संझा हो गे अब का करिहौं जाना कहॉ हे नइ जानवँ
ऊहॉ अकेला जाय ल परही जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
भात पसा के मैं आए हौं साग घला कुछु नइ पाएवँ
हडबड - हडबड म मन हावै जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
मनखे करम ले सद्गति- पाथे नइ जानवँ मैं का पाहवँ
कुछु मगज म नइ आवत हे जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
चिरई - चुरगुन ल दाना देथवँ राम नॉव ल जप लेथवँ
पूजा करे बर मैं नइ जानवँ जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
जम - भाई आही लेगे बर हँसी - खुशी मैं चल देहवँ
जौन भी होही अच्छा होही जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
ऊहॉ अकेला जाय ल परही जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
भात पसा के मैं आए हौं साग घला कुछु नइ पाएवँ
हडबड - हडबड म मन हावै जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
मनखे करम ले सद्गति- पाथे नइ जानवँ मैं का पाहवँ
कुछु मगज म नइ आवत हे जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
चिरई - चुरगुन ल दाना देथवँ राम नॉव ल जप लेथवँ
पूजा करे बर मैं नइ जानवँ जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
जम - भाई आही लेगे बर हँसी - खुशी मैं चल देहवँ
जौन भी होही अच्छा होही जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।
सारथी बन जा
हे मन - मोहन नटवर नागर तैं हर मोर सारथी बन जा
तैं अर्जुन के बने सारथी अब तैं मोर सारथी बन जा ।
का करना हे का नइ करना सबो बात ल तहीं बताबे
तैं जइसे कहिबे मैं करिहौं तैं हर मोर सारथी बन जा ।
पगडंडी ल मैं नइ चीन्हौं सुध - भुलही हावौं मैं अब्बड
भटक के मैं हर थक गै हावौं तैं ह मोर सारथी बन जा ।
कै दिन के जिनगी बॉहचे हे ते ह स्वारथ म लग जावै
एही गणित समझा दे मोला तैं ह मोर सारथी बन जा ।
सबो सुख पाये हावौं मैं मन माफिक जिनगी ल जीएवँ
जौन कहेवँ तैं लान के देहस तैं हर मोर सारथी बन जा ।
सार धरे फोकला फेंकत हौं
मोर डेहरी म दिया बरत हे मैं ह तोर रस्ता देखत हौं
मन ह सूपा बन गै हावै सार - धरे फोकला फेंकत हौं ।
रूप अऊ गुन भगवान देहे हे एला खइता नइ करना हे
मैहन-बने ल मैं नइ जानौं सार धरे फोकला फेंकत हौं ।
मनखे - तन अनमोल बहुत हे बने सोच के एला बौरव
जिनगी ह सार्थक हो जावै सार धरे फोकला फेंकत हौं ।
मोर ऑखी म सबो दिखत हे इहॉ बिरान कहॉ हे कोनो
सबो मोर परिवार सरिख ए सार धरे फोकला फेंकत हौं ।
करम के फर ल मनखे पाथे करम ह संगे - संग म जाथे
दुनियॉ म सब्बो सुख पावयँ सार धरे फोकला फेंकत हौं ।
फागुन
अलवाइन - फागुन आ गे भैया सब ल नाच नचाही अब
मन - मतवाला - मांदर बन गे सब ल नाच नचाही अब ।
जौंहर हो गे बुध ल ले गे ठेंगा - देखा के भागत हावय
मन - पतंग के धरे हे डोरी सब ल नाच नचाही अब ।
टेसू कस मन दहकत हावै तेमा कोइली घी डारत हे
उल्टा - पुल्टा सब होवत हे सब ल नाच नचाही अब ।
होरी - देह म ओन्हा नइ ए पेट म भरे हे भूख तभो ले
लोट - पोट कर दिस फागुन ह सब ल नाच नचाही अब ।
फागुन आनन्द के सरूप ए 'शकुन' सीख ले सुख के मूल
मन तो मन ए मगन हे मन भर सब ल नाच नचाही अब ।
नोनी कौडी कानी हो गे
मनु के देश म देख ले तैंहर नोनी कौडी - कानी हो गे
काकर मेर कइसे गोहरावय नोनी कौडी - कानी हो गे ।
डॉकटर इंजीनियर सब्बो के एक्के हाल हे कुन्दरा म
भर - पेट दार - भात नइ पावै नोनी कौडी कानी हो गे ।
नेवरात म होवत हावै पूजा कैना मन के जमो जगह
तभो ले ऑखी नइ उघरे हे नोनी - कौडी - कानी हो गे ।
महतारी - भौजाई - बेटी सबके बिकट दुर्दशा हे
कम्प्यूटर कस बौरावत हावै नोनी- कौडी कानी हो गे ।
'शकुन' बचा नोनी के थरहा वंश - बढाथे नोनी हर
नोनी बिन अंगना हे सूना नोनी - कौडी- कानी हो गे ।
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