - गरमागरम चाय अऊ संग म आलू - भॉटा के भजिया ।
कमला - बेटी ! तैं चाय ल पॉच - कप कैसे बनाए हस ? हमन तो चारे झन हावन न ?
पूजा - दायी ! तैं शोभा ल कइसे भुला गए ? वोहर घर म नइये का ?
[ रामलाल के हाथ ले चाय हर छलक जाथे अऊ कमला के हाथ ले चाय के कप हर गिर जाथे अऊ कप के फूटे के आरो ले सबो सुकुर्दुम हो जाथें । सास - ससुर ल हडबडावत देख के पूजा हर कहिस ]
पूजा - तुमन चिन्ता झन करव । मैं एला सकेलत हौं ।
[ वोहर कप के कुटा मन ल बिन के ले जाथे ]

पूजा - दायी ! ए दे चाय ।

[ पवन अऊ पूजा सरी घर ल खोज डारिन फेर शोभा वोमन ल नइ मिलिस । थक - हार के पवन हर अपन दायी ल पूछिस ]
पवन - दायी ! शोभा कहॉ हे ?
कमला- [ असकटाय के चोचला करत हे ] शोभा अपन कुरिया म हावय ।
पवन - वोकर कुरिया म तो तारा लगे हे दायी !
कमला - ए ले कूची ल , जा खोल दे ।

[ पवन हर कूची ल पूजा के हाथ म दिहिस अउ कहिस - ]
पवन - दायी - ददा मन शोभा ल कुरिया म धॉध देहे हें - ए ले कूची , जा देख मरगे धन जियत हे ।[ अपन दायी - ददा ल रिस कर के देखथे ।] वोहर खोरी हे तेमा वोकर का गलती हे ? अपनेच लइका बर अइसे व्यवहार ? ओइसे पूजा ! महूँ हर इंजीनियर नइ औं । मैं हर एम.ए. बी. एड. हावौं । शिक्षा - कर्मी , वर्ग एक म , लइका -मन ल पढाथौं । कभु -कभु मुँह खोलना जरूरी होथे दायी ! तेकर सेती बोलत हौं । एही बात मोर ददा घलाव समझ लेतिस तव ए नौबत नइ आतिस । मोला, पूजा के आघू म मुँह लुकाए बर नइ परतिस ।

                       दूसरा - दृश्य 


[ पूजा हर जब कुरिया के कपाट ल खोलिस तव सरी कुरिया बस्सावत हे अऊ शोभा हर बेहोश परे हे , वोहर रोवत - चिल्लावत , दायी के कुरिया कती भागत हे ]
पूजा - दायी ! पूजा के होश नइए अऊ ओकर मुँह ले गजरा निकलत हे ।
[ तुरते - ताही पवन हर बैद ल बला के लानिस हे । सबो झन के मुँह सुखा गय हावय ।]
बैद - फिकर के कोनो बात नइए । एकर ऑखी म जुड - पानी छींच दव । मूर्छा ले जाग जाही तव लिमाउ - पानी पिया देहौ अउ जौन खाही तौन खवा देहौ ।
[ पूजा हर शोभा के ऑखी म पानी छीचथे तहॉ ले शोभा हर ऑखी उघारथे अऊ एती - तेती निहारथे । शोभा के तबियत ल देख के पूजा अब्बड रोवत हे , वोकर ऑखी लाल हो गए हे । वोहर सपना म नइ सोंचे रहिस हे कि कहूँ दायी - ददा , अपन लइका संग ,अइसे व्यवहार कर सकत हे । वोहर शोभा के ध्यान अइसे राखे लागिस जइसे शोभा हर वोकर सगे छोटे बहिनी ए । दुनों ननद - भौजाई गोठियावत हें, आवव हमुँ मन सुनबो ।]

शोभा - भौजी ! मोर दायी - ददा मन मोला चिराय - ओन्हा सरिख काबर लुकावत रहिथें ? कभु - कभु मैं सोंचथौं के यदि मैं हर बाबू होतेंव तभो मोर दायी - ददा मन मोला अइसने तारा लगा के धॉध देतिन ? नोनी लइका ल कतका अपमानित होना परथे न भौजी ! वोला वो गलती के सजा मिलथे, जेला वोहर कभु करेच नइए ।[ वोहर अपन भौजी ल पोटार के अब्बड रोथे ] तोर सिवाय मोर कोनों नइए भौजी !
पूजा - झन चिन्ता कर, मैं हावँवँ न !
शोभा - भौजी । तैं हर तो खैरागढ ले लोक - गीत म एम. ए. करे हावस न ? महूँ ल सिखो दे न, भौजी !
पूजा - मन लगा के सीखबे तव सिखोहँवँ । अइसने रोना - गाना करबे तव कइसे सीखबे ?
शोभा- मैं मन लगा के सीखिहँवँ भौजी ! मैं तोला निराश नइ करौं ।

[ हमन सब झन बुता करत - करत थक जाथन अऊ थक - हार के सुत जाथन  फेर काल के चक्का नइ थिरावय वोहर रेंगतेच रहिथे । पूजा ह अपन ननद ल लोक - गीत सिखोवत गइस अउ शोभा हर मन लगा के सीखिस अब वोहर बडे - बडे कार्यक्रम म गाथे । आवव हमुँ मन सुनबो , वोहर " भरथरी " गावत हे ।]
शोभा -
 ए दे नोनी पिला के जनम ल धरे तोर धन भाग ए ओ मोर नोनीsssssss
तैं ह बेटी अस मोर तैं ह बहिनी अस मोर संगवारी अस मोर
महतारी अस महतारी अस मोर नोनीsssssssss

लइका ल कोख म वोही धरथे भले ही पर - धन ए मोर नोनी
सब ल मया दिही भले पीरा सइही भले रोही गाही
वोही डेहरी म वोही डेहरी म मोर नोनीssssssssss

पारस - पथरा ए जस ल बढाथे मइके के ससुरे के मोर नोनी
वोला झन हींनव ग वोला झन मारव ग थोरिक सुन लेवव ग
गोहरावत हे गोहरावत हे मोर नोनी ssssssssssss।

पूजा - तैं बिकट - बढिया गाए हावस ओ शोभा !फेर मैं हर चाहत हँवँ के तैं हर गीत के पीरा ल महसूस कर, वो पीरा हर तोर गीत म तोर चेहरा म दिखय, तव आउ सुघ्घर गाबे ।
शोभा - ठीक कहत हस भौजी ! मैं कोशिश करिहौं ।

[ श्याम हर पूजा के भाई ए । वोहर भाई - द्विज म अपन बहिनी के घर म आए हे । पूजा हर अपन भाई के पूजा करके आरती करत रहिस हे ततके बेर लकठा म कोनों मेर ले एक झन छोकरी हर " कजरी " गावत रहिस हे  ]
" रंगबे तिरंगा मोर लुगरा बरेठिन
किनारी म हरियर लगाबे बरेठिन ।

झंडा - फहराए बर महूँ  हर जाहँवँ
ऊपर  म  टेसू रंग -  देबे - बरेठिन ।

सादा - सच्चाई बर हावय जरूरी
भुलाबे झन छोंड देबे सादा बरेठिन ।

नील रंग म चर्खा कस चक्का बनाबे
नभ  ल अमरही -तिरंगा - बरेठिन ।

          तीसरा - दृश्य 


श्याम - पूजा ! ए मेर कोन गावत हे ? वोहर देश - प्रेम म  "कजरी" गावत हे फेर ओकर गीत म अतेक पीरा काबर हावय ? पूजा बता न ! कोन गावत हे ? तैं वोला जानथस का ?
पूजा - गावत होही कोनो । तोला का करना हे ?
श्याम - पूजा ! मैं वो छोकरी के सुर के गुलाम बन गय हावौं । वोकर बर मैं अपन जिंदगी ल दॉव म लगा सकत हावौं , समझे ?
पूजा - वोहर लूली - खोरी, अँधरी रइही तभो तैंहर .............
श्याम - हॉ पूजा हॉ, वो जइसे भी होही मैं वोला अपनाए बर तियार हँवँ ।
[ तभे गीत के आखरी दू लाइन ल गुनगुनावत शोभा हर वोही मेर आ गे ]
शोभा-
 रंगबे - तिरंगा मोर लुगरा बरेठिन
किनारी म हरियर लगाबे बरेठिन ।
[ कजरी गावत - गावत शोभा हर अपन भौजी के कुरिया म आथे अऊ अनजान मनखे ल देख के ठिठक जाथे , श्याम अऊ शोभा एक -दूसर संग गोठियाइन तो नहीं फेर तिरिया के दुनों झन चल दिहिन । अरे ! एमन आपस म ऑखी काबर चोरावत हावैं ? ऐसे लागत हे के ए दूनों झन बहुत जल्दी बहुत नजदीक आवत हें । आज पूजा अपन शिष्या शोभा ल " बिहाव - गीत " गाए बर सिखोवत हे काबर कि देव - उठनी अकादसी लकठिया गए हे । गॉव के गुँडी म "बिहाव - गीत" के कार्यक्रम हे, दस - बारह गॉव के मनखे मन जुरे हावँयँ । शोभा हर " बिहाव - गीत " गावत हे, पूजा ह हरमुनिया बजावत हे, पवन हर ढोलक बजावत हे आउ श्याम हर बॉसुरी बजावत हे ।]
शोभा -
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

बॉस - पूजा होही मँडवा म पहिली
उपरोहित ल  झट के बलाव  गौरी - गनेश  बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

चूल - माटी खनबो परघा के लानबो
माटी  के  मरम  ल  बताव  गौरी - गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज  गौरी - गनेश बेगि आवव ।

भॉवर - परे  के  महूरत  हर आ  गे
सु - आसीन  मंगल  गाव  गौरी  - गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

बर - कइना  दुनों  ल असीस  देवव
आघू  ले  दायी - बेटा आव  गौरी - गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब काज  गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

हरियर  हे  मडवा  हरियर  हे मनवा
जिनगी  ल  हरियर  बनाव  गौरी - गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

[ बिहाव - गीत हर सम्पन्न होइस तइसने पवन हर कहिस ]
पवन - सबो झन ल साखी मान के आज मैं हर श्याम ल एदे अपन बहनोई बनावत हावँवँ  [ वोहर श्याम ल हरदी के टीका लगाइस अऊ शगुन के रूप म 101 रुपिया धराइस हे आउ श्याम हर वोकर पॉव -पर के आशीर्वाद लिहिस हे ।]
पवन - आज मोर बहिनी शोभा हर " बिहाव - गीत " गाइस हावय । आज ले ठीक तीन दिन बाद पुन्नी के दिन गोधूलि वेला म एकर बिहाव होही । सबो झन ल नेवता देवत हँवँ  मोर बहिनी ल असीस देहे बर खचीत आहव ।
[ अचानक  पवन के दायी - ददा मन पवन के तीर म आथें अऊ दुनों झन हाथ जोर के, गॉव भर के आघू म स्वीकार करथें कि हमन भारी गलती करे हन, तेकर माफी मॉगे बर आए हावन हो सकही तव हमन ल माफ कर देहव । ]
रामलाल - मैं सबो झन के आघू म ए बात ल स्वीकार करत हावँवँ के मैं हर खुद अपन लइका मन संग    दुश्मन  कस व्यवहार करे हवँ । मैं हर अपन दुनों लइका मन मेर हाथ जोर के माफी मॉगत हवँ । हो सकही तव तुमन मोला माफ कर देहव ।
[ अतका म पूजा हर धरा- रपटा शोभा ल धर के  ओ मेरन आइस अऊ कहिस - ]
पूजा - सियान मन के माफी मँगाई हर नइ फभय ! जौन बीत गे तेला भुलावव अऊ बर - बिहाव के तियारी करव । तुमन शोभा ल आशीर्वाद देवव, [ अइसे कहि के उँकर दुनों झन के आघू म शोभा के मूड ल थोरिक नवाइस , तहॉ ले दुनो झन शोभा ल पोटार के पछता - पछता के अब्बड रोइन, फेर ए ऑसू म घलाय आनन्द के खजाना लुकाय हे , है न ? ]
     
शकुन्तला शर्मा , 288/ 7 मैत्री कुञ्ज भिलाई - 490006 , दुर्ग [ छ. ग.]
                   
            

Thursday 3 September 2015

चन्दन कस तोर माटी हे

               भूमिका

छत्तीसगढी कविता में समकालीनता का स्पन्दन - स्वागतेय है लेकिन ऑचलिकता को अग्राह्य करके नहीं , आधुनिकता का आग्रह अपेक्षणीय है लेकिन अस्मिता को अस्वीकार करके नहीं । छत्तीसगढी में कुछ स्वनाम - धन्य ऐसे समीक्षक हैं जो छत्तीसगढी लोक - जीवन की अभिहिति को परम्परा मानकर उसे प्रगतिशीलता की लपेट में लेने का तथ्य निवेदित करते हैं । यह थीक है कि एक ही विषय- वस्तु और शिल्प की छत्तीसगढी कवितायें अधिक आ रही हैं और इनमें पिष्टपेषण की प्रवृत्ति ऊब - उदासी का उपक्रम उपस्थित कर रही हैं लेकिन आधुनिकता के नाम पर हिन्दी और भारतीय - भाषाओं का अंधानुकरण यदि एक ओर छत्तीसगढी में सम्भावनाओं की ज़मीन तलाशने वाले हिंदी के चुके हुए साहित्यकारों द्वारा छत्तीसगढी में घुसपैठ, भाषा और साहित्य को विकृति की खाई में धकेलने का षडयंत्र भी है । संक्रमण की इस संस्थिति में समीक्षा के सूप द्वारा - " सार - सार को गहि रहै , थोथा देई उडाय, "  का समय आ गया है । अपनी हिन्दी रचनाओं का अनुवाद करके या अन्य महत्वपूर्ण हिन्दी और भारतीय भाषाओं की कृतियों का अनुवाद करके वे इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर सकते हैं लेकिन अनुवादक कहलाने की अपेक्षा कवि कहलाने के मोह ने छत्तीसगढी - साहित्य को संकट में डाल दिया है । इन तथाकथित समीक्षकों को कौन समझाए कि परम्परा का ही विकसित रूप आधुनिकता है । परम्परा से पृथक होकर न व्यक्ति ,जाति ,समाज व देश की पहचान सम्भव है , नही भाषा और साहित्य का मूल स्वरूप सुरक्षित है ।

  छत्तीसगढी - भाषा की प्रकृति और साहित्य की प्रवृत्ति को समझते हुए जो मूल - रचना- धर्मी छत्तीसगढी - माटी के प्रति सच्ची - साधना में संलग्न हैं, उनमें शकुन्तला शर्मा का नाम महत्वपूर्ण है । शकुन्तला  प्रथम छत्तीसगढी कवयित्री के रूप में जानी जाती है इसके पूर्व किसी भी कवयित्री की प्रकाशित कविता या संग्रह मेरे देखने में नहीं आया । " चंदा के छॉव म " के पश्चात् इनका " कुमारसम्भव " नामक एक महाकाव्य भी आ चुका है और अब यह काव्य - संग्रह - " चन्दन कस तोर माटी हे " आपके समक्ष प्रस्तुत है । कवयत्री की चिन्ता है कि धन - धान्य , अपार खनिज सम्पदा व देवी- देवताओं की कृपा के बाद भी, नक्सल वाद कलंक की तरह उभरा है " नक्सल ह दुर्दशा करत हे पूजत हे धर के आरी ।
पूजत हे धर के आरी ओ माई छत्तीसगढ महतारी ॥"

उपर्युक्त उद्धरण में ' पूजत ' शब्द = पूजन - अर्चन और  'प्राण ले लेना "  दोनों अर्थों में प्रयुक्त है । बलि देने से पहले बकरे की पूजा की जाती है और बाद में उसे काट लिया जाता है । इस तरह इस शब्द में दोनों अर्थ समादृत हैं । यदि छत्तीसगढ की माटी चन्दन जैसी मम्हाती है तो इसमें नक्सल - वाद के सॉप भी लिपटे हुए हैं ।

प्रस्तुत संग्रह में जहॉ छत्तीसगढी बाल - गीतों की कमी की संपूर्ति की गई है, वहीं ' लोरी ' गीत लिख कर कवयित्री ने इस लुप्त होती परम्परा के संवर्धन की दिशा में नयी स्थापना दी है । छत्तीसगढी के लोक - छन्दों यथा जसगीत, होरी, सधौरी, भोजली, सोहर, गारी, पंथी, ददरिया,भरथरी, सुवा, करमा, नाचा, के प्रयोग और शास्त्रीय - रागों यथा - कजरी, ठुमरी आदि के उपयोग से , छत्तीसगढी गीतों में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पीठिका अंतर्भूत है । इस तरह यह संग्रह कई दृष्टियों से उल्लेखनीय बन पडा है । इसकी भाषा सरल - सहज व सुगम - सुबोध तो है ही , लोक - प्रचलित शब्दों को अंगीकार करने यथावसर मुहावरे - कहावतों को स्वीकार करने और ध्वन्यात्मकता को समाहार करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रमाणित हुई है । छत्तीसगढी में संस्कारी पाठकों को ये गीत रुचिकर प्रमाणित होंगे, ऐसी मेरी मान्यता है । शुभ - कामनाओं - सहित -

सी-62 , अज्ञेयनगर छत्तीसगढ                                                                 डॉ. विनय कुमार पाठक
बिलासपुर-495001 [छ. ग.]                                                   एम. ए. पी. एच.डी. डी. लिट् [ हिन्दी ]
मो. 92298 79898                                                                   पी. एच. डी.डी.लिट्. [भाषा विज्ञान ]
                                                                                                        निदेशक -प्रयास प्रकाशन
              

Wednesday 8 July 2015

चौमासा

              कजरी

रंगबे  लाली - रंग  मोर लुगरा बरेठिन 
किनारी  म  हरियर  लगाबे -  बरेठिन ।

सब्बो - संगवारी - संग तौरे बर - जाबो 
भींजे  ले  छूटय  झन  रंग हर बरेठिन ।

झूलना म झूलबो अउ कजरी ल गाबो
कजरी  के धुन बिकट मीठ हे बरेठिन ।

सावन- मन भावन के महिमा हे भारी
मइके के भुइयॉ नीक लागय बरेठिन ।

ऑछी  म  गाढा - पिंवरा - रंग चढाबे 
उमर - भर रंग ह झन छूटय बरेठिन ।

Tuesday 3 March 2015

एकतीस

                      ददरिया

सोलह बछर के उमर हावय तोर 
तोरे डहर लगे रहिथे मन हरहा मोर 
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला
फुडहर - डहर ।
फुडहर डहर फूँगी फेंकत हावय फोकला
फुडहर - डहर ।

आनी - बानी के सिंगार करय न 
घेरी - बेरी बेनी गॉथय वोमा गोंदा फूल खोंचय 
पिचकाट बिकट करय तोला का बतावँव ।
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला 
फुडहर - डहर । 
फुडहर डहर भैया फेंकत हावय फोकला 
फुडहर - डहर ।

मेला - मडई म किदरत हावै न ! 
रेंहचुली म झूलय उखरा लाडू ल खावय 
मोला ठेंगा देखावय मोर मन मोह लिस रे ।
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला
 फुडहर डहर ।
फुडहर डहर संगी फेंकत हावय फोकला 
फुडहर - डहर 

            बत्तीस 
         पंथी 
सतनाम सार ए अमृत के धार ए 

  तोर दूनों पॉव परवँ मोर गुरु ग 
गुरु तहीं तो सिखोए हावस सत - नाम ग ।
तहीं समझाए हस तहीं समझाए हस 
तहीं समझाए हावस सत - नाम ग 
गुरु तहीं ह सिखोए हावस सत - नाम ग ।

सरी दुनियॉ ह हमरेच तो कुटुम ए हमरे कुटुम ए 
सुखे सुख ल पाहौं कइबे मन के भरम ए मन के भरम ए ।
मन के भरम ए मन के भरम ए 
मन के दिया तहीं ह बारे हावस ग 
दुनियॉ ल तहीं उजियारे हावस ग 
गुरु तहीं ह सिखोए हावस सत - नाम ग ।

पर - उपकार के तैं महिमा बताए ग महिमा बताए 
सबके सुख म अपन सुख हे तहीं समझाए ग तहीं समझाए ।
तहीं समझाए ग तहीं समझाए 
सत के डहर गुरु तहीं ह रेंगाए ग तहीं ह रेंगाए 
गुरु तहीं ह सिखोए हावस सत - नाम ग ।

            तैंतीस 
           पंथी 
कइसे तोर मया के बखान करौं ग 
पंथी गावत हावौं जोडी मोर तोरेच खातिर 
मुस्कियावत हावौं संगी मोर तोरेच खातिर ।

तोरे खातिर मैं ह जोही सेंदुर ल लगाए हौं सेंदुर लगाए हौं 
चेथी म तोरेच नाव के गोदना गोदाए हौं गोदना गोदाए हौं ।
गोदना गोदाए हौं गोदना गोदाए हौं 
डबडबाए हावौं संगी मोर तोरेच खातिर 
थथमराए हावौं बैरी मोर तोरेच खातिर ।
पंथी गावत हावौं जोडी मोर तोरेच खातिर ।

तोरेच खातिर महादेव म जल मैं चढाए हौं जल मैं चढाए हौं 
शीतला दायी मेर जा के जस - गीत गाए हौं जस गीत गाए हौं ।
जस - गीत गाए हौं जस - गीत गाए हौं 
निरजला हावौं संगी मोर तोरेच खातिर ।
कइसे तोर मया के बखान करौं ग 
पंथी गावत हावौं संगी मोर तोरेच खातिर 
जिनगी जियत हावौं संगी मोर तोरेच खातिर ।

          चौंतीस 
        भरथरी 
सत नेम के गली म रेंगे बर तैं ह घर ल तजे राजा भरथरी 
तैं ह घर ल तजे तैं ह घर ल तजे राजा भरथरी SSSSSSSSSSSSSS 

तैं ह साधू मेर गय 
वो ह फर तोला दिस 
रानी ल तैं देहे 
मन माढिस हे मन माढिस हे राजा भरथरी SSSSSSSSSSSSSSS

तहॉ रानी ह जी कोटवारे ल जा के परुस दिस हे जी 
कोटवारे ह फेर नचकारिन ल 
नचकारिन ह फर ल फेर राजा ल 
दरबारे म दरबारे म लान के दे दिस हे जीSSSSSSSSSSSSSSSSS

बक़ खा गे राजा ह सोंचत हे एदे का होगे जी 
मोह - माया तजिस 
कमण्डल ल धरिस 
हो गे बैरागी बन गे बैरागी राजा भरथरी SSSSSSSSSSSSSSSSSS

                   पैंतीस 
                 भरथरी 

ए दे नोनी पिला के जनम ल धरे तोर धन भाग ओ मोर नोनीSSSSSS
तैं ह बेटी अस मोर तैं ह बहिनी अस मोर संगवारी अस मोर 
महतारी अस महतारी अस मोर नोनीSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSS

लइका ल कोख म ओही धरथे भले ही पर धन ए  मोर नोनीSSSSSSS
सब ल मया दीही भले पीरा सइही भले रोही गाही 
ओही डेहरी म ओही डेहरी म मोर नोनीSSSSSSSSSSSSSSSSSSSS

पारस पथरा ए जस ल बढाथे मइके के ससुरे के मोर नोनीSSSSSSSS
वोला झन हीनौ ग वोला झन मारव ग थोरिक सुन लेवव ग 
गोहरावत हे गोहरावत हे मोर नोनीSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSS

                     छत्तीस 
                   मँडवा गीत 
हरियर मँडवा म सात महतारी मन घेरी - बेरी दिहिन हें असीस 
के सबो झन देवत हें असीसे महादेव सबो झन देवत हें असीसे ।

कइना बडभागी ल सबो सँहरावयँ के जीयय वो हर लाख बरीसे 
के जीयय वो हर लाख बरीसे महादेव जीयय वो हर लाख बरीसे।

मऊहा पान के मँडवा आमा पान के तोरन आमा पान के तोरन
के सुघ्घर सजे हे अ‍ॅगना महादेव सुघ्घर सजे हे अ‍ॅगनाSSSSS

कइना ल धर के सुआसीन हर आइस हे  सुआसीन हर आइस 
के सुमिरत हे गौरी - गनेश महादेव सुमिरत हे गौरी - गनेश ।

बंश - बढाए बर बिहाव हर होथे  बिहाव  के  हे भारी - महिमा 
के बॉस - पूजा होही पहिली महादेव बॉस - पूजा होही पहिली ।

माटी  के महिमा ल सबो जानत हावयँ  सबो  जानत  हॉवयँ
के चूल माटी खने बर जाबो महादेव चूल माटी खने ब जाबो ।

मँडवा के दस - ठन  दिशा के पूजा होही दिशा के पूजा होही 
के सबके असीस मिल जाय महादेव सबके  असीस पा जाय ।

मँडवा के लाज ल तुँहीं - मन राखिहव  तुँहीं - मन राखिहव
के जनम - सफल होइ जाय महादेव जनम सफल होइ जाय ।

                  सैंतीस 
              सधौरी 

महादेव के किरपा ले कुल - कँवल फूलही 
के मोरो घर आही संतान हो ललना मोरो घर आही सन्तान ।  

नोनी होवय चाहे बाबू आवय करिहँव दुनों के सुआगत 
के किलकारी गूँजै अ‍ॅगना हो ललना किलकारी गूँजै अ‍ॅगना ।

सबो सौंख पूरा करिहौं अपन बहू के मैं अपन बहू के 
के बंस -  बाढत हे ललना हो ललना बंस -  बाढत हे ललना ।

सुख म बूडे हे घर रस्ता देखत हन ओ रस्ता देखत हन 
के बॉधत हावँव - झूलना हो ललना बॉधत हावँव - झूलना ।

ओकर - बबा  हर  फेर  घोडा -  बनही के घोडा -  बनही
के महूँ करिहौं ओकर दुलार हो ललना करिहौं ओकर मैं दुलार । 

महावीर म रोट अऊ नरियर चढाहौं के नरियर चढाहौं 
के रक्षा करय भगवान हो ललना वोला पोंसय पालय भगवान ।

              अडतीस 
            सोहर

जनम लिहिन भगवान हो ललना मोर घर आ के 
जनम लिहिन प्रभु राम हो ललना मोर घर आ के ।

 सॉवर - सॉवर ओकर देह - पान हावय 
नयना हावय अभिराम हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन भगवान हो ललना मोर घर आ के ।

भाग जागिस हावय आज मोर घर के 
धाम अवध हो गे आज हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन भगवान हो ललना मोर घर आ के ।

चँदा उतरिस हावय आज मोरे अ‍ॅगना 
मन होगे अब निष्काम हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन भगवान हो ललना मोर घर आ के ।

              उनचालिस 
             सोहर 

लछमी धरिस हावय पॉव मोरे अ‍ॅगना 
गाहौं मैं तो सोहर आज  मोरे ललना ।

मुटुर - मुटुर देखत हावय मोर नोनी
शुभदा आए हावय कर दिस बोहनी ।
टोर दिहिस हावय मोर सबो बँधना 
गाहौं मैं तो सोहर आज मोरे ललना ।

थोरिक बाढही तहॉ ले चोनहा करही
नोनी ह मोर अ‍ॅगठी - धर के  रेंगही ।
कोरा म तोला  झूलाहौं  मयँ पलना 
गाहौं मैं तो सोहर आज मोरे ललना । 

मोर सबो - सपना एही पूरा करही 
मोर घर म एही ह दियना ल बारही ।
कुलकत  हावय आज मोर अ‍ॅगना
गाहौं मैं तो सोहर आज मोर ललना ।

            चालीस 
        सोन चिरैया बनाबो

सोन - चिरैया बनाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो 
परदेसी हाट ल भगाबो भारत ल सोन चिरैया बनाबो ।

खेती किसानी ल पहिली बचाबो 
नइ  डारन जहरीला  - खातू गोबर - खातू  ल  डारबो ।
सोन -चिरैया बनाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।

गौ - माता के बने सेवा ल करबो 
गोरस के तस्मै खाबो भारत ल सोन- चिरैया बनाबो । 
सोन - चिरैया बनानो भारत ल सोन- चिरैया बनाबो ।

आसन ल करबो प्राणायाम करबो
तन मन स्वस्थ बनाबो भारत ल सोन चिरैया बनाबो ।
सोन -  चिरैया बनाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।

स्विस बैंक के पैसा ल लहुटा के लानबो 
जूना  प्रतिष्ठा ल पाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।
सोन - चिरैया बनाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।

             

Sunday 1 March 2015

जसपुर कइसन सुघ्घर हावय

जसपुर कइसन सुघ्घर हावै दुनियॉ भर म बगरे  हे  जस
वोही गॉव म रहिथे लक्ष्मी किस्मत म कहूँ के नइ ए बस ।

ऑखी दिखय नहीं लक्ष्मी के घर हर  गरू  मरत - हावय
अंधरी कइसे जीही - खाही  महतारी  हर  सोंच म हावय ।

घुरुआ कस बाढत हे लक्ष्मी फेर रूप - रंग हावय  सुघ्घर
दिन -  भर  गाना - गावत  रहिथे फेर वो टूरी लक्ष्मी हर ।

सैलानी आथें  जसपुर  म लक्ष्मी  शिव - वन्दना  सुनाथे
पंथी - कर्मा  आउ  ददरिया भभर  भभर के अब्बड गाथे ।

एक ठन नानुक - कुरिया हावय मॉ -बेटी रहिथें चुपचाप
लक्ष्मी चुप्पे - चुप  गुनथे अऊ  रोवत रहिथे आपे - आप ।

मनखे कतको रोवय - गावय मन  म  भरे रहिथे विश्वास
एक एक दिन बीतत हावै चल दिस कतको कन चौमास ।

दुनियॉ -  भर  म नाव बगर गे लक्ष्मी हो गे माला - माल
लक्ष्मी  मेर  बरसत  हे  पैसा  गीत बने  हे  वोकर - ढाल ।

लइका - सियान सब वोकर पाछू वोकर धुन म नाचत हे
जघा -जघा सम्मान मिलत हे भीड बिकट सकलावत हे ।

लक्ष्मी  जब  पंथी - गाथे तव मांदर ल फेर ललित बजाथे
का  कार्यक्रम  कहॉ  होवत हे सबो बात ल ललित बताथे ।

ललित के दायी - ददा दूनों झन लक्ष्मी के घर म आए हें
हॉसत - हॉसत  खुसरत हावयँ  लडुआ - पपची  लाने  हें ।

बर - बिहाव के बात चलत हे सबो झन ल हावय - नेवता
मन भर के सब मोद मनावौ असीस दे देवव सबो देवता ।

जइसे लक्ष्मी के दिन बहुरिस तइसे सबके दिन बहुरय
ईढर - कडही तरकारी अउ  दार - भात हर  घर म  चुरय ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई shaakuntalam.blogspot.in

Thursday 15 January 2015

चन्दन कस तोर माटी हे

[ लोक - धुन पर आधारित छत्तीसगढी गीत ] [ छत्तीसगढ राजभाषा आयोग के सौजन्य से प्रकाशित ]



          शकुन्तला शर्मा

एकचालिस

                   भारत ल दे वरदान

भारत ल  दे वर -  दान  महादेव  भारत ल  दे वरदान ।
भारत बनय फेर महान महादेव  भारत ल  दे वरदान ।

खेती -  किसानी  अब  तहीं  बचाबे 
तहीं  देबे अब धियान महादेव भारत ल  दे वर - दान ।

गौ माता रोवत हे खाय बर नइ पावै
ओकरे ले हावै धन धान महादेव भारत ल  दे वरदान ।

बूडती  के  पूजा अडबड  करे  हन
पूजबो सुरुज - भगवान  महादेव भारत ल  दे वरदान ।

चुन - चुन के दानव के संहार कर दे 
बहँचा ले सज्जन के प्राण महादेव भारत ल दे वरदान ।

स्विस - बैंक म भारत के पैसा परे हे 
लान दे झट के हिंदुस्तान महादेव भारत ल दे वरदान ।

हिन्दी ह बिन्दी ए हिन्दुस्तान के 
हिन्दी के बढ जावय मान महादेव भारत ल दे वरदान ।

राम - राज कइसे भारत म आवय 
दे - दे  हमला  वोही  ज्ञान महादेव भारत ल दे वरदान ।


           बियालिस

         शरद - पुन्नी 

पुन्नी -  परी कुऑर के आ गे कतका सुघ्घर कहत हवय ।
नहा के आए हे गो - रस म मुच - मुच हॉसत कहत हवय ।

तमसो  मा  के  पाठ  ल  सीखव  सदाचरन के डहर चलव
नइ तो भारी बिपत म परिहव तुमन सत के शरन- गहव ।

उज्जर तन उज्जर मन राखव एही सिखोवत हौं मैं आज 
करनी के फल मिलबेच करथे सच के निमगा रहिथे राज ।

आनी - बानी के जिनिस बेचात हे तुमन ओती झन जाहौ
अपनेच  घर  म अलवा - जलवा  चुरे  हे  तौने  ल  खाहव ।

सब नदिया ल जान के गंगा  भाव ले करिहव  पूजा - पाठ 
फूल - पान झन वोमा चढाहव एही बात  बर  बॉधव गॉठ ।

सुख - चाहत हे जे मनखे ह सब के सुख चाहय सौ - बार
वेद - पुरान बखानत हावय पर - उपकार  ए सुख के सार ।

सब्बो- मनखे मन बइठे हावौ आज अपन भीतर झॉकव 
अपन- देश भुइयॉ बर तुमन का - का उदिम करत हावव ।

करव  स्वदेशी  के  पूजा अब एही म हे सब  के  कल्यान
माटी  के  महिमा ले  बनही  सोन - चिरैया - हिन्दुस्तान ।


              तिरालिस

         भोजली - गीत

देवी - गंगा  देवी - गंगा लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा 
हमरो  देवी  - भोजली  के  भींजय  आठों -  अंगा ।
अहो देवी गंगा 

गंगा म भोजली सेराए झन जावौ सेराए झन जावौ
दुरिहा -  ले  पॉव  पर  लव अपन - मन - मढावव ।
अहो देवी गंगा 

मोर गंगा दायी के पॉव ल पखारौ जी पॉव ल पखारौ
सबो -  दुख -  हरथे जावव  वोकर  मेर - गोहरावव ।
अहो देवी गंगा 

मने मन पूजा करौ कुछु झन चढावौ कुछु झन चढावौ
इहें  बइठे  -  बइठे  भलुक  भभर  के  गोठिया - लव । 
अहो देवी गंगा 


              चवॉलिस

                ठुमरी

बैरी  तयँ  नइ आए  भिनसरहा  हो  गईस 
सुकुवा ह मोला निनासिस अऊ चल दिस ।

पलकन  के  बहिरी  ले  रस्ता  -  बहारेंव
रस्ता  म ऑखी  के  पुतरी -  दसा -  देंव  ।
दार - भात म कइसे तो करा ह पर गईस
बैरी  तयँ  नइ आए  भिनसरहा  हो गईस ।

सब्बो - संगवारी - मन झूलना - झूलत हें
सावन  म  जिनगी  के  मजा -  लेवत  हें ।
तोर - बिन जिनगी ह अदियावन होगिस
बैरी  तयँ  नइ आए  भिनसरहा  हो गईस ।


            पैंतालिस

            ठुमरी 

सावन  ह  आ गे तयँ आ जा  संगवारी 
झटकन नइ आए तव खाबे तयँ गारी ।

नदिया अऊ  नरवा  म  पूरा ह आए हे 
मोर मन के झूलना बादर म टंगाय हे ।
हरियर - हरियर हावय भुइयॉ महतारी
झटकन नइ आए तव खाबे तयँ गारी ।

बड - सूना  लागत हे सावन म अंगना 
रोवत हे रहि-रहि के चूरी अऊ कंगना ।
सुरता हर  धर के ठाढे - हावय - आरी
सावन  ह आ गे तयँ आ जा संगवारी ।


          छियालिस

            ठुमरी

बिरबिट ले करिया हे फागुन के रात 
सरसरावत  हे  कहॉ पहावत  हे रात ।

चम्पा - चमेली ओली म  बँधाय  हे
आमा के मौर ह  मोर बारा बजाय हे ।
दया मया धरे नइये उजबक हे रात
बिरबिट ले करिया हे फागुन के रात ।

मोला बिजराथे कोकम के भागत हे 
घक्खर हे वोह एको नइ लजावत हे । 
आवत हे तोर सुरता तोरेच सब बात 
बिरबिट ले करिया हे फागुन के रात ।


              सैंतालिस 

                 ठुमरी 

कोजनी -  तुमन  कब आहव  गवँतरिहा 
कुछु गलती होही तव मोला झन कइहा ।

सावन हर ए दे सूखा - सूखा चल दिहिस
भादों -  हर  मोला  बिकट - बिजराइस ।
डर लगथे मोर मन हो जावै झन हरहा 
कोजनी - तुमन कब आहव गवँतरिहा ? 

तुँहर - मिट्ठू  ह तुँहरेच नाव जपत हे
रतिहा- भर अँगना म  दिया  बरत हे । 
दिख जातेव तूँ मोला थोरिक लौछरहा
कोजनी तुमन कब आहव गवँतरिहा ?


        अडतालिस

            ठुमरी

नइ  भेजवँ  कभ्भु  मयँ तुँहला  परदेस 
सरग  ले  सुघ्घर -  हावय  मोर -  देस ।

घर  के  चॉउर -  दार  खाबो -  जुडाबो 
अलवा-जलवा ओन्हा पहिरे रहि जाबो ।
अब  कतेक  दूसर  ल  देखाना  हे  टेस
सरग  ले  सुघ्घर - हावय  मोर  -  देस । 

कहूँ के अँचरा - हर  तुँहला झन तीरय 
डर लगथे तुँहर मेर  कोनो झन अभरै ।
रक्षा  करव  ब्रह्मा  -  विष्णु -  महेस 
सरग  ले  सुघ्घर -  हावय   मोर  देस ।


                 उनचास 

                  ठुमरी

कइसे  कहँव  मयँ  हर मोर मन के बात ।
जुग - जुग कस लागत हे पुन्नी के रात ।

मोर सूना अँगना ह खॉव - खॉव करत हे 
मन  के  मोर  मैना  ह  तोला सुमरत हे । 
ऊप्पर  ले  जीव - परहा  हो  गे  बरसात
जुग - जुग कस लागत हे पुन्नी के रात ।

मन  ल  समझाथौं  फेर मानत  कहॉ  हे
कौंवा - हर  देख तो तोर  सुरता लाने  हे ।
मोला -  हॉसत  हे  बिजरावत - हे   रात 
जुग - जुग कस लागत हे पुन्नी के रात ।


                 पचास

                  ठुमरी  

कब आबे  बैरी तोर सुरता - करत  हवँ ।
तोरेच सुरता म मैं जियत - मरत  हवँ ।

सावन - महीना म प्यास नइ बुताइस 
भादो के तीजा  म तोर सुरता - आइस ।
दसरहा म आ जा देखे बर तरसत हवँ
तोरेच सुरता म मयँ  जियत मरत हवँ ।

दसरहा तो चल दिस देवारी म आ जा
एक झलक थोरकन लौछरहा देखा जा ।
सुरहुत्ती दिया - मयँ जुग-जुग बरत हौं
कब - आबे  बैरी  तोर सुरता करत हवँ ?


          इंक्यावन

    भोजली - गीत

देवी गंगा देवी गंगा लहर - तुरंगा हो लहर - तुरंगा 
हमरो  देवी -  भोजली  के  भींजय  आठो - अंगा ।
अहो देवी गंगा 

गौरी गनपति के प्रथम होही पूजा प्रथम होही पूजा
गौरी -  गनपति  असन  -   कहूँ   नइए   -   दूजा ।
अहो देवी गंगा 

हाथी के मुँहरन अऊ मुसुवा सवारी हे मुसुवा सवारी
सत्  - बुध्दि  दीही  गन -  पति  महिमा  हे  भारी ।
अहो देवी गंगा 

दायी  के  सेवा  ले  पाइन हें  मेवा हो पाइन हें मेवा
सबो  -  मनखे    करव  अपन  -  दायी   के   सेवा ।
अहो देवी गंगा                      

               

Wednesday 14 January 2015

                         एकतीस

                         ददरिया

सोला -  बछर  के  उमर  हावय  तोर 
तोरे डहर लगे रहिथे मन हरहा  मोर ।

चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला
फुडहर -  डहर ।
फुडहर डहर फूँगी फेंकत हावय फोकला
फुडहर - डहर ।

आनी - बानी के सिंगार करय न
घेरी - बेरी बेनी गॉथय गोंदा - फूल खोंचय
पिचकाट अब्बड करय तेला का बताववँ ?
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला
फुडहर - डहर ।
फुडहर - डहर भैया फेंकत हावय फोकला
फ़ुडहर - डहर ।

मेला - मडई म ओ दे किंदरत हे न
रेंहचुली म झूलत हे उखरा - लाडू बिसावत हे
मोला ठेंगा देखावत मोर मन मोह लिस न ।
चिरई करय चोचला फेंकत हावै फोकला
फुडहर - डहर ।
फुडहर - डहर फूँगी फेंकत हावय फोकला
फुडहर - डहर ।


             बत्तीस

              पंथी

कइसे तोर मया के बखान करवँ ग 
पंथी गावत हाववँ संगी मोर तोरेच खातिर 
मुसकियावत हाववँ संगी मोर तोरेच खातिर ।

तोरेच खातिर मैं हर जोही तिकुली चटकाए हवँ 
तोरेच नाव के हाथ म मयँ गोदना गोदाए हवँ ।

डबडबाए  हाववँ  संगी -  मोर  तोरेच  खातिर
थथमराए  हाववँ  बैरी  मोर  तोरेच -  खातिर ।  

तोरेच -खातिर महादेव म जल मैं चढावत हवँ
सीतला दायी मेर जाके जस -गीत गावत हवँ ।

निरजला -  हाववँ  जोही  मोर  तोरेच  खातिर
दिया - बारे  हाववँ  संगी  मोर  तोरेच खातिर ।


                    तैंतीस

                    पंथी

सतनाम सार ए अमृत के धार ए 
बरने नइ जाय गुरु तोर गुन ग 
गुरु तहीं ह सिखोए हस सतनाम ग ।

करम के महिमा ल तहीं ह बताए हस 
जइसे करनी तइसे भरनी तहीं समझाए हस 
गुरु तहीं ह सिखोए हस मया - मंत्र ग 
गुरु तहीं ह अँजोरे हावस मया - दिया म ।

सरी दुनियॉ ह हमरेच तो कुटुम ए 
हमरे कुटुम ए हमरे कुटुम ए ।
सुखे - सुख ल पाहवँ कइबे मन के भरम ए 
मन के भरम ए मन के भरम ए ।
गुरु तहीं ह देखाए हावस सुख - गली ग ।

पर - उपकार के तैं महिमा बताए ग महिमा बताए 
सब के सुख म अपन सुख हे तहीं समझाए ग ।
तहीं समझाए ग तहीं समझाए  
धीरे - बानी रेंगव धरे रहव सत के डहर 
गुरु तहीं ह देखाए हावस सत के डहर ।


               चौंतीस

               भरथरी

सत - नेम के गली म रेंगे बर 
तयँ ह घर ल तजे तयँ ह जोगी बने राजा भरथरी ।

तैं ह साधू मेर गय
साधू फर ल दिहिस
रानी ल फर देहे
मन - माडिस हे  मन - माडिस हे राजा - भरथरी ।

रानी ह वोही फर ल कोटवार ल जाके दे दिस हे जी
वोही फर नर्तकी ल मिलिस
अऊ नर्तकी ह वोही फर ल राजा मेर
दरबारे म दरबारे म लान के दे दिस हे जी ।

बक खा गे राजा ह सोंचत हे ए दे का हो गे जी ।
मोह - माया तजिस  ओ दे घर ल तजिस कमंडल ल धरिस
हो गे बैरागी बन गे बैरागी राजा भरथरीSSSSSSSS ।


                   पैंतिस

                 भरथरी

ए दे नोनी पिला के जनम ल धरे तोर धन भाग ए ओ
मोर नोनीSSSSSSSSSSSSSSSSS
तैं ह बेटी अस मोर तैं ह बहिनी अस मोर संगवारी अस मोर 
महतारी अस महतारी अस मोर नोनीSSSSSSSSSSSSS

लइका - ल  कोख  म ओही  धरथे  भले  ही पर धन ए
मोर नोनीSSSSSSSSSSSSSSSSSS
सब ल मया दीही भले पीरा - सइही भले  रोही - गाही
ओही डेहरी म ओही डेहरी म -  मोर नोनीSSSSSSSS

पारस - पथरा  ए  जस  ल  बढाथे  मइके  के ससुरे के
मोर नोनीSSSSSSSSSSSSSSSSSS
ओला झन हीनव ग ओला झन मारव ग
 थोरिक सुन लेवव ग गोहरावत हे गोहरावत हे मोर नोनीSSS


                     छत्तीस

              मँडवा - गीत 

हरियर - मँडवा म सातो - दायी आइन 
के सबो झन दिहिन हें असीस ओ गौरी
सबो - झन दिहिन हें - असीसे ...........।

कइना  बड - भागी  ल सब्बो सँहरावत हें
के  जीयय  वो  लाख -  बरीसे ............ ।

मउहा पान के मँडवा अऊ आमा के तोरन
ले  सुघ्घर - दिखत  हे अँगना .............।

कइना  ल  धर  के  सुआसीन - आइन 
के सुमिरत हे गौरी - गनेशे ................।

बंस -  बढाए -  बर -  बिहाव  ह  होथे
के बॉस - पूजा होही आघू ..................।

माटी के महिमा ल सब्बो झन जानव 
के चूल - माटी खने बर जावव ...........।

मँडवा  म  दसों - दिशा  के  महात्तम
के शुभ - शुभ होय सब काज.............।

मँडवा के लाज ल तुहीं मन राखिहव
के जनम सफल होइ जाय ओ गौरी 
जनम सफल होइ जाय...................।


              सैंतीस

           सोहर

लछमी धरिस हावय पॉव मोरे अँगना 
गाहवँ मैं तो सोहर आज मोरे ललना ।

मुटुर - मुटुर देखत हावय मोर नोनी 
शुभदा आए हावय कर दिस- बोहनी ।
टोर दिहिस हावय मोर सब्बो बँधना
गाहवँ मैं तो सोहर आज मोरे ललना ।

बडे  होही तहॉ वोहर चोनहा - करही
नोनी ह मोर अँगठी - धर  के  रेंगही ।
कोरा म तोला झुलाहवँ  मयँ  पलना
गाहवँ मैं तो सोहर आज मोर अँगना ।

मोर  सपना  ल  ए  नोनी  पूरा करही
पढ लिख के देश के नाव उजियारही ।
नाचत गावत हावै आज मोर अँगना
गाहवँ मैं तो सोहर आज मोरे ललना ।


             अडतीस

              सोहर 

जनम लिहिन प्रभु राम हो ललना मोर घर आ के 
गावव सबो - मंगल - चार हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन प्रभु राम 

सॉवर - सॉवर  राम  जी  के  देह  - पान  दिखत  हे 
नयना दिखत हे अभिराम हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन प्रभु राम 

भिनसरहा - होइस  ए दे  मोर -  भाग - जागिस  हे
अवध - बनिस  मोर  धाम हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन प्रभु राम

जग  -  मग  ले  चँदा  मोर -  अँगना  म  आगिस हे
मन  ह  होगिस  वृन्दावन  हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन प्रभु राम 


                   उनचालिस

                     सधौरी

गौरी के दया - मया कुल - कँवल फूलही 
के  मोरो घर आही संतान हो ललना मोरो घर आही - संतान ।

नोनी होय बाबू होय दुनों के सुवागत 
के किलकारी गूँजय अँगना हो ललना मोरो घर आही संतान ।

सब्बो सौंख पुरोहवँ मैं अपन बहू के 
घर  म आवत  हे  ललना  हो  ललना घर म आवत हे ललना ।

सुख म बूडे घर ह रस्ता देखत हे के
बॉधत  - हाववँ - झूलना  हो  ललना  बॉधत - हाववँ  झूलना ।

महावीर म रोट अऊ नरियर चढाहवँ के 
सुआसीन  बाती  बर  ना  हो  ललना  सुआसीन  बाती बर ना ।

बबा वोकर घोडा बनही मैं हर दुलारिहौं के
अइसे सुख के का कहना हो ललना अइसे  सुख के का कहना ।


                     चालीस 

          सोन - चिरैया 

सोन - चिरैया  बनाबो  भारत  ल  सोन - चिरैया बनाबो ।
परदेशी - हाट ल भगाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।

खेती - किसानी ल पहिली बचाबो 
नइ  -  डारन  जहरीला - खातू  गोबर - खातू  ल  डारबो ।
सोन - चिरैया बनाबो भारत ल 

गौ - माता के बने सेवा ल करबो 
गो - रस के तस्मै खाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।
सोन - चिरैया बनाबो भारत ल 

देशीच ल खाबो देशी पहिरबो 
पूँजी  ल अपन  बढाबो  भारत  ल सोन - चिरैया बनाबो ।
सोन चिरैया बनाबो भारत ल 

आसन ल करबो प्राणायाम करबो
तन मन ल स्वस्थ बनाबो भारत ल सोन चिरैया बनाबो ।
सोन - चिरैया बनाबो भारत ल 

स्विस - बैंक के पैसा ल लहुटा के लानबो 
जूना - प्रतिष्ठा  ल  पाबो  भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।
सोन -  चिरैया  बनाबो  भारत  ल सोन - चिरैया  बनाबो ।


        
    



    

  




               


Tuesday 13 January 2015

गॉव डहर

कोइली के सुन के कुहुक रे आ जा राजा गॉव - डहर आ जा
रुमझुम ले सजे हावय गॉव रे देख ले तयँ एक नज़र राजा ।

नथनी बलावै बिंदिया बलावै झझकत हे झुमका के झूल रे
आ जा राजा गॉव डहर आ जा रुमझुम ले सजे हावै गॉव रे
देख ले तैं एक नज़र राजा  ।

संगी - सहेली मन गॉव म नइयें चल दे हें अपन ससुरार रे
आ जा राजा गॉव दहर आ जा रुमझुम ले सजे हावै गॉव रे
देख ले तैं एक नजर राजा । 

संगी तहीं अस जनम-जनम के तोर बिना सूना - संसार रे
आ जा राजा गॉव डहर आ जा रुमझुम ले सजे हावै गॉव रे
देख ले तैं एक नजर राजा  ।

ढाबा -  भरे हे तरिया -  भरे  हे आ गए  हे आमा  म मौर रे
आ जा राजा गॉव डहर आ जा रुमझुम ले सजे हावै गॉव रे
देख ले तैं एक नज़र राजा ।


                    बाइस

                     होरी

संग भाई लखन के राम हो राम - लला 
जीत - लिहिस गढ लंका ल ।
जीत लिहिस गढ लंका ल रामलला 
जीत - लिहिस गढ लंका ल ।

भाई - विभीषण राम के संग हे 
ठाढे हे मूड ल नवाए हो रामलला
जीत - लिहिस गढ लंका ल ।
जीत - लिहिस गढ लंका ल रामलला
जीत - लिहिस गढ लंका ल ।
संग - भाई लखन के राम हो रामलला
जीत - लिहिस गढ लंका ल ।

पुष्पक म बइठे अजोध्या आइन 
पहुँचिन दसरहा के दिन हो रामलला 
जीत - लिहिस गढ लंका ल ।
जीत - लिहिस गढ लंका ल रामलला
जीत लिहिस गढ लंका ल ।
संग - भाई लखन के राम हो रामलला
जीत लिहिस गढ लंका ल ।


                तेइस

           फुगडी 

पँचवा खेलबो नून खेलबो  खेलबो फुगडिया 
आबे - आबे  नान -  बाई  मचे  हे फुगडिया ।

फुगडी हर नँदावत हावै सुन ले ओ ननंदिया
आबे - आबे  नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया ।

नोनी  बने  पढ  ले  तयँ छोंड - घर - घुँदिया 
आबे - आबे  नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया ।

पुरखा - मन के जस बाढय होम कर रंधइया
आबे - आबे  नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया ।

गॉव  के  गली  म आ  जा  गीत गा गवइया
आबे - आबे  नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया ।

पानी गिरत हावय तयँ हर रॉध - रमकेरिया 
आबे - आबे  नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया । 

कइसन सुघ्घर दिखत हावय फूले हे चिरैया
आबे - आबे नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया ।

बेटी  ल  बचावव बबा  सब्बो बड - बोलिया
आबे - आबे नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया ।

मुनगा - भाजी दे न ओदे माढे हावै मलिया
आबे - आबे नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया ।

आ जा बासी खाबो एदे भाजी हे चुनचुनिया
आबे - आबे  नान - बाई  मचे हे फुगडिया ।

तस्मै ल जुडो दे नोनी लानथौं- थरकुलिया
आबे - आबे नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया ।

शबरी  के  पुरखा मन ल कहिथें - शबरिया
आबे - आबे नान - बाई  मचे  हे  फुगडिया ।


                  चौबीस

                     हाट

जाबो कोसला के हाट हमुँ जाबो बहुत मजा आही न 
सिध्द-  बावा के दर्शन पाबो मन मैल हर धोवाही न ।

कोसला हर मइके ए कौशल्या - दायी के
कौशल्या - दायी  के कौशल्या - दायी के ।
राम -  जी  के  नाव  ल सुमर के ए चोला तर जाही न
जाबो कोसला के हाट हमुँ जाबो बहुत मजा आही न ।

कोसला वृन्दावन कोसला अवध ए
कोसला अवध ए कोसला अवध ए ।
इहॉ माटी के चन्दन लगाबो सद् - गति तहॉ पाबो न
जाबो कोसला के हाट हमुँ जाबो बहुत मजा आही न ।


                    पच्चीस

                गारी - गीत

धीर - लगा  के  खावव  समधी  लडुआ  भागत नइये जी 
चपर - चपर मुँह बाजत हावय अँचो लेवव अब भइगे जी ।

केरा - आलू - साग ल समधी कइसन खावत - हावव जी
समधिन  कभु  खवाए  नइये तइसन खावत - हावव जी ।

हँडिया भर - भर खावत - हावय कइसन ररहा हावय जी
गारी सुनत - सुनत खावत हे कइसन निरलज हावय जी ।

लाईबरी  कभु  देखे  नइ  अव  तइसन  खावत हावव जी 
नइ  भागत  ए  लाईबरी  हर  धीर  लगा  के  खावव - जी । 

गुड  के  पपची  बहुत  मिठावत हावय तुहँला समधी जी
झउहा भर - भर खा के हॉसत - भागत हावय समधी जी ।


                       छब्बीस

                          देवारी 

दिया बार लेवव संगी देवारी आ गे अब  तो  दिया बार लेवव
दिया बार लेवव संगी सुरहुत्ती आगे अब तो दिया बार लेवव ।

धन -  तेरस  के  दिन पिसान के तेरह दिया बनावव 
अंगना - दुवार म दिया बार के घर ल फेर उजियारव ।
बडे - बिहिनिया गऊ - दायी ल सबो दिया ल खवावव
दिया बार लेवव 

चौदस  के  दिन  फेर  पिसान  के चौदह दिया बनावव
घर - दुवारी  के  बाहिर  म  फेर  सबो दिया ल बारव ।
जम - भगवान के पूजा कर लव अर्पित करके आवव
दिया बार लेवव

अमावस  के  दिया  बार  के  सब  घर  ल  उजियारव
गॉव के  मन्दिर - देवालय  म  दिया  बार  के आवव ।
लक्ष्मी - दायी के पूजा कर लव काली देवी ल ध्यावव
दिया बार लेवव 


                      सत्ताइस

                  बिहाव - गीत 

सिया - राम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव 
शुभ - शुभ  होही  सब  काज गौरी - गनेश बेगि - आवव ।

मडवा म पहिली बॉस - पूजा होही कइना ल हँथवा धराव
गौरी - गनेश बेगि आवव 

चूल - माटी जाबो  माटी  ल लानबो माटी के मान बढाव 
गौरी - गनेश बेगि आवव

पाणिग्रहन  के  बेरा  होवत  हे  सुआसीन - मंगल - गाव
गौरी - गनेश बेगि आवव

वर - कइना ल असीस देवव सब आघू ले तुम दूनो- आव
गौरी - गनेश बेगि आवव

हरियर हे मँडवा हरियर हे मनवा हरियर जिनगी ल बनाव
गौरी - गनेश बेगि आवव 


                     अट्ठाइस 

                    सुवा - गीत 

नाना रे नाना मोर नहना रे ना ना 
के कब आही राम के राज 
हो सुवना कब आही राम के राज  ?
अँधरा - जुग म कतेक दिन जीबो 
कब पाबो सुख के सुराज 
रे सुवना कब पाबो सुख के सुराज ?

कब मोर मनखे ह दारू ल छोंडही
के कब खाबो हम दार अऊ भात
रे सुवना कब खाबो हम दार - भात ?
कब मोर नोनी मदरसा म पढही
छुछिंद - सुतिहवँ कब रात
रे सुवना छुछिंद - सुतिहवँ कब रात ?

नक्सल चगलत हे छत्तीसगढ ल
के रक्षा करव महाबीर
रे सुवना रक्षा करव महाबीर ।
छत्तीसगढ ल सबला बना दव
के कहूँ झन हरे पावयँ - चीर
रे सुवना कहूँ झन हरे पावयँ चीर ।


          ओनतिस

             करमा

जीव लागत हे तोर बर संगी 
आ जाते थोरिक नरवा के पार ।
घ न न न घ न न न न न न 
त र र र त र र र र  र  ।

बासी - चटनी  धर  के आहवँ -  दुनों  झन -  खाबो 
सून्ना रइही नरवा - खाल्हे मया - पीरा गोठियाबो ।
जीव - लागत हे तोर बर संगी
 थोरिक आ जाते नरवा के पार 
घ न न न घ न न न न न न 
त र र र त र र र र र ।

अभी आबे मैना तव तोर हो जाही बदनामी 
बिहाव होही असीस दीहीं सबो देवता धामी ।
जिनगी के हावय दिन - चार 
कइसे आववँ नरवा के पार ?  
घ न न न घ न न न न न न 
त र र र त र र र र र ।


            तीस 

           नाचा 

मोला सुरता आवत हे तोर 
मन हरहा हो गय हे मोर ।

मीठ - मीठ गोठिया के हँसी- ठट्ठा म भुलवार के
तयँ ह लूट लेहे मन ल मोर 
संगी थोरकन तो मोला अगोर ।
मोला सुरता आवत हे तोर 
बही थोरकन तो मोला अगोर ।
बइहा हो गय हवँ सुरता म तोर 
मन हरहा हो गय हे मोर ।
प प ग ग ग रे रे सा रे ग रे 
नि नि सा सा सा रे ग म नि ग रे ।

तयँ ह ठाढे रहे नरवा - तीर म 
मैं लुका गयँ तुरते जा के भीड म ।
तोला देखेवँ तव मैं तिरिया गयँ 
सच्ची कहवँ तव मैं थथमरा गयँ ।
तोला कइसे भुलाववँ बइहा 
मोला सुरता आवत हे तोर 
प्रान - परबस म हावय मोर ।
बैरी थोरकन तो मोला अगोर 
मोला सुरता आवत हे तोर ।
प प ध ध ध रे रे ग म रे रे 
नि नि सा सा सा रे ग म नि ग रे ।

             



     

Monday 12 January 2015

निंदिया चुप्पे - चुप आ जा

                        ग्यारह

चुप्पे - चुप आ  जा  तयँ  अँखियन  म निंदिया आ जा तयँ आ जा आ जा 
नोनी ल संग म सुता ओ निंदिया झटकुन तयँ आ जा आ जा ओ आ जा ।

जमुना के तीर म कदम्ब के रुख हे
 नोनी ल झुलना झुला जा निंदिया आ जा रे आ जा ।
चुप्पे - चुप आ जा

तस्मै चुरे  हे वृन्दा -  वन  म
नोनी ल घला  खवा  जा  निंदिया आ जा  रे आ  जा ।
चुप्पे - चुप आ जा

कान्हा के बंसरी बाजत हावय
नोनी  ल  बंसी  सुना  जा  निंदिया आ जा रे आ जा ।
चुप्पे - चुप आ जा

वृन्दा- वन  म  रास - रचत हे
नोनी  ल  गोपी  बना जा  निंदिया आ जा रे आ जा ।
चुप्पे - चुप आ जा


                  बारह

        नोनी ल लोरी सुना

नोनी ल लोरी -  सुना ओ  निंदिया आ जा ओ आ जा 
अँचरा-- ओढा के सुता ओ निंदिया आ जा ओ आ जा ।

नोनी ह दिन - भर खेलिस - कूदिस हे 
अंगना अऊ  परछी  ल  एक करिस हे ।
नवा  बल - बुध देहे आ ओ निंदिया आ जा ओ आ जा 
अँचरा - ओढा के  सुता ओ निंदिया आ जा ओ आ जा ।

तोर - गोड झन बाजय धीरे - धीरे आबे 
सुरुज ऊए  के आघू झटकुन तयँ आबे । 
किस्सा - कहानी  सुना ओ निंदिया आ जा ओ आ जा
नोनी  ल  लोरी  सुना ओ  निंदिया आ  जा  ओ आ जा ।


                   तेरह

     बेंदरा होथे बिकट नकलची

हुप - हुप - हुप - हुप बेंदरा आए हे 
आमा - रुख म वो - हर लुकाए हे ।

पक्का - पक्का - आमा  खात  हे 
आऊ वो  ह  मोला  बिजरावत  हे ।

वो  गबर - गबर आमा खावत  हे
मोर -  मुँह -  बिकट  पंछावत  हे ।

एक - ठन बरात के आइस सुरता
खावत रहे  हवँ  मयँ हर  भइरता ।
डोकरा -  बबा हर बात - बताइस 
बता - बता  के  बिकट -  हॉसिस ।
"बेंदरा - होथे  बिकट -  नकलची
गोठ  बतात  हवँ सच्ची - मुच्ची ।"

तुरते -  बात  समझ  म आ  गे
बबा  के  गोठ  के  सुरता आ  गे ।
मयँ -  बेंदरा  ल  कोहा -  मारेंवँ 
कोहा मार  के  मयँ  हर  भागेंव ।

ओ  हर तुरते आमा  म  मारिस
कई - कई ठन आमा म मारिस ।
मीठ - मीठ आमा मैं हर पायेंव 
मन- भर आमा मयँ हर खायेंव ।

बबा  के  गोठ  म  हावय - दम 
पुरखा  के  पॉव  - परव  हरदम ।
सियान के गोठ ल कान म सुन 
बड  - मिठास  हे  मन  म  गुन ।


               चौदह 

     धौंरी गाय आही

धौंरी - गाय ह  आही 
 बछरू   ल  पियाही ।
पाछू -  फेर   दुहाही 
गोरस  ल  तिपोहवँ 
दुलरू  ल  पियाहवँ ।

तयँ हर पल्ला  भागबे
लउहा - लउहा बाढबे ।
तयँ  मदरसा  - जाबे 
पढ  - लिख  के आबे ।

फेर रायपुर म  पढाहवँ
मास्टर तोला बनाहवँ ।
सब झन ल तयँ पढाबे
तयँ  हर गुरुजी बनाबे ।

तैं पसरा - रुपिया पाबे
गॉव  ल  झन - भुलाबे ।
सिध्द - बावा मेर जाबे
मूढ  ल  तयँ  ह नवाबे ।

तयँ सब के काम आबे 
अपन  नाव  -  कमाबे । 
मोर - अँचरा  उजराबे
उज्जर -जस तयँ पाबे ।


          पन्द्रह

अभी झट के सुतबो

अभी   झट  के  सुतबो
भिनसरहा  कन उठबो ।
जब नहा - धो के आबो
चीला - चटनी - खाबो ।

पहाडा -  याद - करबो
मदरसा -  हम - जाबो ।
मन  - लगा  के  पढबो
मेहनत अब्बड  करबो ।

पढ लिख के जब आबो
दार अऊ  भात  खाबो ।
धौंरी- गाय तीर जाबो
 वोला खिचरी खवाबो ।

धौंरी ह  गो - रस दीही
मोर  नोनी  हर  पीही ।
फेर पल्ला दौंड लगाही
ईनाम- जीत के आही ।

आ  रे  निंदिया आ  रे
अँचरा  ल ओढा  दे  रे ।
मोर नोनी थके हावय
लउहा -  लउहा आ  रे ।


         सोलह

भुइयॉ महतारी झूलना ए

भुइयॉ - महतारी ह झुलना  ए
वो  हर  दिन - रात  - झूलाथे ।
पता नइ चलय सुख के दिन ह
कऊखन आथे कऊखन जाथे ।

नोनी तयँ धरती - दायी कस
सब्बो  दुख ल गट - गट पीबे ।
फेर सब झन ल तैं सुख  देबे
तयँ  सब  के  पीरा - हर  लेबे ।

तोला मैं बेटा - कस पोंसिहवँ
जतका  पढबे  तोला पढाहवँ ।
तोर हर सपना पूरा करिहवँ
लोरी - गा  के तोला सुताहवँ ।

तैं ह गॉव म स्कूल - खोलबे
जम्मो -  झन ल तहीं पढाबे ।
अपन  गॉव  के  सेवा  करबे
गॉव के जस ल  तहीं  बढाबे ।

सुंदर सरिख छोकरा देख के
कर  देहवँ  मैं  तोर - बिहाव ।
तोर जिनगी ह सुख म बीतै
मन म रहै सदा शुभ - भाव ।


           सत्रह

धरती - माई के झूलना म

धरती -  दायी  के झूलना म 
सुत  जा रे मोर राधा - रानी ।
देख सुनावत हवँ मयँ तोला
अपने मुँह म अपन कहानी ।

मैं हर पढे - लिखे नइ पायेंव
जिनगी भर मैं दुख पाए हौं ।
तोला मैं हर बिकट पढाहवँ
खेती के सब हुनर- बताहवँ ।

तयँ खेती - वैज्ञानिक बनबे
भारत  के  तयँ  सेवा करबे ।
गॉव - गॉव म तयँ हर जाबे
हर  गरीब  के  पीरा - हरबे ।

सब ल मिलै दार अऊ भात
सब्बो घर म होवय - गाय ।
गो - रस  ह अमृत ए नोनी
सब के घर म गाय बंधाय ।

मनखे गाय ल थोरे पोंसथे
गाय  पोंसथे एक परिवार ।
मोर सपना तैं ह सच करबे
चमकाबे सब  खेत - खार ।


            अठारह

   निंदिया रानी आवत हे

निंदिया -  रानी  आवत  हे  लोरी  तोला  सुनावत  हे 
बडे - बिहिनियॉ उठ जाबे तयँ कुकरा - हॉक पारत हे ।

लाली - गाय के दूध पियाहवँ मयँ हर राधा - रानी ल 
फेर अँगना म खेलबे तयँ ह सुनिहवँ तोतरी  बानी ल ।

थोरिक - बेर म तेल चुपर के मयँ  हर तोला नहवाहौं
फेर अँगोछ के ओन्हा तोला सुघ्घर मयँ हर पहिराहौं ।

अँगरा - रोटी खा के तैं हर रोज पढे  बर  स्कूल  जाबे
पढ लिख लेबे तभे तैं ह दुनियॉ भर म  नाव - कमाबे ।

तोला मैं ह बिकट पढाहौं भले बेचा जावै मोर - गहना
मेहनत म सुख के डेरा हे बस अतके हावै मोर कहना ।

पढ - लिख के तैं मोला पढाबे मोर गुरु तैं ह बन जाबे
ज्ञान - अँजोर तहीं बगराबे सरी गॉव म नाव  कमाबे ।


                      उन्नीस

        गाय कहिथे - मॉ - मॉ 

गाय - कहिथे - मॉ - मॉ 
बिलाई कहिथे - म्याऊँ - म्याऊँ 
कुकुर कहिथे - भों - भों
कौंवा कहिथे - कॉव - कॉव  ।

कोइली कहिथे - कुहु - कुहु
घुघुवा कहिथे- ऊउउ - ऊउउ
चिराई कहिथे - चीं - चीं
बेंदरा कहिथे - हुप - हुप ।

बघवा करथे - हॉव - हॉव
भेंगवा करथे - टर्र - टर्र
झेंगुरा कहिथे - चिकी - मिकी
घोडा कहिथे - हिन - हिन ।

हाथी कहिथे - चीङ्ग - चीङ्ग
मिट्ठू कहिथे - तपत्कुरु
जॉता करथे - घर्र - घर्र
ढेंकी कहिथे - छर - छर
 नॉगर कहिथे - हल - हल  ।

नोनी स्कूल जाही
पढ - लिख के आही ।
महूँ ल पढाही 
सब ल पढाही ।

आ रे निंदिया आ रे
अँचरा ल ओढा रे ।
लउहा - लउहा आ तो तैं हर
नोनी मेर गोठिया रे ।
आ जा निंदिया आ रे
अँचरा ल ओढा रे ।


        बीस

        लोरी

आ रे चिल्हरा आ रे चिल्हरा बाबू संग तयँ  खेल रे 
तोला कनकी देवत हाववँ बाबू - संग  तयँ खेल रे ।

बोनी करे ब मैं जावत हौं संझा - कन मैं आहवँ रे
अँगरा - रोटी  माढे हावय अऊ अथान के  तेल  रे ।

आवत - घानी दुन्नों झन बर गेडी ले के आहवँ रे
अऊ संगे संग दुन्नों झन बर ले  के आहवँ बेल रे ।

समे सुकाल होही एसो तव नवा-नवा ओन्हा लेबो
नावा -  नावा ओन्हा - पहिरे  देखे  जाबो  रेल  रे ।

मोर दुलरू ल बहुत - पढाहौं गहना - गूँठा बेच के
खेत ल मैं कभ्भु नइ बेंचव रखिहौं बने सकेल के ।

उपास धास बाबू ब करिहौं मोला दुरिहा ह दिखथे
उज्जर -  हाथी म बइठे वो डारत हावय नकेल रे ।

बाबू सुत गे जा रे चिल्हरा कनकी ल तैं खा ले रे
बडे - बिहिनिया बाबू उठही खेले बर तयँ आबे रे ।
  


   

         


    

         

Sunday 11 January 2015

चंदन कस तोर माटी हे

चंदन कस तोर माटी हे मोर छत्तीसगढ महतारी
छत्तीसगढ महतारी ओ माई छत्तीसगढ महतारी ।

तोर कोरा हे आरुग -  माई  तयँ सब के महतारी
तयँ सबके महतारी ओ माई तयँ सबके महतारी ।

धान - कटोरा  कहिथें तोला धान उपजथे  भारी
धान - उपजथे भारी ओ माई धान उपजथे भारी ।

रुख - राई मन ओखद ए सञ्जीवनी डारी - डारी
सञ्जीवनी ए डारी ओ  माई सञ्जीवनी  ए  डारी ।

असीस असन हे नरवा नदिया पलथे खेती-बारी
पलथे  खेती - बारी ओ  माई  पलथे खेती - बारी ।

शीतला - माई रोग - शोक ले करथे तोर रखवारी
करथे  तोर रखवारी ओ माई करथे तोर रखवारी ।

नक्सल ह दुर्दशा करत हे पूजत हे धर के आरी
पूजथे धर के आरी ओ माई पूजत हे धर के आरी ।

असुर -  बिदाई  कर  दे माई पावन रहय दुवारी
पावन रहय दुवारी ओ  माई  पावन रहय  दुवारी ।

चंदन कस तोर माटी हे मोर छत्तीसगढ महतारी
छत्तीसगढ महतारी ओ माई छत्तीसगढ महतारी ।


                          दू

                जस - गीत

सत् - बुध्दि अँचरा म धर के गायत्री - दायी आइस हे 
सन्मति हमला दे दे दायी सन्मति हमला देदे ओSSS

हमर गुलामी जावत नइये दायी  तयँ  कुछु  मन्तर दे
भक्ति के अमृत पिया दे दायी मोला अमृत पिया दे ओ

नोनी - मन के अब्बड -  दुर्गति  पेट म हत्या होवत हे
नोनी तोर मेर गोहरावत हे दायी तयँ  हर  सुन  ले ओ

भक्ति - भाव ले भटके हावन होवत हे भारी - अपमान 
तहीं ह धरसा बना दे  दायी  तहीं  ह  रस्ता देखा दे ओ 

खेती - किसानी बिगडे हावय जहर के खातु डारत हन 
धरती म अमृत - बरसा दे लइका - मन ल बचा ले ओ

सत् - बुध्दि अँचरा  म  धर  के गायत्री दायी आइस हे
सन्मति हमला दे दे दायी सन्मति हमला दे दे ओSSS

                            तीन

                     जसगीत

ऋतम्भरा -  प्रज्ञा आए  हे  धरे  ज्ञान  के  गठरी 
धरे ज्ञान के गठरी ओ दायी धरे  ज्ञान के  गठरी ।

स्वाहा स्वधा शची ब्रह्माणी तोरेच नाव ए  दायी
तोरेच  नाव ए मोर दायी ओ तोरेच नाव ए दायी ।

चार - वेद के तयँ जननी अस तैं सबके  महतारी
तयँ सबके महतारी ओ माई तयँ सबके महतारी ।

तोर लइका - मन भटके  हें  पगडंडी तहीं देखाबे
धरसा  तहीं बनाबे ओ दायी  धरसा  तहीं  बनाबे ।

लोभ - मोह  म  बूडे - हावन  भक्ति  कइसे  पाबो 
शरण म हमला ले- ले दायी तभ्भे हमन थिराबो ।

नभ मंडल हर तोर अँचरा ए भुइयॉ  ए तोर कोरा
भुइयॉ ए तोर कोरा ओ दायी भुइयॉ ए तोर कोरा ।

फूल - पान ले तोला रिझाहौं तोरेच करिहौं पूजा 
तोरेच करिहौं  पूजा ओ दायी तोरेच करिहौं पूजा ।

मोर मन मन्दिर म बैठे हस एही भाव ल धरिहौं
एही - भाव  ल  धरिहौं दायी एही भाव ल धरिहौं ।

                          चार

                   जसगीत

जय होवय तोर दायी जय होवय तोर
मोर गायत्री - दायी जय होवय तोर ।

मोर  गायत्री - दायी जय होवय तोर
मोर मॉ  महरानी जय - होवय  तोर ।

चारों - वेद के तयँ महतारी सब ल सन्मति दे दे
अपन शरण म ले ले दायी भाव - भक्ति तैं दे दे ।

बिनती करत हवँ  दुनों हाथ -  जोर
मोर मॉ महरानी जय  होवय  तोर ।

सब ल सुख देथे  दायी हर सब के  -  भय हर लेथे
सब के पालन पोषण करथे सुख- आनन्द ल देथे ।

लीपे  हाववँ सब अंगना -  खोर
अगोरत हावौं सुध ले ले मोर ।

जय होवय जय होवय जय होवय तोर
मोर गायत्री - दायी जय  होवय  तोर
मोर गायत्री दायी जय होवय तोरSSS ।


                     पांच                  

       पूजा करबो नेवरात म

ऋतम्भरा - प्रज्ञा के पूजा करबो हम  नेवरात  म 
अनुष्ठान  हम करबो भैया जप करबो नेवरात  म ।

सब  सुख  हावय सद्बुध्दि ले पा जाबो नेवरात  म 
लइका मन के सब औगुन ल हर लेही नेवरात म ।

यज्ञ  होम श्रध्दा ले करबो सब्बो झन नेवरात म
नव -दिन ह दुर्लभ ए जेला बौरत हन नेवरात म ।

वेदमंत्र जपबो नौ दिन ले मिल जुल के नेवरात म
सत के रस्ता म हम रेंगबो नौ दिन ले नेवरात म ।

दायी  के  मडवा म रहिबो आ गए हन नेवरात म 
जिनगी जगर मगर हो जाही भासत हे नेवरात म ।

                        छः

           मोर दायी महरानी 

कइसे तोला मनाववँ कइसे जस गाववँ महरानी
गायत्री दायी कइसे तोर जस गाववँ ओSSSSS ।
मोर मॉ महरानी कइसे तोर जस गाववँ ओSSS 
गायत्री दायी कइसे तोर जस गाववँ ओSSSSS ।

अब्बड -ऊँच हे तोर सिंहासन मोर ऑखी म पानी
कइसे मैं  तोर मंतर पढिहँव नइए भाखा - बानी ।
कइसे तोर दर्शन पाहवँ मयँ मोर दायी - महरानी
मोर दायी महरानी ओ दायी मोर दायी महरानी ।

हंस - सवारी तैं हर करथस उज्जर हे तोर अंचरा
चार -  वेद के दायी तैं हर हावस अजरा - अमरा ।
कइसे तोर महिमा म गाववँ कइसे देववँ - पानी
कइसे मयँ तोर दर्शन पाववँ मोर दायी महरानी ।


                         सात

          भारत के भाग जगाही 

मोर गायत्री दायी हर भारत  के  भाग - जगाही 
संतन के रक्षा करही अऊ असुर ल पाठ- पढाही ।

स्वाहा स्वधा शची कल्याणी गायत्री ल कहिथें
सब झन पूजा - पाठ ल करथें चालीसा ल पढथें ।
सब ल सन्मति देही - दायी बिगडी सबो बनाही
गायत्री - दायी आकस हे भारत के भाग जगाही ।

चौबीस - अक्षर के मंतर म हावय अद्भुत क्षमता
अष्ट - सिध्दि  देथे  गायत्री हर लेथे हर - जडता ।
सत के गली म रेंगव सबो जनम सफल हो जाही
गायत्री - दायी आकस हे भारत के भाग जगाही ।

अपन सुधार जमो-झन करहीं तभे नतीजा आही
हर मन म देवत्व उपजही धरा सरग बन जाही ।
भारत सोन चिरैया बनही दुनियॉ के गुरु कहाही
गायत्री - दायी आकस हे भारत के भाग जगाही ।


                       आठ

            दिया बार के बइठे हौं

दिया - बार के  बइठे  हवँ  मोर  देवी -  दायी आही 
प्रेम से मोर संग गोठियाही मोला सन्मार्ग देखाही ।

आदि- शक्ति ए मोर दायी हर सबो सामरथ - वाली
समाधान  तुरते मिलथे  जब आथे कोनो  सवाली ।
जे मनखे सुमिरन करही तेन सब - वैभव ल पाही
दिया - बार  के  बइठे  हवँ  मोर देवी - दायी आही ।

आठ - सिध्दि अंचरा म लाने हावय मोर महतारी
सद्विचार - सत्कर्मन के महिमा हावय बड - भारी ।
जेन देवी - दायी  मेर आही  मोक्ष - द्वार  पा जाही
दिया - बार  के  बइठे  हवँ मोर देवी - दायी आही ।

चालीसा के पाठ ल कर लौ माला घलाय जप लव
प्रेम से वोकर पूजा कर लौ अनुष्ठान सब कर लव ।
जब तन तप म तप जाही तौ दायी फल बरसाही 
दिया -  बार के बइठे हवँ  मोर देवी - दायी आही ।



                        नव

                नेवरात आ गे

दिया बार लेवव संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव 
दायी  ल  परघा लव नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव ।

नेवरात -  कहत  हे  सब्बो  -  झन  ल  महतारी  ल  ध्यावव
दायी  के  पूजा  कर  लव  जप -  तप  म  ध्यान -  लगावव ।
अनुष्ठान करव संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव
दिया बार लेवौ संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव ।

मोर -महतारी -  दायी  के  बहिनी अडबड -  महिमा  हावय
जेला  सत्  -  विचार  पाना  हे  महतारी -  तीर   म  आवय ।
दुनों लोक ल सुधारौ नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव
दिया बार लेवौ संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव ।

मुनि - मन - गायत्री - मंतर  म  अनुपम रहस्य  ल   पाइन
महतारी अनगिन  महिमा  ल  फेर  वेद  - पुराण  बखानिन ।
चालीसा गावव संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव
दिया बार लेवौ संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव ।


                          दस

             गायत्री मन्दिर जाबो

नेवराते  म  महतारी  -  दायी  ल  हम  परघाबो
नहा धो के भिनसरहा ले गायत्री- मन्दिर जाबो ।

गायत्री  के  चौबीस - अक्षर  के भारी महिमा  हे
ओकरे पूजा ले जिनगी म गौरव अउ गरिमा  हे ।
गायत्री  -  मन्तर  जपबो चालीसा ल  दोहराबो
नहा धो के भिनसरहा ले गायत्री- मन्दिर जाबो ।

दायी उज्जर -ओन्हा पहिरे करथे हंस - सवारी
मन के मैल ल धोथे उज्जर करथे मोर महतारी ।
एती - तेती नइ भटकन महतारी मेर हम जाबो
नहा - धो के भिनसरहा ले गायत्री मन्दिर जाबो ।

चार -  वेद के  महतारी  ए  मोर  गायत्री -  दायी
आठ - सिध्दि अँचरा म धर के लाने हे सुखदायी ।
महतारी के शरण म जा के गायत्री - गुन - गाबो
नहा - धो के भिनसरहा ले गायत्री - मंदिर जाबो ।