Wednesday 7 August 2013

गज़ल

आगे   बादर  पानी  के   दिन  अब   तो  पानी -  पूरा  आही 
बीत  गे  बोरे -  बासी  के  दिन  दार -  भात  ह  अब   भाही।

फरा  अंगाकर  रोटी  चीला - चटनी  संग  सब  खावत   हें
खेत - खार  म  कजरी - करमा  भोजली  गॉंव-गॉंव  गाही ।

अंगना  गली  खोर  म चिखला नोनी खेलय  कोन मेरन
सम्हर  पखर  के बादर राजा  सबो  झन ल  नाच  नचाही ।

संग  म  पानी  के  झिपार  के  गेंगरुआ  परछी   म  आगे
भौजी  निच्चट  छिनमिनही  हे  ननंद वोला अब  डेरवाही ।

चिक्कन होगे सबके  एडी  'शकुन' सबो झन भभरत  हावैं
चौमास ह कोठी ल भर दीही जुर मिल सबो ददरिया गाहीं ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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गज़ल

रिमझिम  पानी  म   मन   मंजूर  हो  जाथे  काबर
बादर   के   गरजन  मोला  अब्बड  डेरवाथे  काबर ?

पानी  गिरथे तव  ए  माटी बिकट   मम्हाथे काबर
रिमझिम  पानी  ह  मोर  मन ल  हरियाथे  काबर? 

नोनी  आही तीजा पोरा म अगोरत हावय महतारी
रहि  रहि  के  नोनी  के गोड  हर  खजुआथे  काबर?

बादर  आथे  तव  मस्त  मगन  होथे  किसान  हर
तरिया हे  मतलाय  तभो मोर मन उजराथे काबर ?

'शकुन'  अगोरत  हे  मनखे  सावन  अउ  भादो  ल
धक धक धक सावन आगे मन ल धडकाथे काबर ?
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
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गज़ल

बाबा  हर  सरकार  ल रामलीला  ले चुपे-चुप चेताइस  हे
जनतंत्र  के महत्व ल  गॉंधी  के  भाखा  म समझाइस हे।

बाबा तैं  अकेला  नइ  अस  देश  तोर  संग  ठाढे  हावय
देश  ह  सत्याग्रह  ल  आज  तोरेच  कंठ   ले गाइस  हे  ।

बाबा  तैं  फिकर  झन   कर   जनता  जाग  गए  हावय
जयप्रकाश   के  ऑंदोलन  हर   आज  रंग   लानिस   हे ।

राज  करत -  करत  आज  शासन  हर  दुस्शासन  होगे
मिश्र  सरिख  माहौल आज  हमर  भारत  म  आइस  हे ।

' शकुन '  जा  तहूँ  हर  गेरुआ  टोपी ल पहिर  के आ जा
करिया अंग्रेज ल बिदारे ब गॉंधी गेरुआ पहिरे आइस  हे ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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गज़ल

रंग  म  बूड  के  फागुन  आ  गे  बइठ  पतंग  सवारी  म
टेसू   फूल   धरे   हे   हाथ   म  ठाढे   हावय  दुवारी   म  ।

भौंरा  कस  ऑंखी   हे  वोकर  आमा  मौर   हे  पागा  म 
मुच - मुच  हॉंसत कामदेव  कस ठाढे  हावय  दुवारी म ।

मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध ह  बांदी  हो  गे आज
लाज  लुकागे  कहॉं  कोजनी  फागुन  खडे   दुवारी   म ।

पिंवरा लुगरा पोलका पहिरे मंदिर जावत रहेंव मैं आज
दार - भात  म  करा  ह  पर  गे  फागुन  खडे  दुवारी  म ।

रस्ता  देखत  रहेंव  बरिस  भर  कैसे  वोला  बिदारौं  मैं 
'शकुन'  तैं पहुना  ल  परघा  ले  ठाढे  हावय  दुवारी  म ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
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गज़ल

आम - लीम- बर- पीपर - पहिरे  छत्तीसगढ  के  सबो  गॉंव
नदिया  नरवा  पार   म   बइठे  छत्तीसगढ  के  सबो  गॉंव ।

धान-बौटका कहिथें  सब झन किसम  किसम के होथे धान
हरियर - हरियर  लुगरा  पहिरे  छत्तीसगढ  के  सबो  गॉंव ।

हर   पारा  म  सुवा   ददरिया   राग   सुनावत  रहिथे   ओ
संझा  कन  जस  गीत  ल  गाथे  छत्तीसगढ  के सबो ग़ॉंव ।

भिनसरहा  ले  गॉंव  के  फेरी  भजन- मण्डली करथे  रोज
देश   के  पोटा  म   लुकाय   हे  छत्तीसगढ  के  सबो  गॉंव ।

'शकुन ' जगावव  जमो गॉंव ल गॉंव  म बसथे भारत मोर
खनखन खनखन धान उगलत हे छत्तीसगढ के सबो गॉंव ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ ग ]
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