Thursday 8 January 2015

ओरिया चूहत हावय ओदे

झिमिर - झिमिर पानी बरसत हे पानी - बादर आ गे रे
खपरा  नइ  लहुटाए  पायेंव  सावन -  भादो आ  गे  रे ।

ओन्हा बने सुखावत नइये गोमसुर - गोमसुर लागत हे
ऑखी- कान ल मूँद के गरमी पल्ला- तान के भागै  रे  ।

नांगर -  बैला के दिन आ गे बिजहा - भतहा देखव  तो 
भिंदोल  घला  लउहा  लेवत  हे सावन - भादो आ गे रे ।

गोबर - खातू  डारव आवव  धान के बिजहा बोवव अब
खन - खन ले फेर धान ल पाबो बादर - पानी आ गे रे ।

ओरिया - चूहत हावय ओदे लइका - मन  इतरावत हें
'शकुन' अघावय  हर मनखे  ह बादर - पानी आ गे  रे ।

                      दायी

भिनसरहा ले सुरुज किरन कस 
घर  म  अँजोर - बगराथे दायी ।

सब - झन  बर फेर फरा बना के
सब  झन  मेर  अमराथे  दायी ।

भभर - भभर  के सब ल खवाथे
खुद  लॉघन  रहि  जाथे  दायी ।

मन म कतको बड  दुख  होवय
हॉसत- गोठियावत रहिथे दायी।

छोकरी  के  बिहाव  -  करना  हे
जोरत   हे  पाई  -  पाई   दायी ।

       बिन बेटी सूना हे अंगना

बेटी बहिनी के जानव महिमा बिन बेटी सूना हे अंगना
समरसता ल वोही सिखोथे बिन बेटी सूना  हे अंगना ।

घरवाला के लइका - मन के सब ले आघू करते जोखा
बॉहचे -खुँचे ल खुद खा लेथे बेटी बिन सूना हे अंगना ।

कॉटा खूँटी जोर-जोर के करलई करके बनाथे कुन्दरा
होम देथे फेर सरी जिन्दगी बेटी बिन सूना  हे अंगना ।

अपढ हावै भले बिचारी फेर कुटुंब के किस्मत लिखथे
वोहर जस कभ्भु नइ पावय बेटी बिन सूना हे अंगना ।

हपटत - गिरत तीरथे गाडी मञ्जिल तक अमरा देथे 
गौ-गरुआ कस पेरथे जॉगर बेटी बिन सूना हे अंगना ।

         मोर दायी ए लक्ष्मी दायी 

मुसुवा घर म भूख मरत हे फेर धान कहॉ पा जाथे दायी 
भात - साग रोजे खावत हन मोर दायी ए लक्ष्मी - दायी ।

साग बिसाय ब पैसा नइये फेर खाथन हम रोजेच  साग
मुनगा -  भाजी रोज रॉधथे मोर दायी ए लक्ष्मी -  दायी ।

बनी  करे  बर  जाथे  दायी  टुकनी  म  फेर धान लानथे
तुरते  फेर  ढेंकी  म  कूटथे  मोर दायी ए लक्ष्मी - दायी ।

देवारी  के  दिन  खीर बनाथे वोही मोला बिकट मिठाथे
बॉट-बॉट के खाथन सब झन मोर दायी ए लक्ष्मी दायी । 

मैं अऊ नोनी स्कूल जाथन स्कूल ले जब घर म आथन
चीला - चटनी रोज खवाथे  मोर दायी ए लक्ष्मी - दायी । 

    मोर दायी मीठ - मीठ गोठियाथे 

बिकट  मया करथे मोला अऊ रोज  मोला  स्कूल  अमराथे 
रोज कहानी मोला सुनाथे मोर दायी मीठ- मीठ गोठियाथे ।

मुर्रा  -  मुराई  लाने  हावय  घाम  म  बैठे  मैं  खावत  हवँ 
गो - रस चुरो के लानत हावय मोला गो -रस बहुत मिठाथे ।

इमला म मोर गलती झन होय बनै नहीं फेर कोनो सवाल
पहाडा मोला रोज रटाथे  मोर दायी  मीठ - मीठ गोठियाथे ।

छुवा-छुवौवल खेलथे मोर संग वोहर मोला बिकट छकाथे 
बड - मुश्किल म छूथौं वोला जब दौंडत -  दौंडत थक जाथे ।

एक्के  ठन  लुगरा  ल कइसे पहिरे - पहिरे दिन काटिस  हे
चिरहा अँचरा कहॉ दिखत हे कोजनी कतका बेर बटियाथे ?       


 
 


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