Tuesday 11 November 2014

रंग म बूड के फागुन आ गे

रंग  म  बूड  के  फागुन आ  गे बैठ - पतंग - सवारी म
टेसू  -  फूल   धरे   हे   वो  हर  ठाढे  हावय  दुवारी  म ।

भौरा -  कस ऑखी  हे  वोकर आमा - मौर  हे पागा म
मुच - मुच  हॉसत कामदेव कस ठाढे हावय दुवारी म ।

मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध बॉदी हो गए हे आज 
लाज  लुका  गे  कहॉ  कोंजनी  फागुन  खडे  दुवारी म ।

पिंवरा लुगरा पोलका पहिरे मंदिर जावत रहेंव मैं आज
दार - भात  म  करा  ह  पर  गे फागुन  खडे  दुवारी म ।

रस्ता  देखत  रहेंव  बरिस  भर  कइसे  वोला  बिदारौं मैं
'शकुन'  तैं  पहुना  ल  परघा  ले  ठाढे  हावै  दुवारी  म ।

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