Thursday 8 January 2015

प्रियाप्रसाद गुरुजी मोर

पहिली म जेन मोला पढाइस प्रियाप्रसाद गुरुजी मोर
तोर करजा मैं कइसे छूटवँ प्रिया - प्रसाद गुरु जी मोर ।

अक्षर -अक्षर मोला पढाए मोर जिनगी ल तहीं बनाए
तैं मोर बर देवता - धामी अस प्रियाप्रसाद गुरुजी मोर ।

रेसटीप मैं खेलवँ तोर संग तैं हर पहला टीप हो जावस
हमरे घर म रहत रहे तयँ प्रिया - प्रसाद गुरु - जी मोर ।

दायी हर तोला बेटा मानय सब झन मया करयँ तोला
आज घला सब सुरता करथें प्रिया -प्रसाद गुरुजी मोर ।

अपन गॉव म तोला देख के आज कतेक मन भभरत हे
तोर अवरदा दिन -दिन बाढय प्रियाप्रसाद गुरुजी मोर ।

                     सुकवारा

सबो  दौंड  म  मैं  हर  जीतवँ  फेर  घडा - दौंड  म  मैं   हारवँ 
खुडुवा म  मैं कभ्भु  नइ  जीतेवँ  एही  दुनों म  हरदम हारवँ ।

सुकवारा - जीतय  दुन्नों  म  अऊ  फेर  मोला -  बिजरावय 
खुडुवा  म  मोला  वो  ही पटक  दय  एही  दुनों  म  मैं हारवँ ।

इमला  म  हुँसियार  रहेवँ  मैं  फेर  मूड - पाचन लगै सवाल
बड दिन म जोड -  घटाना सीखेंव गीत ल मैं बढिया गाववँ ।

गा गा के पहाडा याद करन फेर गुणा-भाग म होवय गलती
गुरु जी ह कई - घौं समझावै फेर दिमाग मैं कहॉ ले लानवँ ।

लइकई के दिन कहॉ भुलाथे चुप्पे - चुप दिन भर गोठियाथे 
दिन भर संगे -संग म रहिथे कोन मेर कइसे वोला लुकाववँ ?

          मनखे मन मन मुस्काथे

जेला  मैं हर संगवारी - समझेंव वो दुश्मनी  निभावत  हे 
मौनी - बावा  बन  के  वोहर  कोजनी  का समझावत  हे ।

हॉसत - गोठियावत जिनगी म हर सवाल ह उत्तर - पाथे
घुमना कस बइठे - बइठे  वो सब्बो -  बात - बिगाडत  हे ।

अलवा - जलवा ओन्हा  पहिरे  देवदास  बन  के घूमत हे 
समझाए ले  समझत  नइये  मने - मन  कुम्हलावत  हे ।

कहॉ जा के मन अरझे हावै कलप - कलप के कटथे दिन
अकल के कोठी धरे ले का जब जिनगी सबो सिरावत हे ।

मार मया के बहुत मिठाथे मनखे मन -मन म मुस्काथे
मया  भरे  मनखे  के  मन  हर महर - महर मम्हावत हे ।

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