घेरी - बेरी प्रश्न करे ले अकस्मात उत्तर मिल जाथे
खोजबे तव आघू म आथे मनखे के मन हरिया जाथे ।
भीतरी म कोनो बइठे हे उत्तर धरे अगोरत हावय
कुछु पूछ ले ओही बताथे हॉस - हॉस के वो गोठियाथे ।
मैं हर वोला नटवर कहिथौं वोहर मोर सँगे - सँगे रहिथे
सबो बात ल मन से सुनथे घाव म मरहम वोही लगाथे ।
रोथौं तव ऑसूँ ल पोंछथे मोला पोटार के वो समझाथे
हॉसबे न तव सुन्दर दिखबे अइसे कहिके बिकट हँसाथे ।
'शकुन' वोही ए तोर सँगवारी जे हर तोला मन भर भाथे
वो हर निच्चट सग ए सब के वोही सब ल पार लगाथे ।
खोजबे तव आघू म आथे मनखे के मन हरिया जाथे ।
भीतरी म कोनो बइठे हे उत्तर धरे अगोरत हावय
कुछु पूछ ले ओही बताथे हॉस - हॉस के वो गोठियाथे ।
मैं हर वोला नटवर कहिथौं वोहर मोर सँगे - सँगे रहिथे
सबो बात ल मन से सुनथे घाव म मरहम वोही लगाथे ।
रोथौं तव ऑसूँ ल पोंछथे मोला पोटार के वो समझाथे
हॉसबे न तव सुन्दर दिखबे अइसे कहिके बिकट हँसाथे ।
'शकुन' वोही ए तोर सँगवारी जे हर तोला मन भर भाथे
वो हर निच्चट सग ए सब के वोही सब ल पार लगाथे ।
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