जसपुर कइसन सुघ्घर हावै दुनियॉ भर म बगरे हे जस
वोही गॉव म रहिथे लक्ष्मी किस्मत म कहूँ के नइ ए बस ।
ऑखी दिखय नहीं लक्ष्मी के घर हर गरू मरत - हावय
अंधरी कइसे जीही - खाही महतारी हर सोंच म हावय ।
घुरुआ कस बाढत हे लक्ष्मी फेर रूप - रंग हावय सुघ्घर
दिन - भर गाना - गावत रहिथे फेर वो टूरी लक्ष्मी हर ।
सैलानी आथें जसपुर म लक्ष्मी शिव - वन्दना सुनाथे
पंथी - कर्मा आउ ददरिया भभर भभर के अब्बड गाथे ।
एक ठन नानुक - कुरिया हावय मॉ -बेटी रहिथें चुपचाप
लक्ष्मी चुप्पे - चुप गुनथे अऊ रोवत रहिथे आपे - आप ।
मनखे कतको रोवय - गावय मन म भरे रहिथे विश्वास
एक एक दिन बीतत हावै चल दिस कतको कन चौमास ।
दुनियॉ - भर म नाव बगर गे लक्ष्मी हो गे माला - माल
लक्ष्मी मेर बरसत हे पैसा गीत बने हे वोकर - ढाल ।
लइका - सियान सब वोकर पाछू वोकर धुन म नाचत हे
जघा -जघा सम्मान मिलत हे भीड बिकट सकलावत हे ।
लक्ष्मी जब पंथी - गाथे तव मांदर ल फेर ललित बजाथे
का कार्यक्रम कहॉ होवत हे सबो बात ल ललित बताथे ।
ललित के दायी - ददा दूनों झन लक्ष्मी के घर म आए हें
हॉसत - हॉसत खुसरत हावयँ लडुआ - पपची लाने हें ।
बर - बिहाव के बात चलत हे सबो झन ल हावय - नेवता
मन भर के सब मोद मनावौ असीस दे देवव सबो देवता ।
जइसे लक्ष्मी के दिन बहुरिस तइसे सबके दिन बहुरय
ईढर - कडही तरकारी अउ दार - भात हर घर म चुरय ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई shaakuntalam.blogspot.in
वोही गॉव म रहिथे लक्ष्मी किस्मत म कहूँ के नइ ए बस ।
ऑखी दिखय नहीं लक्ष्मी के घर हर गरू मरत - हावय
अंधरी कइसे जीही - खाही महतारी हर सोंच म हावय ।
घुरुआ कस बाढत हे लक्ष्मी फेर रूप - रंग हावय सुघ्घर
दिन - भर गाना - गावत रहिथे फेर वो टूरी लक्ष्मी हर ।
सैलानी आथें जसपुर म लक्ष्मी शिव - वन्दना सुनाथे
पंथी - कर्मा आउ ददरिया भभर भभर के अब्बड गाथे ।
एक ठन नानुक - कुरिया हावय मॉ -बेटी रहिथें चुपचाप
लक्ष्मी चुप्पे - चुप गुनथे अऊ रोवत रहिथे आपे - आप ।
मनखे कतको रोवय - गावय मन म भरे रहिथे विश्वास
एक एक दिन बीतत हावै चल दिस कतको कन चौमास ।
दुनियॉ - भर म नाव बगर गे लक्ष्मी हो गे माला - माल
लक्ष्मी मेर बरसत हे पैसा गीत बने हे वोकर - ढाल ।
लइका - सियान सब वोकर पाछू वोकर धुन म नाचत हे
जघा -जघा सम्मान मिलत हे भीड बिकट सकलावत हे ।
लक्ष्मी जब पंथी - गाथे तव मांदर ल फेर ललित बजाथे
का कार्यक्रम कहॉ होवत हे सबो बात ल ललित बताथे ।
ललित के दायी - ददा दूनों झन लक्ष्मी के घर म आए हें
हॉसत - हॉसत खुसरत हावयँ लडुआ - पपची लाने हें ।
बर - बिहाव के बात चलत हे सबो झन ल हावय - नेवता
मन भर के सब मोद मनावौ असीस दे देवव सबो देवता ।
जइसे लक्ष्मी के दिन बहुरिस तइसे सबके दिन बहुरय
ईढर - कडही तरकारी अउ दार - भात हर घर म चुरय ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई shaakuntalam.blogspot.in
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