Sunday 4 January 2015

संझा हो गे

संझा हो गे अब का करिहौं जाना कहॉ  हे नइ जानवँ
ऊहॉ अकेला जाय ल परही जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।

भात पसा के मैं आए हौं साग घला  कुछु  नइ पाएवँ
हडबड - हडबड म मन हावै जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।

मनखे करम ले सद्गति- पाथे नइ जानवँ मैं का पाहवँ
कुछु मगज म नइ आवत हे जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।

चिरई - चुरगुन ल दाना देथवँ राम नॉव ल जप लेथवँ
पूजा करे बर  मैं नइ जानवँ जाना कहॉ हे नइ जानवँ ।

जम - भाई आही लेगे बर  हँसी - खुशी  मैं  चल  देहवँ
जौन भी  होही अच्छा होही जाना कहॉ  हे नइ जानवँ ।

                 सारथी बन जा 

 

हे मन - मोहन नटवर नागर तैं हर मोर सारथी बन जा 
तैं  अर्जुन  के  बने सारथी अब तैं मोर सारथी बन जा ।

का  करना  हे  का  नइ करना सबो बात ल तहीं बताबे
तैं  जइसे कहिबे मैं करिहौं तैं  हर मोर सारथी बन जा ।

पगडंडी ल मैं नइ चीन्हौं सुध - भुलही हावौं मैं अब्बड
भटक के मैं हर थक गै हावौं तैं ह मोर सारथी बन जा ।

कै दिन के जिनगी बॉहचे हे ते ह स्वारथ म लग जावै
एही गणित समझा दे मोला तैं ह मोर सारथी बन जा ।

सबो सुख पाये हावौं मैं मन माफिक जिनगी ल जीएवँ
जौन कहेवँ तैं लान के देहस तैं हर मोर सारथी बन जा ।

           सार धरे फोकला फेंकत हौं 

 

मोर डेहरी म दिया बरत हे मैं ह तोर रस्ता देखत हौं 
मन ह सूपा बन गै हावै सार - धरे फोकला फेंकत  हौं ।

रूप अऊ गुन भगवान देहे हे एला खइता नइ करना हे
मैहन-बने ल मैं नइ जानौं सार धरे फोकला फेंकत हौं ।

मनखे - तन अनमोल बहुत हे बने सोच के एला बौरव
जिनगी ह सार्थक हो जावै सार धरे फोकला फेंकत हौं ।

मोर ऑखी म सबो दिखत हे इहॉ बिरान कहॉ हे कोनो 
सबो मोर परिवार सरिख ए सार धरे फोकला फेंकत हौं ।

करम के फर ल मनखे पाथे करम ह संगे - संग म जाथे
दुनियॉ म सब्बो सुख पावयँ सार धरे फोकला फेंकत हौं ।

                फागुन

 

अलवाइन - फागुन आ  गे  भैया  सब ल नाच नचाही अब 
मन -  मतवाला - मांदर  बन  गे सब ल नाच नचाही अब ।

जौंहर  हो  गे  बुध  ल  ले  गे ठेंगा -  देखा के भागत हावय
मन -  पतंग  के  धरे  हे  डोरी  सब  ल  नाच नचाही  अब ।

टेसू  कस  मन  दहकत  हावै  तेमा  कोइली  घी  डारत  हे
उल्टा - पुल्टा  सब  होवत  हे  सब  ल  नाच  नचाही  अब ।

होरी -  देह  म ओन्हा  नइ  ए  पेट  म भरे हे भूख तभो ले 
लोट - पोट कर  दिस  फागुन  ह  सब ल नाच नचाही अब ।

फागुन आनन्द के सरूप ए  'शकुन' सीख ले सुख के मूल 
मन तो मन ए मगन हे मन भर सब ल नाच नचाही अब ।

          नोनी कौडी कानी हो गे

 

मनु के देश म देख ले तैंहर नोनी कौडी -  कानी हो  गे
काकर मेर कइसे गोहरावय नोनी कौडी - कानी हो गे ।

डॉकटर इंजीनियर सब्बो के एक्के हाल हे कुन्दरा म 
भर - पेट दार - भात नइ पावै नोनी कौडी कानी हो गे ।

नेवरात म होवत हावै पूजा कैना मन के जमो जगह 
तभो ले ऑखी नइ उघरे हे नोनी - कौडी - कानी हो गे ।

महतारी -  भौजाई  -  बेटी  सबके  बिकट  दुर्दशा  हे 
कम्प्यूटर कस बौरावत हावै नोनी- कौडी कानी हो गे ।

'शकुन'  बचा नोनी के थरहा वंश - बढाथे  नोनी  हर 
नोनी बिन अंगना हे सूना  नोनी - कौडी- कानी हो गे ।  
         
    

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