सरग ल टमरत ठाढे हावय देवदारु कोटवार हर
बादर सँग हॉसत-गोठियावत हे देवदारु कोटवार हर ।
महर-महर मम्हावत हावै चिक्कन-चिक्कन पान वोकर
राग - भैरवी गावत हावय देवदारु कोटवार हर ।
रूप अऊ गुन म निच्चट वोहर देवता मन कस लागत हे
सबके सुख - दुख पूछत हावै देवदारु कोटवार हर ।
भरे हे ओखद के जम्मो गुन देवदारु के रुख म सुन
प्रान ल सञ्जीवनी देवत हे देवदारु कोटवार हर ।
'शकुन' गरीयस कस लागत हे चँवर डोलावत ठाढे हे
वेद - पुरान उचारत हावय देवदारु कोटवार हर ।
बादर सँग हॉसत-गोठियावत हे देवदारु कोटवार हर ।
महर-महर मम्हावत हावै चिक्कन-चिक्कन पान वोकर
राग - भैरवी गावत हावय देवदारु कोटवार हर ।
रूप अऊ गुन म निच्चट वोहर देवता मन कस लागत हे
सबके सुख - दुख पूछत हावै देवदारु कोटवार हर ।
भरे हे ओखद के जम्मो गुन देवदारु के रुख म सुन
प्रान ल सञ्जीवनी देवत हे देवदारु कोटवार हर ।
'शकुन' गरीयस कस लागत हे चँवर डोलावत ठाढे हे
वेद - पुरान उचारत हावय देवदारु कोटवार हर ।
हांलाकि लोकभाषा का बंधन है लेकिन फिर भी जितना आत्मसात कर पाया हूं, उससे आनंदित हूं।
ReplyDeleteज्यादा अर्थ तो समझ नही आया
ReplyDeleteपरन्तु पढकर अच्छा लगा.
आभार