Sunday 11 January 2015

चंदन कस तोर माटी हे

चंदन कस तोर माटी हे मोर छत्तीसगढ महतारी
छत्तीसगढ महतारी ओ माई छत्तीसगढ महतारी ।

तोर कोरा हे आरुग -  माई  तयँ सब के महतारी
तयँ सबके महतारी ओ माई तयँ सबके महतारी ।

धान - कटोरा  कहिथें तोला धान उपजथे  भारी
धान - उपजथे भारी ओ माई धान उपजथे भारी ।

रुख - राई मन ओखद ए सञ्जीवनी डारी - डारी
सञ्जीवनी ए डारी ओ  माई सञ्जीवनी  ए  डारी ।

असीस असन हे नरवा नदिया पलथे खेती-बारी
पलथे  खेती - बारी ओ  माई  पलथे खेती - बारी ।

शीतला - माई रोग - शोक ले करथे तोर रखवारी
करथे  तोर रखवारी ओ माई करथे तोर रखवारी ।

नक्सल ह दुर्दशा करत हे पूजत हे धर के आरी
पूजथे धर के आरी ओ माई पूजत हे धर के आरी ।

असुर -  बिदाई  कर  दे माई पावन रहय दुवारी
पावन रहय दुवारी ओ  माई  पावन रहय  दुवारी ।

चंदन कस तोर माटी हे मोर छत्तीसगढ महतारी
छत्तीसगढ महतारी ओ माई छत्तीसगढ महतारी ।


                          दू

                जस - गीत

सत् - बुध्दि अँचरा म धर के गायत्री - दायी आइस हे 
सन्मति हमला दे दे दायी सन्मति हमला देदे ओSSS

हमर गुलामी जावत नइये दायी  तयँ  कुछु  मन्तर दे
भक्ति के अमृत पिया दे दायी मोला अमृत पिया दे ओ

नोनी - मन के अब्बड -  दुर्गति  पेट म हत्या होवत हे
नोनी तोर मेर गोहरावत हे दायी तयँ  हर  सुन  ले ओ

भक्ति - भाव ले भटके हावन होवत हे भारी - अपमान 
तहीं ह धरसा बना दे  दायी  तहीं  ह  रस्ता देखा दे ओ 

खेती - किसानी बिगडे हावय जहर के खातु डारत हन 
धरती म अमृत - बरसा दे लइका - मन ल बचा ले ओ

सत् - बुध्दि अँचरा  म  धर  के गायत्री दायी आइस हे
सन्मति हमला दे दे दायी सन्मति हमला दे दे ओSSS

                            तीन

                     जसगीत

ऋतम्भरा -  प्रज्ञा आए  हे  धरे  ज्ञान  के  गठरी 
धरे ज्ञान के गठरी ओ दायी धरे  ज्ञान के  गठरी ।

स्वाहा स्वधा शची ब्रह्माणी तोरेच नाव ए  दायी
तोरेच  नाव ए मोर दायी ओ तोरेच नाव ए दायी ।

चार - वेद के तयँ जननी अस तैं सबके  महतारी
तयँ सबके महतारी ओ माई तयँ सबके महतारी ।

तोर लइका - मन भटके  हें  पगडंडी तहीं देखाबे
धरसा  तहीं बनाबे ओ दायी  धरसा  तहीं  बनाबे ।

लोभ - मोह  म  बूडे - हावन  भक्ति  कइसे  पाबो 
शरण म हमला ले- ले दायी तभ्भे हमन थिराबो ।

नभ मंडल हर तोर अँचरा ए भुइयॉ  ए तोर कोरा
भुइयॉ ए तोर कोरा ओ दायी भुइयॉ ए तोर कोरा ।

फूल - पान ले तोला रिझाहौं तोरेच करिहौं पूजा 
तोरेच करिहौं  पूजा ओ दायी तोरेच करिहौं पूजा ।

मोर मन मन्दिर म बैठे हस एही भाव ल धरिहौं
एही - भाव  ल  धरिहौं दायी एही भाव ल धरिहौं ।

                          चार

                   जसगीत

जय होवय तोर दायी जय होवय तोर
मोर गायत्री - दायी जय होवय तोर ।

मोर  गायत्री - दायी जय होवय तोर
मोर मॉ  महरानी जय - होवय  तोर ।

चारों - वेद के तयँ महतारी सब ल सन्मति दे दे
अपन शरण म ले ले दायी भाव - भक्ति तैं दे दे ।

बिनती करत हवँ  दुनों हाथ -  जोर
मोर मॉ महरानी जय  होवय  तोर ।

सब ल सुख देथे  दायी हर सब के  -  भय हर लेथे
सब के पालन पोषण करथे सुख- आनन्द ल देथे ।

लीपे  हाववँ सब अंगना -  खोर
अगोरत हावौं सुध ले ले मोर ।

जय होवय जय होवय जय होवय तोर
मोर गायत्री - दायी जय  होवय  तोर
मोर गायत्री दायी जय होवय तोरSSS ।


                     पांच                  

       पूजा करबो नेवरात म

ऋतम्भरा - प्रज्ञा के पूजा करबो हम  नेवरात  म 
अनुष्ठान  हम करबो भैया जप करबो नेवरात  म ।

सब  सुख  हावय सद्बुध्दि ले पा जाबो नेवरात  म 
लइका मन के सब औगुन ल हर लेही नेवरात म ।

यज्ञ  होम श्रध्दा ले करबो सब्बो झन नेवरात म
नव -दिन ह दुर्लभ ए जेला बौरत हन नेवरात म ।

वेदमंत्र जपबो नौ दिन ले मिल जुल के नेवरात म
सत के रस्ता म हम रेंगबो नौ दिन ले नेवरात म ।

दायी  के  मडवा म रहिबो आ गए हन नेवरात म 
जिनगी जगर मगर हो जाही भासत हे नेवरात म ।

                        छः

           मोर दायी महरानी 

कइसे तोला मनाववँ कइसे जस गाववँ महरानी
गायत्री दायी कइसे तोर जस गाववँ ओSSSSS ।
मोर मॉ महरानी कइसे तोर जस गाववँ ओSSS 
गायत्री दायी कइसे तोर जस गाववँ ओSSSSS ।

अब्बड -ऊँच हे तोर सिंहासन मोर ऑखी म पानी
कइसे मैं  तोर मंतर पढिहँव नइए भाखा - बानी ।
कइसे तोर दर्शन पाहवँ मयँ मोर दायी - महरानी
मोर दायी महरानी ओ दायी मोर दायी महरानी ।

हंस - सवारी तैं हर करथस उज्जर हे तोर अंचरा
चार -  वेद के दायी तैं हर हावस अजरा - अमरा ।
कइसे तोर महिमा म गाववँ कइसे देववँ - पानी
कइसे मयँ तोर दर्शन पाववँ मोर दायी महरानी ।


                         सात

          भारत के भाग जगाही 

मोर गायत्री दायी हर भारत  के  भाग - जगाही 
संतन के रक्षा करही अऊ असुर ल पाठ- पढाही ।

स्वाहा स्वधा शची कल्याणी गायत्री ल कहिथें
सब झन पूजा - पाठ ल करथें चालीसा ल पढथें ।
सब ल सन्मति देही - दायी बिगडी सबो बनाही
गायत्री - दायी आकस हे भारत के भाग जगाही ।

चौबीस - अक्षर के मंतर म हावय अद्भुत क्षमता
अष्ट - सिध्दि  देथे  गायत्री हर लेथे हर - जडता ।
सत के गली म रेंगव सबो जनम सफल हो जाही
गायत्री - दायी आकस हे भारत के भाग जगाही ।

अपन सुधार जमो-झन करहीं तभे नतीजा आही
हर मन म देवत्व उपजही धरा सरग बन जाही ।
भारत सोन चिरैया बनही दुनियॉ के गुरु कहाही
गायत्री - दायी आकस हे भारत के भाग जगाही ।


                       आठ

            दिया बार के बइठे हौं

दिया - बार के  बइठे  हवँ  मोर  देवी -  दायी आही 
प्रेम से मोर संग गोठियाही मोला सन्मार्ग देखाही ।

आदि- शक्ति ए मोर दायी हर सबो सामरथ - वाली
समाधान  तुरते मिलथे  जब आथे कोनो  सवाली ।
जे मनखे सुमिरन करही तेन सब - वैभव ल पाही
दिया - बार  के  बइठे  हवँ  मोर देवी - दायी आही ।

आठ - सिध्दि अंचरा म लाने हावय मोर महतारी
सद्विचार - सत्कर्मन के महिमा हावय बड - भारी ।
जेन देवी - दायी  मेर आही  मोक्ष - द्वार  पा जाही
दिया - बार  के  बइठे  हवँ मोर देवी - दायी आही ।

चालीसा के पाठ ल कर लौ माला घलाय जप लव
प्रेम से वोकर पूजा कर लौ अनुष्ठान सब कर लव ।
जब तन तप म तप जाही तौ दायी फल बरसाही 
दिया -  बार के बइठे हवँ  मोर देवी - दायी आही ।



                        नव

                नेवरात आ गे

दिया बार लेवव संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव 
दायी  ल  परघा लव नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव ।

नेवरात -  कहत  हे  सब्बो  -  झन  ल  महतारी  ल  ध्यावव
दायी  के  पूजा  कर  लव  जप -  तप  म  ध्यान -  लगावव ।
अनुष्ठान करव संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव
दिया बार लेवौ संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव ।

मोर -महतारी -  दायी  के  बहिनी अडबड -  महिमा  हावय
जेला  सत्  -  विचार  पाना  हे  महतारी -  तीर   म  आवय ।
दुनों लोक ल सुधारौ नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव
दिया बार लेवौ संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव ।

मुनि - मन - गायत्री - मंतर  म  अनुपम रहस्य  ल   पाइन
महतारी अनगिन  महिमा  ल  फेर  वेद  - पुराण  बखानिन ।
चालीसा गावव संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव
दिया बार लेवौ संगी नेवरात आ गे अब तो दिया बार लेवव ।


                          दस

             गायत्री मन्दिर जाबो

नेवराते  म  महतारी  -  दायी  ल  हम  परघाबो
नहा धो के भिनसरहा ले गायत्री- मन्दिर जाबो ।

गायत्री  के  चौबीस - अक्षर  के भारी महिमा  हे
ओकरे पूजा ले जिनगी म गौरव अउ गरिमा  हे ।
गायत्री  -  मन्तर  जपबो चालीसा ल  दोहराबो
नहा धो के भिनसरहा ले गायत्री- मन्दिर जाबो ।

दायी उज्जर -ओन्हा पहिरे करथे हंस - सवारी
मन के मैल ल धोथे उज्जर करथे मोर महतारी ।
एती - तेती नइ भटकन महतारी मेर हम जाबो
नहा - धो के भिनसरहा ले गायत्री मन्दिर जाबो ।

चार -  वेद के  महतारी  ए  मोर  गायत्री -  दायी
आठ - सिध्दि अँचरा म धर के लाने हे सुखदायी ।
महतारी के शरण म जा के गायत्री - गुन - गाबो
नहा - धो के भिनसरहा ले गायत्री - मंदिर जाबो ।



 

                     



1 comment:

  1. बहुत प्रभावी भक्तिमय प्रस्तुतियां...बहुत सुन्दर

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