Sunday 1 March 2015

जसपुर कइसन सुघ्घर हावय

जसपुर कइसन सुघ्घर हावै दुनियॉ भर म बगरे  हे  जस
वोही गॉव म रहिथे लक्ष्मी किस्मत म कहूँ के नइ ए बस ।

ऑखी दिखय नहीं लक्ष्मी के घर हर  गरू  मरत - हावय
अंधरी कइसे जीही - खाही  महतारी  हर  सोंच म हावय ।

घुरुआ कस बाढत हे लक्ष्मी फेर रूप - रंग हावय  सुघ्घर
दिन -  भर  गाना - गावत  रहिथे फेर वो टूरी लक्ष्मी हर ।

सैलानी आथें  जसपुर  म लक्ष्मी  शिव - वन्दना  सुनाथे
पंथी - कर्मा  आउ  ददरिया भभर  भभर के अब्बड गाथे ।

एक ठन नानुक - कुरिया हावय मॉ -बेटी रहिथें चुपचाप
लक्ष्मी चुप्पे - चुप  गुनथे अऊ  रोवत रहिथे आपे - आप ।

मनखे कतको रोवय - गावय मन  म  भरे रहिथे विश्वास
एक एक दिन बीतत हावै चल दिस कतको कन चौमास ।

दुनियॉ -  भर  म नाव बगर गे लक्ष्मी हो गे माला - माल
लक्ष्मी  मेर  बरसत  हे  पैसा  गीत बने  हे  वोकर - ढाल ।

लइका - सियान सब वोकर पाछू वोकर धुन म नाचत हे
जघा -जघा सम्मान मिलत हे भीड बिकट सकलावत हे ।

लक्ष्मी  जब  पंथी - गाथे तव मांदर ल फेर ललित बजाथे
का  कार्यक्रम  कहॉ  होवत हे सबो बात ल ललित बताथे ।

ललित के दायी - ददा दूनों झन लक्ष्मी के घर म आए हें
हॉसत - हॉसत  खुसरत हावयँ  लडुआ - पपची  लाने  हें ।

बर - बिहाव के बात चलत हे सबो झन ल हावय - नेवता
मन भर के सब मोद मनावौ असीस दे देवव सबो देवता ।

जइसे लक्ष्मी के दिन बहुरिस तइसे सबके दिन बहुरय
ईढर - कडही तरकारी अउ  दार - भात हर  घर म  चुरय ।

शकुन्तला शर्मा , भिलाई shaakuntalam.blogspot.in

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