Saturday 30 November 2013

घी गँवा गे पिसान म


ए दे काल शिव के बेटा के बिहाव होइस हे । आज डोला आही । मोरो घर नेवता आए हावय । महूँ हर बहू देखे बर जाहौं । लइका मन बर चॉउर-पिसान के अँगाकर रोटी केरा-पान म डार के बनाए रहेंव तेला  वो मन ल खवा-पिया देहेंव तेकर पाछू सँगवारी मन सँग महूँ पहुँच गयेंव बहू देखे बर ।

" कइसन सुघ्घर बहू लाने हस ओ माया !"  मैं हर शिव के महतारी ल कहेंव । फेर जब बहू हर पॉंव - परिस, तव मोर मन म भुसभुस गईस कि बहू हर अतेक दुरिहा ले कैसे पॉंव-परत हे , मोर गोड ल कैसे नइ छुवत ए ? अतका म का देखथौं कि पाछू म, सरला अऊ सुधा खुसुर-फुसुर करत हें। काय गोठियाथें कइके महूँ थोरिक कान दे के सुनेवँ तव सुधा कहिस -" बहू ल बने ढँग के नइ दिखय , तइसे लागत हे शकुन !"  गोठ आइस अउ चल दिस । "ओकर बहू ओ निपटय रे, हमन का करना हे छोंडव ।"  कइके बहू धरा के हमन अपन-अपन घर आ गएन।

एक दिन अचानक मैं हर 'आस्था' चैनल म देखेंव सीधा--प्रसारण आवत रहिस हे -" भैरवी के भजन।"  वो  छोकरी हर मीराबाई के भजन " मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई..." गावत रहिस हे । मोला अइसे लागिस जाना-माना ए छोकरी ल कहूँ तीर-तखार म देखे हावौं । थोरिक चेत करके देखेंव तव चीन्ह डारेंव - " अरे एहर तो माया के बहुरिया भैरवी ए। कइसन सुघ्घर राग म गावत हे ओ ! भजन ल सुन के माया मेर गयेंव, बधाई देहे बर। मैं माया ल कहेंव-" नवा बहू हर र्गजब सुघ्घर गाथे ओ माया ! मैं अभीच्चे देख-सुन के आवत हौं " माया कहिस "वोकर एही गुन ल देख-सुन के तो तोर बेटा हर भैरवी सँग बिहाव करे हे दीदी! तैं जानत हस के नहीं,नवा-बहू हर देखे नइ सकय । वोहर अँधरी हे।"

मोला अइसे लागिस जाना -माना मोला मूर्छा आवत हे आउ मैं गिरत हावौं फेर माया हर दूनों हाथ म पोटार के  मोला सँभालिस अऊ कहिस--" तैं हर ए सोंच दीदी ! कि तोर बेटा इंजीनियर हे तव तोर बहू घलाव हर बहुत बड गायिका हे । तोर बेटा ल तो भइगे एही गॉंव के मन जानथें फेर तोर बहू हर तो सरी दुनियॉं म नाव कमावत हावय । हमन कोनो घाटा म नइ अन दीदी ! - घी गँवागे पिसान म ।"                   
      

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