Saturday, 23 November 2013

अगहन

धरम-करम म मन ल लगाबो करबो उच्च-विचार मनन।
एही  संदेशा  ले  के  आए हे गरिमा-गरू-गहन- अगहन ॥ 

अगहन  आगे  पवित्र  महीना  पावन-पथ के करव-परन ।
भगवान  कहे  हे  गीता म कि "महीना  म मैं औं अगहन॥"

काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह-मत्सर  के  होही  सतत  दमन।
पावन-पानी झलक के आइस निपुन-प्रवीन-गहन-अगहन॥

अगहन  के  गुरुवार  म  होथे  लक्ष्मी - महारानी  के पूजा ।
चौंक  पुराए  हे हर अँगना म लक्ष्मी-दाई कस नइए दूजा ॥

कमल के फूल चढाथें सब  झन करथें अपन मन के मंथन।
कर्म के फल ल सब झन पाथें सोंच-विचार लौ करौ-मनन॥

गीता- जयन्ती  के  पुण्य-पर्व  हर एहिच महीना म आथे ।
"योगः  कर्मसु   कौशलम्"  के   अर्थ  सबो  ल  समझाथे ॥ 

कर्म के मर्म ल जौन समझिस भव-पार हो गे अपने-अपन।
कृष्ण-कृपा बिन जिनगी बिरथा कतको कर ले चाहे जतन॥    

1 comment:

  1. उम्दा रचना और प्रभावी पंक्तिया .....!!!

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