ब्रज - अवधी सरिख छत्तीसगढी बन जातिस
सूर - तुलसी सरिख साहित्य हमला रचना हे ।
मैथिली ल विद्यापति जैसे अमर बना दिहिस
वोही ढंग के भगीरथ - प्रयास हमला करना हे ।
चार - वेद पढतेंव छत्तीसगढी म मोर मन हावै
उपनिषद के घलाव अनुवाद हमला करना हे ।
चाणक्य - विदुर - नीति पढतेन छत्तीसगढी म
छत्तीसगढ तिजौरी ल मनी मानिक ले भरना हे ।
दुष्यन्त कुमार के हिन्दी गज़ल के सूत्रपात हर 1970 के दशक म होय रहिस हे , तेकर दस बरिस बाद सन 1980 के दशक म , कई ठन ऑचलिक भाखा म 'गज़ल' लिखे के शुरुआत होइस , वोही बखत छत्तीसगढी म घलाव 'गज़ल' लिखे गईस । शोध - ग्रन्थ के अनुसार छत्तीसगढी के पहिली गज़लकार डा. विनय पाठक हर ए ।
" तोर मन सोंहारी मोर मन बरा
मया तेल छींटा बिन सरही मोर नुनचरा ।
तोर मन बाती अऊ मोर मन तेल
तोर बिन गोई मोर जिनगी ए जेल ।"
डा. विनय पाठक
छत्तीसगढी म 'गज़ल' तो बहुत लिखे जात हे फेर छत्तीसगढी हर 'गज़ल' के आत्मा ल धरिस हे अऊ वोही धरसा म रेंगत चले जात हे अब देखव " बूड मरय नहकौनी दय " के 'गज़ल' हर पढइया मन ल बने लागिस के नहीं , तेला तो वोही मन बताहीं । 'गज़ल' के धार हर अपन रस्ता ल खुद बनाथे , तेकरे सेती तो साहित्य म नित नवा - नवा प्रयोग होवत चले जात हे । एमा कहूँ के बस नइये । नदिया के धार तो आए , बॉधे के कोशिश करबे तव मेढ फोर के भागही आऊ एही वोकर विशेषता घलाव ए । हम कहॉ लिखथन कहूँ आ के हमर मेर लिखवा लेथे अऊ हमला जस दे के चल देथे । वोकर आशीर्वाद सब झन ऊपर बने रहय ।
शकुन्तला शर्मा
छेरछेरा पुन्नी 2015
सूर - तुलसी सरिख साहित्य हमला रचना हे ।
मैथिली ल विद्यापति जैसे अमर बना दिहिस
वोही ढंग के भगीरथ - प्रयास हमला करना हे ।
चार - वेद पढतेंव छत्तीसगढी म मोर मन हावै
उपनिषद के घलाव अनुवाद हमला करना हे ।
चाणक्य - विदुर - नीति पढतेन छत्तीसगढी म
छत्तीसगढ तिजौरी ल मनी मानिक ले भरना हे ।
दुष्यन्त कुमार के हिन्दी गज़ल के सूत्रपात हर 1970 के दशक म होय रहिस हे , तेकर दस बरिस बाद सन 1980 के दशक म , कई ठन ऑचलिक भाखा म 'गज़ल' लिखे के शुरुआत होइस , वोही बखत छत्तीसगढी म घलाव 'गज़ल' लिखे गईस । शोध - ग्रन्थ के अनुसार छत्तीसगढी के पहिली गज़लकार डा. विनय पाठक हर ए ।
" तोर मन सोंहारी मोर मन बरा
मया तेल छींटा बिन सरही मोर नुनचरा ।
तोर मन बाती अऊ मोर मन तेल
तोर बिन गोई मोर जिनगी ए जेल ।"
डा. विनय पाठक
छत्तीसगढी म 'गज़ल' तो बहुत लिखे जात हे फेर छत्तीसगढी हर 'गज़ल' के आत्मा ल धरिस हे अऊ वोही धरसा म रेंगत चले जात हे अब देखव " बूड मरय नहकौनी दय " के 'गज़ल' हर पढइया मन ल बने लागिस के नहीं , तेला तो वोही मन बताहीं । 'गज़ल' के धार हर अपन रस्ता ल खुद बनाथे , तेकरे सेती तो साहित्य म नित नवा - नवा प्रयोग होवत चले जात हे । एमा कहूँ के बस नइये । नदिया के धार तो आए , बॉधे के कोशिश करबे तव मेढ फोर के भागही आऊ एही वोकर विशेषता घलाव ए । हम कहॉ लिखथन कहूँ आ के हमर मेर लिखवा लेथे अऊ हमला जस दे के चल देथे । वोकर आशीर्वाद सब झन ऊपर बने रहय ।
शकुन्तला शर्मा
छेरछेरा पुन्नी 2015
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