राम बनवास के दिन ह बीत गे अब तो देवारी आवत हे।
भभरत हावैं सब्बो मनखे सब ढोल - मंजीरा बाजत हे ॥
कार्तिक बहुत पवित्र महीना सब झन जागरूक रहिथें ।
सबो नहाथें भिनसरहा ले पूजा अउ पाठ सबो करथें ॥
रावण-राज के अँत हे निश्चित सत्य विजय हर शाश्वत हे।
मन म भरे हे भय फेर वोहर सच नियाव बर आश्वस्त हे ॥
कोन छेंके सकही सुरुज ल ओ तो सब दिन ऊही न ।
भले थोर कन बादर आही सुरुज तहॉ ले चमकही न ॥
मन म हावै भरोसा एक दिन होही सज्जन के कल्याण ।
वेद शास्त्र सब एही कहत हें भले - मनुज के होही त्राण ॥
भिनसरहा ले कतकिहिन दाई नहा के पूजा कर डारिस ।
भोग - भात खाए बर जाबो मोछिन दाई नेवता दे डारिस ॥
मूँग- दार म अमली डरे हे कोचइ संग खिचरी चुरे हे न ।
अभी घला वो स्वाद ह मोर तो मन म मुँह म भरे हे न ॥
धन - तेरस हर पहिली आही तेरह दिया बारबो जी ।
लछमी - दाई के पूजा करबो असीस ल वोकर पाबो जी ॥
जम भगवान के चौदस आही तौन दिन चौदह दिया बारबो ।
वो दिन दिया पिसान के बनही जम देवता ल वोला चढाबो॥
रात- अमावस के आ गए हे आकस लक्ष्मी बिराजे हे ।
देश दिया कस चमकत हावय सरग तरी म आ गए हे ॥
घर- घर म एदे दिया बरत हे चाहे महल होय चाहे कुटीर ।
लछमीदाई सबल धन दय खावैं सब अपन-अपन घर खीर॥
अँजोरी-पाख के नौमी आ गे औंरा-तरी दार-भात खाबो ।
कुटुम-सहित जमो झन बैठ के औंरा के छॉव म गोठियाबो॥
औंरा नेवता देवत हे हमला मिल -जुर के बइठव छॉव म ।
एक दिन बर सहराती- लइका - मन आ जावव गॉव म ॥
देव- उठनी के दिन चौंरा म कुसियार के मँडवा बनही न ।
तुलसी - दाई के बिहाव होही घर-घर फेर दिया ह बरही न ॥
तुलसी - बिहाव के पाछू म मनखे मन के होथे बिहाव ।
बनावन-चुरोवन चुरथे घर घर सब झन खाजा पपची खाव॥
भभरत हावैं सब्बो मनखे सब ढोल - मंजीरा बाजत हे ॥
कार्तिक बहुत पवित्र महीना सब झन जागरूक रहिथें ।
सबो नहाथें भिनसरहा ले पूजा अउ पाठ सबो करथें ॥
रावण-राज के अँत हे निश्चित सत्य विजय हर शाश्वत हे।
मन म भरे हे भय फेर वोहर सच नियाव बर आश्वस्त हे ॥
कोन छेंके सकही सुरुज ल ओ तो सब दिन ऊही न ।
भले थोर कन बादर आही सुरुज तहॉ ले चमकही न ॥
मन म हावै भरोसा एक दिन होही सज्जन के कल्याण ।
वेद शास्त्र सब एही कहत हें भले - मनुज के होही त्राण ॥
भिनसरहा ले कतकिहिन दाई नहा के पूजा कर डारिस ।
भोग - भात खाए बर जाबो मोछिन दाई नेवता दे डारिस ॥
मूँग- दार म अमली डरे हे कोचइ संग खिचरी चुरे हे न ।
अभी घला वो स्वाद ह मोर तो मन म मुँह म भरे हे न ॥
धन - तेरस हर पहिली आही तेरह दिया बारबो जी ।
लछमी - दाई के पूजा करबो असीस ल वोकर पाबो जी ॥
जम भगवान के चौदस आही तौन दिन चौदह दिया बारबो ।
वो दिन दिया पिसान के बनही जम देवता ल वोला चढाबो॥
रात- अमावस के आ गए हे आकस लक्ष्मी बिराजे हे ।
देश दिया कस चमकत हावय सरग तरी म आ गए हे ॥
घर- घर म एदे दिया बरत हे चाहे महल होय चाहे कुटीर ।
लछमीदाई सबल धन दय खावैं सब अपन-अपन घर खीर॥
अँजोरी-पाख के नौमी आ गे औंरा-तरी दार-भात खाबो ।
कुटुम-सहित जमो झन बैठ के औंरा के छॉव म गोठियाबो॥
औंरा नेवता देवत हे हमला मिल -जुर के बइठव छॉव म ।
एक दिन बर सहराती- लइका - मन आ जावव गॉव म ॥
देव- उठनी के दिन चौंरा म कुसियार के मँडवा बनही न ।
तुलसी - दाई के बिहाव होही घर-घर फेर दिया ह बरही न ॥
तुलसी - बिहाव के पाछू म मनखे मन के होथे बिहाव ।
बनावन-चुरोवन चुरथे घर घर सब झन खाजा पपची खाव॥
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