Saturday 25 October 2014

प्रश्न घला उत्तर बन जाथे

घेरी - बेरी  प्रश्न  करे  ले अकस्मात  उत्तर  मिल  जाथे
खोजबे  तव आघू  म आथे मनखे के मन हरिया जाथे ।

भीतरी  म  कोनो  बइठे  हे  उत्तर  धरे  अगोरत  हावय
कुछु  पूछ ले ओही बताथे हॉस - हॉस के वो गोठियाथे ।

मैं हर वोला नटवर कहिथौं वोहर मोर सँगे - सँगे रहिथे
सबो बात ल मन से सुनथे घाव म मरहम वोही लगाथे ।

रोथौं  तव ऑसूँ  ल  पोंछथे  मोला पोटार के वो समझाथे
हॉसबे न तव सुन्दर दिखबे अइसे कहिके बिकट हँसाथे ।

'शकुन' वोही ए तोर सँगवारी जे हर तोला मन भर भाथे
वो  हर  निच्चट  सग ए सब के वोही सब ल पार लगाथे ।

No comments:

Post a Comment