Sunday, 20 October 2013

कार्तिक

राम बनवास के  दिन ह बीत गे अब तो  देवारी आवत हे।
भभरत  हावैं सब्बो मनखे सब ढोल - मंजीरा बाजत हे ॥

कार्तिक  बहुत पवित्र महीना सब झन  जागरूक रहिथें ।
सबो  नहाथें भिनसरहा  ले  पूजा अउ  पाठ  सबो  करथें ॥ 

रावण-राज के अँत हे निश्चित सत्य विजय हर शाश्वत हे।
मन म भरे हे भय फेर वोहर सच नियाव बर आश्वस्त हे ॥

कोन  छेंके  सकही  सुरुज  ल  ओ  तो  सब दिन ऊही न ।
भले  थोर  कन  बादर आही  सुरुज  तहॉ ले चमकही न ॥

मन म हावै भरोसा एक दिन होही  सज्जन के कल्याण ।
वेद शास्त्र  सब एही  कहत हें भले - मनुज के होही त्राण ॥

भिनसरहा ले कतकिहिन दाई नहा के पूजा कर डारिस ।
भोग - भात खाए बर जाबो मोछिन दाई नेवता दे डारिस ॥

मूँग- दार  म अमली  डरे हे कोचइ संग खिचरी चुरे हे न ।
अभी  घला  वो  स्वाद  ह मोर तो मन म मुँह म भरे हे न ॥

धन - तेरस   हर   पहिली आही  तेरह  दिया  बारबो  जी ।
लछमी - दाई  के पूजा  करबो असीस ल वोकर पाबो जी ॥

जम भगवान के चौदस आही तौन दिन चौदह दिया बारबो ।
वो दिन दिया पिसान के बनही जम देवता ल वोला चढाबो॥

रात- अमावस  के  आ  गए  हे  आकस  लक्ष्मी  बिराजे  हे ।
देश  दिया  कस  चमकत  हावय  सरग  तरी म आ गए हे ॥

घर- घर म एदे दिया बरत हे चाहे महल होय चाहे कुटीर ।
लछमीदाई सबल धन दय खावैं सब अपन-अपन घर खीर॥ 

अँजोरी-पाख के नौमी आ गे औंरा-तरी दार-भात खाबो ।
कुटुम-सहित जमो झन बैठ के औंरा के छॉव म गोठियाबो॥

औंरा  नेवता देवत हे हमला मिल -जुर के  बइठव  छॉव म ।
एक  दिन  बर  सहराती- लइका - मन  आ जावव  गॉव म ॥

देव- उठनी  के  दिन चौंरा म कुसियार के मँडवा बनही न ।
तुलसी - दाई के बिहाव होही  घर-घर फेर दिया ह बरही न ॥

तुलसी - बिहाव  के  पाछू  म  मनखे  मन  के होथे बिहाव ।
बनावन-चुरोवन चुरथे घर घर सब झन खाजा पपची खाव॥  




 

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