मुँहरन हर गजब सुघ्घर हावय तोर
तोरे डहर लगे रहिथे मन हरहा मोर ।
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर
फुडहर डहर फुनगी फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर ।
आनी- बानी के सिंगार करय न
घेरी- बेरी बेनी गाँथय गोंदा फूल खोंचय
पिचकाट अब्बड़ करय तेला का बतावौं
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर
फुडहर डहर भईया फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर ।
मेला-मडई म ओदे किन्दरत हे न
रेंहचुल म झूलत हे मुर्रा-लाडू खावत हे
मोला ठेंगा देखावत हे मोर मन मोह लिस न
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर
फुडहर डहर फुनगी फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर ।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई [ छ. ग, ]
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