Thursday 18 July 2013

ठुमरी



सावन  ह आ गे तैं आ जा  संगवारी 
झटकन नइ आए तव खाबे तैं गारी ।

नरवा अऊ नदिया म पूरा ह आए हे 
मोर मन के झुलना बादर म टँगाए हे
हरियर- हरियर हावै भुइयॉं महतारी 
झटकन नइ लहुटे तव खाबे तैं गारी ।

बड सूना लागत हे सावन म अँगना
रोवत हे रहि-रहि के चूरी अउ कंगना ।
सुरता  ह  धर  के  ठाढे  हावय  आरी
झटकन नइ आए तव खाबे  तैं गारी ।

सावन  ह आगे  तैं आ जा  सँगवारी 
झटकन नइ आए तव खाबे तैं गारी ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई { छ. ग. }
                        

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