Sunday 1 June 2014

मुनगा भाजी कतेक मिठावय

ममा -  दाई   के  हाथ   के रॉधे 
मुनगा भाजी कतेक मिठावय ।

कतका व्याकुल हो जावै जब 
मोर ऑखी  म ऑसू आवय ।

अ‍ॅगठी धरा के मोला वोहर 
रोज मदरसा म अमरावय ।

पञ्चतंत्र कस रोज कहानी 
वोहर  मोला रोज सुनावय ।

गीत  के  बीजा  वोही  बोइस 
गा-गा के मोर मेर गोठियावय ।

शकुन  ह  खाथे  कइके  वोहर 
ठेठरी -  खुर्मी  अबड  बनावै ।

'शकुन' रोवत  हे  सुरता  करके 
ममा-दाई अब कहॉ ले आवय ?

2 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  2. बेहद उम्दा और बेहतरीन ...आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@मुकेश के जन्मदिन पर.

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