Thursday, 16 March 2017

आल्हा




फागुन आइस नाच नचाइस, बपरा - मनखे के का दोष
सुग्हर रसदा राम दिखाइस, कमती मा कर ले संतोष ।

टेसू - मटमट ले-- फूले हे, झर - गे वोकर सब्बो - पान
आमा - लटलट ले मौरे - हे, मम्हावत हे मारय - बान ।

कुहू कुहू कहिके कुलकत हे,कोयल घोरय मधुर मिठास
देस राग मा मन मटकत हे, मन के बोली हावय खास ।

महर - महर मम्हावत- हावय, गोंदा के देखव - सिंगार
देशी खुशबू बहुत मिठावय, एकर महिमा अपरम्पार ।

फागुन- महिमा सब ला भाथे, हर मनखे ला आथे रास
मनखे हर मन भर सुसुवाथे, हर- पीरा हर होथे खास ।

अमलतास के आधा माला, परमात्मा के कथा सुनाय
अपन पीर ला कहिबे काला हाँसव गावव पीर लुकाय ।

फागुन वेद वाक्य जनवाथे, छोड - लबारी बोलव साँच
मन के सब्बो तमस मिटाथे, आवय नहीं साँच ला आँच।

मन भावन फागुन मा आते, मन मोहन तँय मोरो गाँव
मनहर- मुरली तान सुनाते, परम्परा - पीपर के छाँव ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो. 9302830030 



किरीट सवैया – 8 – भगण

        किरीट सवैया – 8 – भगण

आवत हे अब साल नवा नव, आस भरे मन – मंदिर मानव
देव कहौ तन ला मन माधव, आज सबो सच ला पहिचानव।

सोच बने गति पा मति पा अब, सोच जगा अउ सोच सुधारव
जीवन के सुर ताल बजै शुभ, राग धरौ सुर मा अब गावव ।

आइस हे नवरात बने सब, नौ - दिन के महिमा – सँहरावव
मातु बिना अदियावन हे शुभ – भाव धरौ तव तो परघावव ।

सार बने धर ले मन मा तव, मान मृदंग मया मन जानव
चैत गहूँ उरदा मसरी - धर, नाचत – लानत ढोल बजावव ।
    
शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ
मो.- 93028 30030 

Saturday, 19 September 2015

बेटी बचावव


                        एकांकी
पात्र - परिचय
1- रामलाल - घर के मुखिया । उमर - 50 बरिस ।
2- कमला  - रामलाल के गोसाइन । उमर - 45 बरिस ।
3- पवन - रामलाल के बेटा । उमर - 26 बरिस ।
4 - पूजा - कमला के बहू । उमर - 22 बरिस ।
5 - शोभा- कमला के बेटी । उमर - 21 बरिस ।
6 - श्याम - पूजा के भाई । उमर - 24 बरिस ।

                      पहिली - दृश्य 


[ गॉव के घर । अंगना हर गोबर म लिपाय - बहराय - औंठियाय - चौंक पुराय । रामलाल हर अपन सुआरी कमला ल कुछु समझावत हे , कपार म सलवट पर गए हे , तेन हर दुरिहा ले दिखत हे ।]

रामलाल - अपन बहू ल समझा दे , अब ओहर नौकरी नइ कर सकय । हमर घर के बहू - बेटी मन नौकरी नइ करैं । ए बात ल वोहर जतके जल्दी समझ जावय ओतके अच्छा ।
  कमला- बहू नौकरी करत हे तेमा का नकसान हे ? अब जमाना बदल गए हे , हमुँ मन ल जमाना के संगे -संग रेंगे बर परही, नइतो हम पछुआ जाबो । जौन दुख ल मैं भोगे हँव तेला मोर बहू ल नइ भोगन दवँ ।
रामलाल - तोर संग तो गोठियाना अबिरथा हे ! हर बात के उल्टा मतलब निकालथस । तोर भेजा म तो गोबर भरे हावय ।
कमला - महूँ हर तुँहर बारे म अइसने कह सकत हँव ! मोर अच्छाई ल मोर कमजोरी झन समझव ।
रामलाल - हे भगवान ! मोर गोसैंनिन ल थोरिक अक्कल दे दे ।
कमला - अक्कल के जादा जरूरत तुँहला हावय ।
          [ बहू आइस हे ]
पूजा - दायी ! मैं हर ऊँकर मन बर चाय बनावत हौं तव तुहूँ मन बर बना लवँ का ?
कमला - हॉ बेटा ! बना ले, चाय के बेरा तो हो गए हे ।
रामलाल - हमर बहू कतेक अक्कल वाली हे ! देख हमर कतका ध्यान रखथे ? कोजनी शोभा मेर कइसे व्यवहार करही ? एही बात के भारी चिन्ता हे ।

कमला -मैं हर तुँहला कतका समझायेंव कि सच बात ल बता दव फेर तुँमन नइ मानेवँ ! अब मैं का करौं ?
पूजा- दायी ! एदे - गरमागरम चाय अऊ संग म आलू - भॉटा के भजिया ।
कमला - बेटी ! तैं चाय ल पॉच - कप कैसे बनाए हस ? हमन तो चारे झन हावन न ?
पूजा - दायी ! तैं शोभा ल कइसे भुला गए ? वोहर घर म नइये का ?
[ रामलाल के हाथ ले चाय हर छलक जाथे अऊ कमला के हाथ ले चाय के कप हर गिर जाथे अऊ कप के फूटे के आरो ले सबो सुकुर्दुम हो जाथें । सास - ससुर ल हडबडावत देख के पूजा हर कहिस ]
पूजा - तुमन चिन्ता झन करव । मैं एला सकेलत हौं ।
[ वोहर कप के कुटा मन ल बिन के ले जाथे ]

पूजा - दायी ! ए दे चाय ।

[ पवन अऊ पूजा सरी घर ल खोज डारिन फेर शोभा वोमन ल नइ मिलिस । थक - हार के पवन हर अपन दायी ल पूछिस ]
पवन - दायी ! शोभा कहॉ हे ?
कमला- [ असकटाय के चोचला करत हे ] शोभा अपन कुरिया म हावय ।
पवन - वोकर कुरिया म तो तारा लगे हे दायी !
कमला - ए ले कूची ल , जा खोल दे ।

[ पवन हर कूची ल पूजा के हाथ म दिहिस अउ कहिस - ]
पवन - दायी - ददा मन शोभा ल कुरिया म धॉध देहे हें - ए ले कूची , जा देख मरगे धन जियत हे ।[ अपन दायी - ददा ल रिस कर के देखथे ।] वोहर खोरी हे तेमा वोकर का गलती हे ? अपनेच लइका बर अइसे व्यवहार ? ओइसे पूजा ! महूँ हर इंजीनियर नइ औं । मैं हर एम.ए. बी. एड. हावौं । शिक्षा - कर्मी , वर्ग एक म , लइका -मन ल पढाथौं । कभु -कभु मुँह खोलना जरूरी होथे दायी ! तेकर सेती बोलत हौं । एही बात मोर ददा घलाव समझ लेतिस तव ए नौबत नइ आतिस । मोला, पूजा के आघू म मुँह लुकाए बर नइ परतिस ।

                       दूसरा - दृश्य 


[ पूजा हर जब कुरिया के कपाट ल खोलिस तव सरी कुरिया बस्सावत हे अऊ शोभा हर बेहोश परे हे , वोहर रोवत - चिल्लावत , दायी के कुरिया कती भागत हे ]
पूजा - दायी ! पूजा के होश नइए अऊ ओकर मुँह ले गजरा निकलत हे ।
[ तुरते - ताही पवन हर बैद ल बला के लानिस हे । सबो झन के मुँह सुखा गय हावय ।]
बैद - फिकर के कोनो बात नइए । एकर ऑखी म जुड - पानी छींच दव । मूर्छा ले जाग जाही तव लिमाउ - पानी पिया देहौ अउ जौन खाही तौन खवा देहौ ।
[ पूजा हर शोभा के ऑखी म पानी छीचथे तहॉ ले शोभा हर ऑखी उघारथे अऊ एती - तेती निहारथे । शोभा के तबियत ल देख के पूजा अब्बड रोवत हे , वोकर ऑखी लाल हो गए हे । वोहर सपना म नइ सोंचे रहिस हे कि कहूँ दायी - ददा , अपन लइका संग ,अइसे व्यवहार कर सकत हे । वोहर शोभा के ध्यान अइसे राखे लागिस जइसे शोभा हर वोकर सगे छोटे बहिनी ए । दुनों ननद - भौजाई गोठियावत हें, आवव हमुँ मन सुनबो ।]

शोभा - भौजी ! मोर दायी - ददा मन मोला चिराय - ओन्हा सरिख काबर लुकावत रहिथें ? कभु - कभु मैं सोंचथौं के यदि मैं हर बाबू होतेंव तभो मोर दायी - ददा मन मोला अइसने तारा लगा के धॉध देतिन ? नोनी लइका ल कतका अपमानित होना परथे न भौजी ! वोला वो गलती के सजा मिलथे, जेला वोहर कभु करेच नइए ।[ वोहर अपन भौजी ल पोटार के अब्बड रोथे ] तोर सिवाय मोर कोनों नइए भौजी !
पूजा - झन चिन्ता कर, मैं हावँवँ न !
शोभा - भौजी । तैं हर तो खैरागढ ले लोक - गीत म एम. ए. करे हावस न ? महूँ ल सिखो दे न, भौजी !
पूजा - मन लगा के सीखबे तव सिखोहँवँ । अइसने रोना - गाना करबे तव कइसे सीखबे ?
शोभा- मैं मन लगा के सीखिहँवँ भौजी ! मैं तोला निराश नइ करौं ।

[ हमन सब झन बुता करत - करत थक जाथन अऊ थक - हार के सुत जाथन  फेर काल के चक्का नइ थिरावय वोहर रेंगतेच रहिथे । पूजा ह अपन ननद ल लोक - गीत सिखोवत गइस अउ शोभा हर मन लगा के सीखिस अब वोहर बडे - बडे कार्यक्रम म गाथे । आवव हमुँ मन सुनबो , वोहर " भरथरी " गावत हे ।]
शोभा -
 ए दे नोनी पिला के जनम ल धरे तोर धन भाग ए ओ मोर नोनीsssssss
तैं ह बेटी अस मोर तैं ह बहिनी अस मोर संगवारी अस मोर
महतारी अस महतारी अस मोर नोनीsssssssss

लइका ल कोख म वोही धरथे भले ही पर - धन ए मोर नोनी
सब ल मया दिही भले पीरा सइही भले रोही गाही
वोही डेहरी म वोही डेहरी म मोर नोनीssssssssss

पारस - पथरा ए जस ल बढाथे मइके के ससुरे के मोर नोनी
वोला झन हींनव ग वोला झन मारव ग थोरिक सुन लेवव ग
गोहरावत हे गोहरावत हे मोर नोनी ssssssssssss।

पूजा - तैं बिकट - बढिया गाए हावस ओ शोभा !फेर मैं हर चाहत हँवँ के तैं हर गीत के पीरा ल महसूस कर, वो पीरा हर तोर गीत म तोर चेहरा म दिखय, तव आउ सुघ्घर गाबे ।
शोभा - ठीक कहत हस भौजी ! मैं कोशिश करिहौं ।

[ श्याम हर पूजा के भाई ए । वोहर भाई - द्विज म अपन बहिनी के घर म आए हे । पूजा हर अपन भाई के पूजा करके आरती करत रहिस हे ततके बेर लकठा म कोनों मेर ले एक झन छोकरी हर " कजरी " गावत रहिस हे  ]
" रंगबे तिरंगा मोर लुगरा बरेठिन
किनारी म हरियर लगाबे बरेठिन ।

झंडा - फहराए बर महूँ  हर जाहँवँ
ऊपर  म  टेसू रंग -  देबे - बरेठिन ।

सादा - सच्चाई बर हावय जरूरी
भुलाबे झन छोंड देबे सादा बरेठिन ।

नील रंग म चर्खा कस चक्का बनाबे
नभ  ल अमरही -तिरंगा - बरेठिन ।

          तीसरा - दृश्य 


श्याम - पूजा ! ए मेर कोन गावत हे ? वोहर देश - प्रेम म  "कजरी" गावत हे फेर ओकर गीत म अतेक पीरा काबर हावय ? पूजा बता न ! कोन गावत हे ? तैं वोला जानथस का ?
पूजा - गावत होही कोनो । तोला का करना हे ?
श्याम - पूजा ! मैं वो छोकरी के सुर के गुलाम बन गय हावौं । वोकर बर मैं अपन जिंदगी ल दॉव म लगा सकत हावौं , समझे ?
पूजा - वोहर लूली - खोरी, अँधरी रइही तभो तैंहर .............
श्याम - हॉ पूजा हॉ, वो जइसे भी होही मैं वोला अपनाए बर तियार हँवँ ।
[ तभे गीत के आखरी दू लाइन ल गुनगुनावत शोभा हर वोही मेर आ गे ]
शोभा-
 रंगबे - तिरंगा मोर लुगरा बरेठिन
किनारी म हरियर लगाबे बरेठिन ।
[ कजरी गावत - गावत शोभा हर अपन भौजी के कुरिया म आथे अऊ अनजान मनखे ल देख के ठिठक जाथे , श्याम अऊ शोभा एक -दूसर संग गोठियाइन तो नहीं फेर तिरिया के दुनों झन चल दिहिन । अरे ! एमन आपस म ऑखी काबर चोरावत हावैं ? ऐसे लागत हे के ए दूनों झन बहुत जल्दी बहुत नजदीक आवत हें । आज पूजा अपन शिष्या शोभा ल " बिहाव - गीत " गाए बर सिखोवत हे काबर कि देव - उठनी अकादसी लकठिया गए हे । गॉव के गुँडी म "बिहाव - गीत" के कार्यक्रम हे, दस - बारह गॉव के मनखे मन जुरे हावँयँ । शोभा हर " बिहाव - गीत " गावत हे, पूजा ह हरमुनिया बजावत हे, पवन हर ढोलक बजावत हे आउ श्याम हर बॉसुरी बजावत हे ।]
शोभा -
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

बॉस - पूजा होही मँडवा म पहिली
उपरोहित ल  झट के बलाव  गौरी - गनेश  बेगि आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

चूल - माटी खनबो परघा के लानबो
माटी  के  मरम  ल  बताव  गौरी - गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज  गौरी - गनेश बेगि आवव ।

भॉवर - परे  के  महूरत  हर आ  गे
सु - आसीन  मंगल  गाव  गौरी  - गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

बर - कइना  दुनों  ल असीस  देवव
आघू  ले  दायी - बेटा आव  गौरी - गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब काज  गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

हरियर  हे  मडवा  हरियर  हे मनवा
जिनगी  ल  हरियर  बनाव  गौरी - गनेश  बेगि  आवव ।
सियाराम के होवत हे बिहाव गौरी - गनेश बेगि आवव ।
शुभ - शुभ  होही  सब  काज गौरी - गनेश बेगि आवव ॥

[ बिहाव - गीत हर सम्पन्न होइस तइसने पवन हर कहिस ]
पवन - सबो झन ल साखी मान के आज मैं हर श्याम ल एदे अपन बहनोई बनावत हावँवँ  [ वोहर श्याम ल हरदी के टीका लगाइस अऊ शगुन के रूप म 101 रुपिया धराइस हे आउ श्याम हर वोकर पॉव -पर के आशीर्वाद लिहिस हे ।]
पवन - आज मोर बहिनी शोभा हर " बिहाव - गीत " गाइस हावय । आज ले ठीक तीन दिन बाद पुन्नी के दिन गोधूलि वेला म एकर बिहाव होही । सबो झन ल नेवता देवत हँवँ  मोर बहिनी ल असीस देहे बर खचीत आहव ।
[ अचानक  पवन के दायी - ददा मन पवन के तीर म आथें अऊ दुनों झन हाथ जोर के, गॉव भर के आघू म स्वीकार करथें कि हमन भारी गलती करे हन, तेकर माफी मॉगे बर आए हावन हो सकही तव हमन ल माफ कर देहव । ]
रामलाल - मैं सबो झन के आघू म ए बात ल स्वीकार करत हावँवँ के मैं हर खुद अपन लइका मन संग    दुश्मन  कस व्यवहार करे हवँ । मैं हर अपन दुनों लइका मन मेर हाथ जोर के माफी मॉगत हवँ । हो सकही तव तुमन मोला माफ कर देहव ।
[ अतका म पूजा हर धरा- रपटा शोभा ल धर के  ओ मेरन आइस अऊ कहिस - ]
पूजा - सियान मन के माफी मँगाई हर नइ फभय ! जौन बीत गे तेला भुलावव अऊ बर - बिहाव के तियारी करव । तुमन शोभा ल आशीर्वाद देवव, [ अइसे कहि के उँकर दुनों झन के आघू म शोभा के मूड ल थोरिक नवाइस , तहॉ ले दुनो झन शोभा ल पोटार के पछता - पछता के अब्बड रोइन, फेर ए ऑसू म घलाय आनन्द के खजाना लुकाय हे , है न ? ]
     
शकुन्तला शर्मा , 288/ 7 मैत्री कुञ्ज भिलाई - 490006 , दुर्ग [ छ. ग.]
                   
            

Thursday, 3 September 2015

चन्दन कस तोर माटी हे

               भूमिका

छत्तीसगढी कविता में समकालीनता का स्पन्दन - स्वागतेय है लेकिन ऑचलिकता को अग्राह्य करके नहीं , आधुनिकता का आग्रह अपेक्षणीय है लेकिन अस्मिता को अस्वीकार करके नहीं । छत्तीसगढी में कुछ स्वनाम - धन्य ऐसे समीक्षक हैं जो छत्तीसगढी लोक - जीवन की अभिहिति को परम्परा मानकर उसे प्रगतिशीलता की लपेट में लेने का तथ्य निवेदित करते हैं । यह थीक है कि एक ही विषय- वस्तु और शिल्प की छत्तीसगढी कवितायें अधिक आ रही हैं और इनमें पिष्टपेषण की प्रवृत्ति ऊब - उदासी का उपक्रम उपस्थित कर रही हैं लेकिन आधुनिकता के नाम पर हिन्दी और भारतीय - भाषाओं का अंधानुकरण यदि एक ओर छत्तीसगढी में सम्भावनाओं की ज़मीन तलाशने वाले हिंदी के चुके हुए साहित्यकारों द्वारा छत्तीसगढी में घुसपैठ, भाषा और साहित्य को विकृति की खाई में धकेलने का षडयंत्र भी है । संक्रमण की इस संस्थिति में समीक्षा के सूप द्वारा - " सार - सार को गहि रहै , थोथा देई उडाय, "  का समय आ गया है । अपनी हिन्दी रचनाओं का अनुवाद करके या अन्य महत्वपूर्ण हिन्दी और भारतीय भाषाओं की कृतियों का अनुवाद करके वे इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर सकते हैं लेकिन अनुवादक कहलाने की अपेक्षा कवि कहलाने के मोह ने छत्तीसगढी - साहित्य को संकट में डाल दिया है । इन तथाकथित समीक्षकों को कौन समझाए कि परम्परा का ही विकसित रूप आधुनिकता है । परम्परा से पृथक होकर न व्यक्ति ,जाति ,समाज व देश की पहचान सम्भव है , नही भाषा और साहित्य का मूल स्वरूप सुरक्षित है ।

  छत्तीसगढी - भाषा की प्रकृति और साहित्य की प्रवृत्ति को समझते हुए जो मूल - रचना- धर्मी छत्तीसगढी - माटी के प्रति सच्ची - साधना में संलग्न हैं, उनमें शकुन्तला शर्मा का नाम महत्वपूर्ण है । शकुन्तला  प्रथम छत्तीसगढी कवयित्री के रूप में जानी जाती है इसके पूर्व किसी भी कवयित्री की प्रकाशित कविता या संग्रह मेरे देखने में नहीं आया । " चंदा के छॉव म " के पश्चात् इनका " कुमारसम्भव " नामक एक महाकाव्य भी आ चुका है और अब यह काव्य - संग्रह - " चन्दन कस तोर माटी हे " आपके समक्ष प्रस्तुत है । कवयत्री की चिन्ता है कि धन - धान्य , अपार खनिज सम्पदा व देवी- देवताओं की कृपा के बाद भी, नक्सल वाद कलंक की तरह उभरा है " नक्सल ह दुर्दशा करत हे पूजत हे धर के आरी ।
पूजत हे धर के आरी ओ माई छत्तीसगढ महतारी ॥"

उपर्युक्त उद्धरण में ' पूजत ' शब्द = पूजन - अर्चन और  'प्राण ले लेना "  दोनों अर्थों में प्रयुक्त है । बलि देने से पहले बकरे की पूजा की जाती है और बाद में उसे काट लिया जाता है । इस तरह इस शब्द में दोनों अर्थ समादृत हैं । यदि छत्तीसगढ की माटी चन्दन जैसी मम्हाती है तो इसमें नक्सल - वाद के सॉप भी लिपटे हुए हैं ।

प्रस्तुत संग्रह में जहॉ छत्तीसगढी बाल - गीतों की कमी की संपूर्ति की गई है, वहीं ' लोरी ' गीत लिख कर कवयित्री ने इस लुप्त होती परम्परा के संवर्धन की दिशा में नयी स्थापना दी है । छत्तीसगढी के लोक - छन्दों यथा जसगीत, होरी, सधौरी, भोजली, सोहर, गारी, पंथी, ददरिया,भरथरी, सुवा, करमा, नाचा, के प्रयोग और शास्त्रीय - रागों यथा - कजरी, ठुमरी आदि के उपयोग से , छत्तीसगढी गीतों में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पीठिका अंतर्भूत है । इस तरह यह संग्रह कई दृष्टियों से उल्लेखनीय बन पडा है । इसकी भाषा सरल - सहज व सुगम - सुबोध तो है ही , लोक - प्रचलित शब्दों को अंगीकार करने यथावसर मुहावरे - कहावतों को स्वीकार करने और ध्वन्यात्मकता को समाहार करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रमाणित हुई है । छत्तीसगढी में संस्कारी पाठकों को ये गीत रुचिकर प्रमाणित होंगे, ऐसी मेरी मान्यता है । शुभ - कामनाओं - सहित -

सी-62 , अज्ञेयनगर छत्तीसगढ                                                                 डॉ. विनय कुमार पाठक
बिलासपुर-495001 [छ. ग.]                                                   एम. ए. पी. एच.डी. डी. लिट् [ हिन्दी ]
मो. 92298 79898                                                                   पी. एच. डी.डी.लिट्. [भाषा विज्ञान ]
                                                                                                        निदेशक -प्रयास प्रकाशन
              

Wednesday, 8 July 2015

चौमासा

              कजरी

रंगबे  लाली - रंग  मोर लुगरा बरेठिन 
किनारी  म  हरियर  लगाबे -  बरेठिन ।

सब्बो - संगवारी - संग तौरे बर - जाबो 
भींजे  ले  छूटय  झन  रंग हर बरेठिन ।

झूलना म झूलबो अउ कजरी ल गाबो
कजरी  के धुन बिकट मीठ हे बरेठिन ।

सावन- मन भावन के महिमा हे भारी
मइके के भुइयॉ नीक लागय बरेठिन ।

ऑछी  म  गाढा - पिंवरा - रंग चढाबे 
उमर - भर रंग ह झन छूटय बरेठिन ।

Tuesday, 3 March 2015

एकतीस

                      ददरिया

सोलह बछर के उमर हावय तोर 
तोरे डहर लगे रहिथे मन हरहा मोर 
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला
फुडहर - डहर ।
फुडहर डहर फूँगी फेंकत हावय फोकला
फुडहर - डहर ।

आनी - बानी के सिंगार करय न 
घेरी - बेरी बेनी गॉथय वोमा गोंदा फूल खोंचय 
पिचकाट बिकट करय तोला का बतावँव ।
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला 
फुडहर - डहर । 
फुडहर डहर भैया फेंकत हावय फोकला 
फुडहर - डहर ।

मेला - मडई म किदरत हावै न ! 
रेंहचुली म झूलय उखरा लाडू ल खावय 
मोला ठेंगा देखावय मोर मन मोह लिस रे ।
चिरई करय चोचला फेंकत हावय फोकला
 फुडहर डहर ।
फुडहर डहर संगी फेंकत हावय फोकला 
फुडहर - डहर 

            बत्तीस 
         पंथी 
सतनाम सार ए अमृत के धार ए 

  तोर दूनों पॉव परवँ मोर गुरु ग 
गुरु तहीं तो सिखोए हावस सत - नाम ग ।
तहीं समझाए हस तहीं समझाए हस 
तहीं समझाए हावस सत - नाम ग 
गुरु तहीं ह सिखोए हावस सत - नाम ग ।

सरी दुनियॉ ह हमरेच तो कुटुम ए हमरे कुटुम ए 
सुखे सुख ल पाहौं कइबे मन के भरम ए मन के भरम ए ।
मन के भरम ए मन के भरम ए 
मन के दिया तहीं ह बारे हावस ग 
दुनियॉ ल तहीं उजियारे हावस ग 
गुरु तहीं ह सिखोए हावस सत - नाम ग ।

पर - उपकार के तैं महिमा बताए ग महिमा बताए 
सबके सुख म अपन सुख हे तहीं समझाए ग तहीं समझाए ।
तहीं समझाए ग तहीं समझाए 
सत के डहर गुरु तहीं ह रेंगाए ग तहीं ह रेंगाए 
गुरु तहीं ह सिखोए हावस सत - नाम ग ।

            तैंतीस 
           पंथी 
कइसे तोर मया के बखान करौं ग 
पंथी गावत हावौं जोडी मोर तोरेच खातिर 
मुस्कियावत हावौं संगी मोर तोरेच खातिर ।

तोरे खातिर मैं ह जोही सेंदुर ल लगाए हौं सेंदुर लगाए हौं 
चेथी म तोरेच नाव के गोदना गोदाए हौं गोदना गोदाए हौं ।
गोदना गोदाए हौं गोदना गोदाए हौं 
डबडबाए हावौं संगी मोर तोरेच खातिर 
थथमराए हावौं बैरी मोर तोरेच खातिर ।
पंथी गावत हावौं जोडी मोर तोरेच खातिर ।

तोरेच खातिर महादेव म जल मैं चढाए हौं जल मैं चढाए हौं 
शीतला दायी मेर जा के जस - गीत गाए हौं जस गीत गाए हौं ।
जस - गीत गाए हौं जस - गीत गाए हौं 
निरजला हावौं संगी मोर तोरेच खातिर ।
कइसे तोर मया के बखान करौं ग 
पंथी गावत हावौं संगी मोर तोरेच खातिर 
जिनगी जियत हावौं संगी मोर तोरेच खातिर ।

          चौंतीस 
        भरथरी 
सत नेम के गली म रेंगे बर तैं ह घर ल तजे राजा भरथरी 
तैं ह घर ल तजे तैं ह घर ल तजे राजा भरथरी SSSSSSSSSSSSSS 

तैं ह साधू मेर गय 
वो ह फर तोला दिस 
रानी ल तैं देहे 
मन माढिस हे मन माढिस हे राजा भरथरी SSSSSSSSSSSSSSS

तहॉ रानी ह जी कोटवारे ल जा के परुस दिस हे जी 
कोटवारे ह फेर नचकारिन ल 
नचकारिन ह फर ल फेर राजा ल 
दरबारे म दरबारे म लान के दे दिस हे जीSSSSSSSSSSSSSSSSS

बक़ खा गे राजा ह सोंचत हे एदे का होगे जी 
मोह - माया तजिस 
कमण्डल ल धरिस 
हो गे बैरागी बन गे बैरागी राजा भरथरी SSSSSSSSSSSSSSSSSS

                   पैंतीस 
                 भरथरी 

ए दे नोनी पिला के जनम ल धरे तोर धन भाग ओ मोर नोनीSSSSSS
तैं ह बेटी अस मोर तैं ह बहिनी अस मोर संगवारी अस मोर 
महतारी अस महतारी अस मोर नोनीSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSS

लइका ल कोख म ओही धरथे भले ही पर धन ए  मोर नोनीSSSSSSS
सब ल मया दीही भले पीरा सइही भले रोही गाही 
ओही डेहरी म ओही डेहरी म मोर नोनीSSSSSSSSSSSSSSSSSSSS

पारस पथरा ए जस ल बढाथे मइके के ससुरे के मोर नोनीSSSSSSSS
वोला झन हीनौ ग वोला झन मारव ग थोरिक सुन लेवव ग 
गोहरावत हे गोहरावत हे मोर नोनीSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSS

                     छत्तीस 
                   मँडवा गीत 
हरियर मँडवा म सात महतारी मन घेरी - बेरी दिहिन हें असीस 
के सबो झन देवत हें असीसे महादेव सबो झन देवत हें असीसे ।

कइना बडभागी ल सबो सँहरावयँ के जीयय वो हर लाख बरीसे 
के जीयय वो हर लाख बरीसे महादेव जीयय वो हर लाख बरीसे।

मऊहा पान के मँडवा आमा पान के तोरन आमा पान के तोरन
के सुघ्घर सजे हे अ‍ॅगना महादेव सुघ्घर सजे हे अ‍ॅगनाSSSSS

कइना ल धर के सुआसीन हर आइस हे  सुआसीन हर आइस 
के सुमिरत हे गौरी - गनेश महादेव सुमिरत हे गौरी - गनेश ।

बंश - बढाए बर बिहाव हर होथे  बिहाव  के  हे भारी - महिमा 
के बॉस - पूजा होही पहिली महादेव बॉस - पूजा होही पहिली ।

माटी  के महिमा ल सबो जानत हावयँ  सबो  जानत  हॉवयँ
के चूल माटी खने बर जाबो महादेव चूल माटी खने ब जाबो ।

मँडवा के दस - ठन  दिशा के पूजा होही दिशा के पूजा होही 
के सबके असीस मिल जाय महादेव सबके  असीस पा जाय ।

मँडवा के लाज ल तुँहीं - मन राखिहव  तुँहीं - मन राखिहव
के जनम - सफल होइ जाय महादेव जनम सफल होइ जाय ।

                  सैंतीस 
              सधौरी 

महादेव के किरपा ले कुल - कँवल फूलही 
के मोरो घर आही संतान हो ललना मोरो घर आही सन्तान ।  

नोनी होवय चाहे बाबू आवय करिहँव दुनों के सुआगत 
के किलकारी गूँजै अ‍ॅगना हो ललना किलकारी गूँजै अ‍ॅगना ।

सबो सौंख पूरा करिहौं अपन बहू के मैं अपन बहू के 
के बंस -  बाढत हे ललना हो ललना बंस -  बाढत हे ललना ।

सुख म बूडे हे घर रस्ता देखत हन ओ रस्ता देखत हन 
के बॉधत हावँव - झूलना हो ललना बॉधत हावँव - झूलना ।

ओकर - बबा  हर  फेर  घोडा -  बनही के घोडा -  बनही
के महूँ करिहौं ओकर दुलार हो ललना करिहौं ओकर मैं दुलार । 

महावीर म रोट अऊ नरियर चढाहौं के नरियर चढाहौं 
के रक्षा करय भगवान हो ललना वोला पोंसय पालय भगवान ।

              अडतीस 
            सोहर

जनम लिहिन भगवान हो ललना मोर घर आ के 
जनम लिहिन प्रभु राम हो ललना मोर घर आ के ।

 सॉवर - सॉवर ओकर देह - पान हावय 
नयना हावय अभिराम हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन भगवान हो ललना मोर घर आ के ।

भाग जागिस हावय आज मोर घर के 
धाम अवध हो गे आज हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन भगवान हो ललना मोर घर आ के ।

चँदा उतरिस हावय आज मोरे अ‍ॅगना 
मन होगे अब निष्काम हो ललना मोर घर आ के ।
जनम लिहिन भगवान हो ललना मोर घर आ के ।

              उनचालिस 
             सोहर 

लछमी धरिस हावय पॉव मोरे अ‍ॅगना 
गाहौं मैं तो सोहर आज  मोरे ललना ।

मुटुर - मुटुर देखत हावय मोर नोनी
शुभदा आए हावय कर दिस बोहनी ।
टोर दिहिस हावय मोर सबो बँधना 
गाहौं मैं तो सोहर आज मोरे ललना ।

थोरिक बाढही तहॉ ले चोनहा करही
नोनी ह मोर अ‍ॅगठी - धर के  रेंगही ।
कोरा म तोला  झूलाहौं  मयँ पलना 
गाहौं मैं तो सोहर आज मोरे ललना । 

मोर सबो - सपना एही पूरा करही 
मोर घर म एही ह दियना ल बारही ।
कुलकत  हावय आज मोर अ‍ॅगना
गाहौं मैं तो सोहर आज मोर ललना ।

            चालीस 
        सोन चिरैया बनाबो

सोन - चिरैया बनाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो 
परदेसी हाट ल भगाबो भारत ल सोन चिरैया बनाबो ।

खेती किसानी ल पहिली बचाबो 
नइ  डारन जहरीला  - खातू गोबर - खातू  ल  डारबो ।
सोन -चिरैया बनाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।

गौ - माता के बने सेवा ल करबो 
गोरस के तस्मै खाबो भारत ल सोन- चिरैया बनाबो । 
सोन - चिरैया बनानो भारत ल सोन- चिरैया बनाबो ।

आसन ल करबो प्राणायाम करबो
तन मन स्वस्थ बनाबो भारत ल सोन चिरैया बनाबो ।
सोन -  चिरैया बनाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।

स्विस बैंक के पैसा ल लहुटा के लानबो 
जूना  प्रतिष्ठा ल पाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।
सोन - चिरैया बनाबो भारत ल सोन - चिरैया बनाबो ।