आगे बादर पानी के दिन अब तो पानी - पूरा आही
बीत गे बोरे - बासी के दिन दार - भात ह अब भाही।
फरा अंगाकर रोटी चीला - चटनी संग सब खावत हें
खेत - खार म कजरी - करमा भोजली गॉंव-गॉंव गाही ।
अंगना गली खोर म चिखला नोनी खेलय कोन मेरन
सम्हर पखर के बादर राजा सबो झन ल नाच नचाही ।
संग म पानी के झिपार के गेंगरुआ परछी म आगे
भौजी निच्चट छिनमिनही हे ननंद वोला अब डेरवाही ।
चिक्कन होगे सबके एडी 'शकुन' सबो झन भभरत हावैं
चौमास ह कोठी ल भर दीही जुर मिल सबो ददरिया गाहीं ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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गज़ल
रिमझिम पानी म मन मंजूर हो जाथे काबर
बादर के गरजन मोला अब्बड डेरवाथे काबर ?
पानी गिरथे तव ए माटी बिकट मम्हाथे काबर
रिमझिम पानी ह मोर मन ल हरियाथे काबर?
नोनी आही तीजा पोरा म अगोरत हावय महतारी
रहि रहि के नोनी के गोड हर खजुआथे काबर?
बादर आथे तव मस्त मगन होथे किसान हर
तरिया हे मतलाय तभो मोर मन उजराथे काबर ?
'शकुन' अगोरत हे मनखे सावन अउ भादो ल
धक धक धक सावन आगे मन ल धडकाथे काबर ?
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
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गज़ल
बाबा हर सरकार ल रामलीला ले चुपे-चुप चेताइस हे
जनतंत्र के महत्व ल गॉंधी के भाखा म समझाइस हे।
बाबा तैं अकेला नइ अस देश तोर संग ठाढे हावय
देश ह सत्याग्रह ल आज तोरेच कंठ ले गाइस हे ।
बाबा तैं फिकर झन कर जनता जाग गए हावय
जयप्रकाश के ऑंदोलन हर आज रंग लानिस हे ।
राज करत - करत आज शासन हर दुस्शासन होगे
मिश्र सरिख माहौल आज हमर भारत म आइस हे ।
' शकुन ' जा तहूँ हर गेरुआ टोपी ल पहिर के आ जा
करिया अंग्रेज ल बिदारे ब गॉंधी गेरुआ पहिरे आइस हे ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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गज़ल
रंग म बूड के फागुन आ गे बइठ पतंग सवारी म
टेसू फूल धरे हे हाथ म ठाढे हावय दुवारी म ।
भौंरा कस ऑंखी हे वोकर आमा मौर हे पागा म
मुच - मुच हॉंसत कामदेव कस ठाढे हावय दुवारी म ।
मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध ह बांदी हो गे आज
लाज लुकागे कहॉं कोजनी फागुन खडे दुवारी म ।
पिंवरा लुगरा पोलका पहिरे मंदिर जावत रहेंव मैं आज
दार - भात म करा ह पर गे फागुन खडे दुवारी म ।
रस्ता देखत रहेंव बरिस भर कैसे वोला बिदारौं मैं
'शकुन' तैं पहुना ल परघा ले ठाढे हावय दुवारी म ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
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गज़ल
आम - लीम- बर- पीपर - पहिरे छत्तीसगढ के सबो गॉंव
नदिया नरवा पार म बइठे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
धान-बौटका कहिथें सब झन किसम किसम के होथे धान
हरियर - हरियर लुगरा पहिरे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
हर पारा म सुवा ददरिया राग सुनावत रहिथे ओ
संझा कन जस गीत ल गाथे छत्तीसगढ के सबो ग़ॉंव ।
भिनसरहा ले गॉंव के फेरी भजन- मण्डली करथे रोज
देश के पोटा म लुकाय हे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
'शकुन ' जगावव जमो गॉंव ल गॉंव म बसथे भारत मोर
खनखन खनखन धान उगलत हे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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बीत गे बोरे - बासी के दिन दार - भात ह अब भाही।
फरा अंगाकर रोटी चीला - चटनी संग सब खावत हें
खेत - खार म कजरी - करमा भोजली गॉंव-गॉंव गाही ।
अंगना गली खोर म चिखला नोनी खेलय कोन मेरन
सम्हर पखर के बादर राजा सबो झन ल नाच नचाही ।
संग म पानी के झिपार के गेंगरुआ परछी म आगे
भौजी निच्चट छिनमिनही हे ननंद वोला अब डेरवाही ।
चिक्कन होगे सबके एडी 'शकुन' सबो झन भभरत हावैं
चौमास ह कोठी ल भर दीही जुर मिल सबो ददरिया गाहीं ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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गज़ल
रिमझिम पानी म मन मंजूर हो जाथे काबर
बादर के गरजन मोला अब्बड डेरवाथे काबर ?
पानी गिरथे तव ए माटी बिकट मम्हाथे काबर
रिमझिम पानी ह मोर मन ल हरियाथे काबर?
नोनी आही तीजा पोरा म अगोरत हावय महतारी
रहि रहि के नोनी के गोड हर खजुआथे काबर?
बादर आथे तव मस्त मगन होथे किसान हर
तरिया हे मतलाय तभो मोर मन उजराथे काबर ?
'शकुन' अगोरत हे मनखे सावन अउ भादो ल
धक धक धक सावन आगे मन ल धडकाथे काबर ?
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गज़ल
बाबा हर सरकार ल रामलीला ले चुपे-चुप चेताइस हे
जनतंत्र के महत्व ल गॉंधी के भाखा म समझाइस हे।
बाबा तैं अकेला नइ अस देश तोर संग ठाढे हावय
देश ह सत्याग्रह ल आज तोरेच कंठ ले गाइस हे ।
बाबा तैं फिकर झन कर जनता जाग गए हावय
जयप्रकाश के ऑंदोलन हर आज रंग लानिस हे ।
राज करत - करत आज शासन हर दुस्शासन होगे
मिश्र सरिख माहौल आज हमर भारत म आइस हे ।
' शकुन ' जा तहूँ हर गेरुआ टोपी ल पहिर के आ जा
करिया अंग्रेज ल बिदारे ब गॉंधी गेरुआ पहिरे आइस हे ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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रंग म बूड के फागुन आ गे बइठ पतंग सवारी म
टेसू फूल धरे हे हाथ म ठाढे हावय दुवारी म ।
भौंरा कस ऑंखी हे वोकर आमा मौर हे पागा म
मुच - मुच हॉंसत कामदेव कस ठाढे हावय दुवारी म ।
मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध ह बांदी हो गे आज
लाज लुकागे कहॉं कोजनी फागुन खडे दुवारी म ।
पिंवरा लुगरा पोलका पहिरे मंदिर जावत रहेंव मैं आज
दार - भात म करा ह पर गे फागुन खडे दुवारी म ।
रस्ता देखत रहेंव बरिस भर कैसे वोला बिदारौं मैं
'शकुन' तैं पहुना ल परघा ले ठाढे हावय दुवारी म ।
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आम - लीम- बर- पीपर - पहिरे छत्तीसगढ के सबो गॉंव
नदिया नरवा पार म बइठे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
धान-बौटका कहिथें सब झन किसम किसम के होथे धान
हरियर - हरियर लुगरा पहिरे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
हर पारा म सुवा ददरिया राग सुनावत रहिथे ओ
संझा कन जस गीत ल गाथे छत्तीसगढ के सबो ग़ॉंव ।
भिनसरहा ले गॉंव के फेरी भजन- मण्डली करथे रोज
देश के पोटा म लुकाय हे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
'शकुन ' जगावव जमो गॉंव ल गॉंव म बसथे भारत मोर
खनखन खनखन धान उगलत हे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
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