धरम-करम म मन ल लगाबो करबो उच्च-विचार मनन।
एही संदेशा ले के आए हे गरिमा-गरू-गहन- अगहन ॥
अगहन आगे पवित्र महीना पावन-पथ के करव-परन ।
भगवान कहे हे गीता म कि "महीना म मैं औं अगहन॥"
काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह-मत्सर के होही सतत दमन।
पावन-पानी झलक के आइस निपुन-प्रवीन-गहन-अगहन॥
अगहन के गुरुवार म होथे लक्ष्मी - महारानी के पूजा ।
चौंक पुराए हे हर अँगना म लक्ष्मी-दाई कस नइए दूजा ॥
कमल के फूल चढाथें सब झन करथें अपन मन के मंथन।
कर्म के फल ल सब झन पाथें सोंच-विचार लौ करौ-मनन॥
गीता- जयन्ती के पुण्य-पर्व हर एहिच महीना म आथे ।
"योगः कर्मसु कौशलम्" के अर्थ सबो ल समझाथे ॥
कर्म के मर्म ल जौन समझिस भव-पार हो गे अपने-अपन।
कृष्ण-कृपा बिन जिनगी बिरथा कतको कर ले चाहे जतन॥
एही संदेशा ले के आए हे गरिमा-गरू-गहन- अगहन ॥
अगहन आगे पवित्र महीना पावन-पथ के करव-परन ।
भगवान कहे हे गीता म कि "महीना म मैं औं अगहन॥"
काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह-मत्सर के होही सतत दमन।
पावन-पानी झलक के आइस निपुन-प्रवीन-गहन-अगहन॥
अगहन के गुरुवार म होथे लक्ष्मी - महारानी के पूजा ।
चौंक पुराए हे हर अँगना म लक्ष्मी-दाई कस नइए दूजा ॥
कमल के फूल चढाथें सब झन करथें अपन मन के मंथन।
कर्म के फल ल सब झन पाथें सोंच-विचार लौ करौ-मनन॥
गीता- जयन्ती के पुण्य-पर्व हर एहिच महीना म आथे ।
"योगः कर्मसु कौशलम्" के अर्थ सबो ल समझाथे ॥
कर्म के मर्म ल जौन समझिस भव-पार हो गे अपने-अपन।
कृष्ण-कृपा बिन जिनगी बिरथा कतको कर ले चाहे जतन॥
उम्दा रचना और प्रभावी पंक्तिया .....!!!
ReplyDelete