Thursday 15 January 2015

एकचालिस

                   भारत ल दे वरदान

भारत ल  दे वर -  दान  महादेव  भारत ल  दे वरदान ।
भारत बनय फेर महान महादेव  भारत ल  दे वरदान ।

खेती -  किसानी  अब  तहीं  बचाबे 
तहीं  देबे अब धियान महादेव भारत ल  दे वर - दान ।

गौ माता रोवत हे खाय बर नइ पावै
ओकरे ले हावै धन धान महादेव भारत ल  दे वरदान ।

बूडती  के  पूजा अडबड  करे  हन
पूजबो सुरुज - भगवान  महादेव भारत ल  दे वरदान ।

चुन - चुन के दानव के संहार कर दे 
बहँचा ले सज्जन के प्राण महादेव भारत ल दे वरदान ।

स्विस - बैंक म भारत के पैसा परे हे 
लान दे झट के हिंदुस्तान महादेव भारत ल दे वरदान ।

हिन्दी ह बिन्दी ए हिन्दुस्तान के 
हिन्दी के बढ जावय मान महादेव भारत ल दे वरदान ।

राम - राज कइसे भारत म आवय 
दे - दे  हमला  वोही  ज्ञान महादेव भारत ल दे वरदान ।


           बियालिस

         शरद - पुन्नी 

पुन्नी -  परी कुऑर के आ गे कतका सुघ्घर कहत हवय ।
नहा के आए हे गो - रस म मुच - मुच हॉसत कहत हवय ।

तमसो  मा  के  पाठ  ल  सीखव  सदाचरन के डहर चलव
नइ तो भारी बिपत म परिहव तुमन सत के शरन- गहव ।

उज्जर तन उज्जर मन राखव एही सिखोवत हौं मैं आज 
करनी के फल मिलबेच करथे सच के निमगा रहिथे राज ।

आनी - बानी के जिनिस बेचात हे तुमन ओती झन जाहौ
अपनेच  घर  म अलवा - जलवा  चुरे  हे  तौने  ल  खाहव ।

सब नदिया ल जान के गंगा  भाव ले करिहव  पूजा - पाठ 
फूल - पान झन वोमा चढाहव एही बात  बर  बॉधव गॉठ ।

सुख - चाहत हे जे मनखे ह सब के सुख चाहय सौ - बार
वेद - पुरान बखानत हावय पर - उपकार  ए सुख के सार ।

सब्बो- मनखे मन बइठे हावौ आज अपन भीतर झॉकव 
अपन- देश भुइयॉ बर तुमन का - का उदिम करत हावव ।

करव  स्वदेशी  के  पूजा अब एही म हे सब  के  कल्यान
माटी  के  महिमा ले  बनही  सोन - चिरैया - हिन्दुस्तान ।


              तिरालिस

         भोजली - गीत

देवी - गंगा  देवी - गंगा लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा 
हमरो  देवी  - भोजली  के  भींजय  आठों -  अंगा ।
अहो देवी गंगा 

गंगा म भोजली सेराए झन जावौ सेराए झन जावौ
दुरिहा -  ले  पॉव  पर  लव अपन - मन - मढावव ।
अहो देवी गंगा 

मोर गंगा दायी के पॉव ल पखारौ जी पॉव ल पखारौ
सबो -  दुख -  हरथे जावव  वोकर  मेर - गोहरावव ।
अहो देवी गंगा 

मने मन पूजा करौ कुछु झन चढावौ कुछु झन चढावौ
इहें  बइठे  -  बइठे  भलुक  भभर  के  गोठिया - लव । 
अहो देवी गंगा 


              चवॉलिस

                ठुमरी

बैरी  तयँ  नइ आए  भिनसरहा  हो  गईस 
सुकुवा ह मोला निनासिस अऊ चल दिस ।

पलकन  के  बहिरी  ले  रस्ता  -  बहारेंव
रस्ता  म ऑखी  के  पुतरी -  दसा -  देंव  ।
दार - भात म कइसे तो करा ह पर गईस
बैरी  तयँ  नइ आए  भिनसरहा  हो गईस ।

सब्बो - संगवारी - मन झूलना - झूलत हें
सावन  म  जिनगी  के  मजा -  लेवत  हें ।
तोर - बिन जिनगी ह अदियावन होगिस
बैरी  तयँ  नइ आए  भिनसरहा  हो गईस ।


            पैंतालिस

            ठुमरी 

सावन  ह  आ गे तयँ आ जा  संगवारी 
झटकन नइ आए तव खाबे तयँ गारी ।

नदिया अऊ  नरवा  म  पूरा ह आए हे 
मोर मन के झूलना बादर म टंगाय हे ।
हरियर - हरियर हावय भुइयॉ महतारी
झटकन नइ आए तव खाबे तयँ गारी ।

बड - सूना  लागत हे सावन म अंगना 
रोवत हे रहि-रहि के चूरी अऊ कंगना ।
सुरता हर  धर के ठाढे - हावय - आरी
सावन  ह आ गे तयँ आ जा संगवारी ।


          छियालिस

            ठुमरी

बिरबिट ले करिया हे फागुन के रात 
सरसरावत  हे  कहॉ पहावत  हे रात ।

चम्पा - चमेली ओली म  बँधाय  हे
आमा के मौर ह  मोर बारा बजाय हे ।
दया मया धरे नइये उजबक हे रात
बिरबिट ले करिया हे फागुन के रात ।

मोला बिजराथे कोकम के भागत हे 
घक्खर हे वोह एको नइ लजावत हे । 
आवत हे तोर सुरता तोरेच सब बात 
बिरबिट ले करिया हे फागुन के रात ।


              सैंतालिस 

                 ठुमरी 

कोजनी -  तुमन  कब आहव  गवँतरिहा 
कुछु गलती होही तव मोला झन कइहा ।

सावन हर ए दे सूखा - सूखा चल दिहिस
भादों -  हर  मोला  बिकट - बिजराइस ।
डर लगथे मोर मन हो जावै झन हरहा 
कोजनी - तुमन कब आहव गवँतरिहा ? 

तुँहर - मिट्ठू  ह तुँहरेच नाव जपत हे
रतिहा- भर अँगना म  दिया  बरत हे । 
दिख जातेव तूँ मोला थोरिक लौछरहा
कोजनी तुमन कब आहव गवँतरिहा ?


        अडतालिस

            ठुमरी

नइ  भेजवँ  कभ्भु  मयँ तुँहला  परदेस 
सरग  ले  सुघ्घर -  हावय  मोर -  देस ।

घर  के  चॉउर -  दार  खाबो -  जुडाबो 
अलवा-जलवा ओन्हा पहिरे रहि जाबो ।
अब  कतेक  दूसर  ल  देखाना  हे  टेस
सरग  ले  सुघ्घर - हावय  मोर  -  देस । 

कहूँ के अँचरा - हर  तुँहला झन तीरय 
डर लगथे तुँहर मेर  कोनो झन अभरै ।
रक्षा  करव  ब्रह्मा  -  विष्णु -  महेस 
सरग  ले  सुघ्घर -  हावय   मोर  देस ।


                 उनचास 

                  ठुमरी

कइसे  कहँव  मयँ  हर मोर मन के बात ।
जुग - जुग कस लागत हे पुन्नी के रात ।

मोर सूना अँगना ह खॉव - खॉव करत हे 
मन  के  मोर  मैना  ह  तोला सुमरत हे । 
ऊप्पर  ले  जीव - परहा  हो  गे  बरसात
जुग - जुग कस लागत हे पुन्नी के रात ।

मन  ल  समझाथौं  फेर मानत  कहॉ  हे
कौंवा - हर  देख तो तोर  सुरता लाने  हे ।
मोला -  हॉसत  हे  बिजरावत - हे   रात 
जुग - जुग कस लागत हे पुन्नी के रात ।


                 पचास

                  ठुमरी  

कब आबे  बैरी तोर सुरता - करत  हवँ ।
तोरेच सुरता म मैं जियत - मरत  हवँ ।

सावन - महीना म प्यास नइ बुताइस 
भादो के तीजा  म तोर सुरता - आइस ।
दसरहा म आ जा देखे बर तरसत हवँ
तोरेच सुरता म मयँ  जियत मरत हवँ ।

दसरहा तो चल दिस देवारी म आ जा
एक झलक थोरकन लौछरहा देखा जा ।
सुरहुत्ती दिया - मयँ जुग-जुग बरत हौं
कब - आबे  बैरी  तोर सुरता करत हवँ ?


          इंक्यावन

    भोजली - गीत

देवी गंगा देवी गंगा लहर - तुरंगा हो लहर - तुरंगा 
हमरो  देवी -  भोजली  के  भींजय  आठो - अंगा ।
अहो देवी गंगा 

गौरी गनपति के प्रथम होही पूजा प्रथम होही पूजा
गौरी -  गनपति  असन  -   कहूँ   नइए   -   दूजा ।
अहो देवी गंगा 

हाथी के मुँहरन अऊ मुसुवा सवारी हे मुसुवा सवारी
सत्  - बुध्दि  दीही  गन -  पति  महिमा  हे  भारी ।
अहो देवी गंगा 

दायी  के  सेवा  ले  पाइन हें  मेवा हो पाइन हें मेवा
सबो  -  मनखे    करव  अपन  -  दायी   के   सेवा ।
अहो देवी गंगा                      

               

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