Saturday, 16 November 2013

कहॉं पाबो बीरापान

बोरे  खायेंव  बासी  खायेंव  मुनगा - भाजी  संग  म ।
आ जा पहुना तहूँ  ह खा ले  मोर मया अउ  उमंग म ॥

फरा  बनायेंव पातर - पातर  तिल्ली  म  बघारत हौं ।
लाली मिरचा के फोरन दे हँव रस्ता तोर निहारत हौं ॥

जिमीकॉंदा  के  साग  चुरे  हे  वोमा  डारे  हौं  मुनगा ।
गरम -  मसाला  डारे  हावौं  आउ  डारे  हावौं  झुरगा ॥

आलू -  केरा  साग  चुरे  हे  सँग  म  हावय  चँउंसेला । 
तैं  नइ  आए  बैरी  अब  मैं  बॉंहटत  हौं  एला - वोला ॥

बोहार के भाजी रॉंधे हावौं  तेमा दही ल डारे  हावँव  रे ।
तसमई रॉंधे हावँव अब  मैं तोर बिन  कइसे  खावँव रे ?

कतको  हॉंसथौं  बोलथौं फेर मैं तोरेच सुरता करथौं  रे।
जी अटके हे तोर-बर मोर मैं छिन-छिन जीथौं मरथौं रे॥

खेडहा - भाजी  दार- डार  के  रॉंधे  हौं  तैं  आ जा  घर ।
ज्वालामुखी परे हे मन म तहूँ तो थोरकन अनुभव कर॥

खेत म करगा  बाढे  हावय पातर हो गए  हावय  धान ।
अपने घर म चेत लगा तैं आन के गोठ म झन दे कान॥

बोरे- बासी  खा लेथौं  मैं  चिख  लेथौं आमा के अथान ।
फेर खा लेथौं बिही-पान कोन लानही मोर बर बीरापान?

1 comment:

  1. इस पोस्ट की चर्चा, दिनांक :- 22/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 48 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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