भारत ल दे वरदान
भारत ल दे वर - दान महादेव भारत ल दे वरदान ।
भारत बनय फेर महान महादेव भारत ल दे वरदान ।
खेती - किसानी अब तहीं बचाबे
तहीं देबे अब धियान महादेव भारत ल दे वर - दान ।
गौ माता रोवत हे खाय बर नइ पावै
ओकरे ले हावै धन धान महादेव भारत ल दे वरदान ।
बूडती के पूजा अडबड करे हन
पूजबो सुरुज - भगवान महादेव भारत ल दे वरदान ।
चुन - चुन के दानव के संहार कर दे
बहँचा ले सज्जन के प्राण महादेव भारत ल दे वरदान ।
स्विस - बैंक म भारत के पैसा परे हे
लान दे झट के हिंदुस्तान महादेव भारत ल दे वरदान ।
हिन्दी ह बिन्दी ए हिन्दुस्तान के
हिन्दी के बढ जावय मान महादेव भारत ल दे वरदान ।
राम - राज कइसे भारत म आवय
दे - दे हमला वोही ज्ञान महादेव भारत ल दे वरदान ।
बियालिस
शरद - पुन्नी
पुन्नी - परी कुऑर के आ गे कतका सुघ्घर कहत हवय ।
नहा के आए हे गो - रस म मुच - मुच हॉसत कहत हवय ।
तमसो मा के पाठ ल सीखव सदाचरन के डहर चलव
नइ तो भारी बिपत म परिहव तुमन सत के शरन- गहव ।
उज्जर तन उज्जर मन राखव एही सिखोवत हौं मैं आज
करनी के फल मिलबेच करथे सच के निमगा रहिथे राज ।
आनी - बानी के जिनिस बेचात हे तुमन ओती झन जाहौ
अपनेच घर म अलवा - जलवा चुरे हे तौने ल खाहव ।
सब नदिया ल जान के गंगा भाव ले करिहव पूजा - पाठ
फूल - पान झन वोमा चढाहव एही बात बर बॉधव गॉठ ।
सुख - चाहत हे जे मनखे ह सब के सुख चाहय सौ - बार
वेद - पुरान बखानत हावय पर - उपकार ए सुख के सार ।
सब्बो- मनखे मन बइठे हावौ आज अपन भीतर झॉकव
अपन- देश भुइयॉ बर तुमन का - का उदिम करत हावव ।
करव स्वदेशी के पूजा अब एही म हे सब के कल्यान
माटी के महिमा ले बनही सोन - चिरैया - हिन्दुस्तान ।
तिरालिस
भोजली - गीत
देवी - गंगा देवी - गंगा लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा
हमरो देवी - भोजली के भींजय आठों - अंगा ।
अहो देवी गंगा
गंगा म भोजली सेराए झन जावौ सेराए झन जावौ
दुरिहा - ले पॉव पर लव अपन - मन - मढावव ।
अहो देवी गंगा
मोर गंगा दायी के पॉव ल पखारौ जी पॉव ल पखारौ
सबो - दुख - हरथे जावव वोकर मेर - गोहरावव ।
अहो देवी गंगा
मने मन पूजा करौ कुछु झन चढावौ कुछु झन चढावौ
इहें बइठे - बइठे भलुक भभर के गोठिया - लव ।
अहो देवी गंगा
चवॉलिस
ठुमरी
बैरी तयँ नइ आए भिनसरहा हो गईस
सुकुवा ह मोला निनासिस अऊ चल दिस ।
पलकन के बहिरी ले रस्ता - बहारेंव
रस्ता म ऑखी के पुतरी - दसा - देंव ।
दार - भात म कइसे तो करा ह पर गईस
बैरी तयँ नइ आए भिनसरहा हो गईस ।
सब्बो - संगवारी - मन झूलना - झूलत हें
सावन म जिनगी के मजा - लेवत हें ।
तोर - बिन जिनगी ह अदियावन होगिस
बैरी तयँ नइ आए भिनसरहा हो गईस ।
पैंतालिस
ठुमरी
सावन ह आ गे तयँ आ जा संगवारी
झटकन नइ आए तव खाबे तयँ गारी ।
नदिया अऊ नरवा म पूरा ह आए हे
मोर मन के झूलना बादर म टंगाय हे ।
हरियर - हरियर हावय भुइयॉ महतारी
झटकन नइ आए तव खाबे तयँ गारी ।
बड - सूना लागत हे सावन म अंगना
रोवत हे रहि-रहि के चूरी अऊ कंगना ।
सुरता हर धर के ठाढे - हावय - आरी
सावन ह आ गे तयँ आ जा संगवारी ।
छियालिस
ठुमरी
बिरबिट ले करिया हे फागुन के रात
सरसरावत हे कहॉ पहावत हे रात ।
चम्पा - चमेली ओली म बँधाय हे
आमा के मौर ह मोर बारा बजाय हे ।
दया मया धरे नइये उजबक हे रात
बिरबिट ले करिया हे फागुन के रात ।
मोला बिजराथे कोकम के भागत हे
घक्खर हे वोह एको नइ लजावत हे ।
आवत हे तोर सुरता तोरेच सब बात
बिरबिट ले करिया हे फागुन के रात ।
सैंतालिस
ठुमरी
कोजनी - तुमन कब आहव गवँतरिहा
कुछु गलती होही तव मोला झन कइहा ।
सावन हर ए दे सूखा - सूखा चल दिहिस
भादों - हर मोला बिकट - बिजराइस ।
डर लगथे मोर मन हो जावै झन हरहा
कोजनी - तुमन कब आहव गवँतरिहा ?
तुँहर - मिट्ठू ह तुँहरेच नाव जपत हे
रतिहा- भर अँगना म दिया बरत हे ।
दिख जातेव तूँ मोला थोरिक लौछरहा
कोजनी तुमन कब आहव गवँतरिहा ?
अडतालिस
ठुमरी
नइ भेजवँ कभ्भु मयँ तुँहला परदेस
सरग ले सुघ्घर - हावय मोर - देस ।
घर के चॉउर - दार खाबो - जुडाबो
अलवा-जलवा ओन्हा पहिरे रहि जाबो ।
अब कतेक दूसर ल देखाना हे टेस
सरग ले सुघ्घर - हावय मोर - देस ।
कहूँ के अँचरा - हर तुँहला झन तीरय
डर लगथे तुँहर मेर कोनो झन अभरै ।
रक्षा करव ब्रह्मा - विष्णु - महेस
सरग ले सुघ्घर - हावय मोर देस ।
उनचास
ठुमरी
कइसे कहँव मयँ हर मोर मन के बात ।
जुग - जुग कस लागत हे पुन्नी के रात ।
मोर सूना अँगना ह खॉव - खॉव करत हे
मन के मोर मैना ह तोला सुमरत हे ।
ऊप्पर ले जीव - परहा हो गे बरसात
जुग - जुग कस लागत हे पुन्नी के रात ।
मन ल समझाथौं फेर मानत कहॉ हे
कौंवा - हर देख तो तोर सुरता लाने हे ।
मोला - हॉसत हे बिजरावत - हे रात
जुग - जुग कस लागत हे पुन्नी के रात ।
पचास
ठुमरी
कब आबे बैरी तोर सुरता - करत हवँ ।
तोरेच सुरता म मैं जियत - मरत हवँ ।
सावन - महीना म प्यास नइ बुताइस
भादो के तीजा म तोर सुरता - आइस ।
दसरहा म आ जा देखे बर तरसत हवँ
तोरेच सुरता म मयँ जियत मरत हवँ ।
दसरहा तो चल दिस देवारी म आ जा
एक झलक थोरकन लौछरहा देखा जा ।
सुरहुत्ती दिया - मयँ जुग-जुग बरत हौं
कब - आबे बैरी तोर सुरता करत हवँ ?
इंक्यावन
भोजली - गीत
देवी गंगा देवी गंगा लहर - तुरंगा हो लहर - तुरंगा
हमरो देवी - भोजली के भींजय आठो - अंगा ।
अहो देवी गंगा
गौरी गनपति के प्रथम होही पूजा प्रथम होही पूजा
गौरी - गनपति असन - कहूँ नइए - दूजा ।
अहो देवी गंगा
हाथी के मुँहरन अऊ मुसुवा सवारी हे मुसुवा सवारी
सत् - बुध्दि दीही गन - पति महिमा हे भारी ।
अहो देवी गंगा
दायी के सेवा ले पाइन हें मेवा हो पाइन हें मेवा
सबो - मनखे करव अपन - दायी के सेवा ।
अहो देवी गंगा
No comments:
Post a Comment