Wednesday 24 July 2013

ददरिया



                   


मुँहरन हर गजब सुघ्घर  हावय तोर

तोरे डहर लगे रहिथे मन हरहा मोर ।

चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर

फुडहर डहर फुनगी फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर ।

आनी- बानी के सिंगार करय न

घेरी- बेरी बेनी गाँथय गोंदा फूल खोंचय

पिचकाट अब्बड़ करय तेला का बतावौं

चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर

फुडहर डहर भईया फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर ।

मेला-मडई म ओदे किन्दरत हे न

रेंहचुल म झूलत हे मुर्रा-लाडू खावत हे

मोला ठेंगा देखावत हे मोर मन मोह लिस न

चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर

फुडहर डहर फुनगी फेंकत हावय फोकला फुडहर डहर ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई [ छ. ग, ]

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