झटकन नइ आए तव खाबे तैं गारी ।
नरवा अऊ नदिया म पूरा ह आए हे
मोर मन के झुलना बादर म टँगाए हे
हरियर- हरियर हावै भुइयॉं महतारी
झटकन नइ लहुटे तव खाबे तैं गारी ।
बड सूना लागत हे सावन म अँगना
रोवत हे रहि-रहि के चूरी अउ कंगना ।
सुरता ह धर के ठाढे हावय आरी
झटकन नइ आए तव खाबे तैं गारी ।
सावन ह आगे तैं आ जा सँगवारी
झटकन नइ आए तव खाबे तैं गारी ।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई { छ. ग. }
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